अनिश्चित आयुष्य होने पर भी निश्चिंतता किस बात की? आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

रापर। 27 मार्च, 2025

अनिश्चित आयुष्य होने पर भी निश्चिंतता किस बात की? आचार्यश्री महाश्रमण

संयम के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ रापर पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए परम पूज्य ने फरमाया कि शास्त्राकार ने मानो एक सुन्दर सन्देश दिया है कि आयुष्य सीमित है तो तुम किस चीज को सामने रखकर, किस कारण को सामने रखकर अपने योगक्षेम की ओर ध्यान नहीं दे रहे हो? हर प्राणी का आयुष्य एक दिन समाप्त होता है। तीर्थंकर और चक्रवर्ती जैसे उत्तम पुरूष का आयुष्य भी एक दिन समाप्त होता है। भगवान महावीर तो जीवन के आठवें दशक के पूर्वाद्ध में ही निर्वाण को प्राप्त हो गये थे। वर्तमान में तो 90-100 की आयु वाले मिलते हैं पर जैसे-जैसे काल बढ़ रहा है मनुष्य की आयु 16-20 वर्ष की हो जायेगी। सीमित आयुष्य होते हुए भी व्यक्ति निश्चिंत बैठा है, अपने बारे में सोचता नहीं है।
अगले जन्म पर भी हमारा ध्यान जाना चाहिये, अपने योगक्षेम पर ध्यान देना चाहिये। आत्मा का सम्बन्ध पुनर्जन्म से जुड़ा हुआ है। आत्मा 84 लाख जीवन योनियों में भ्रमण करती है। कई जीव तो अव्यवहार राशि-वनस्पतिकाय में निरन्तर जन्म-मरण करते रहते हैं। जब कोई जीव मोक्ष में जाता है तो अव्यवहार राशि से जीव व्यवहार राशि में आता है। जब तक मोक्षावस्था नहीं मिलेगी जन्म-मरण होता रहेगा। कषाय है, मोहनीय कर्म है तो पुनर्जन्म होता रहेगा। कषाय और मोहनीय कर्म क्षय को प्राप्त हो गये तो फिर अगला जन्म नहीं होगा। जैन ग्रन्थों में तो पुनर्जन्म की कितनी बातें हमें प्राप्त होती है। व्यक्ति सोचता है कि संसार के काम-भोग तो हाथ में आये हुए हैं। कौन जानता है कि परलोक है या नहीं फिर प्राप्त सुखों को क्यूं छोडूं। नास्तिक विचारधारा वाला तो पुनर्जन्म व परलोक को मानता ही नहीं।
यदि सन्देह है कि परलोक है या नहीं इस सन्दर्भ में तुम्हें दो बातों पर ध्यान देना है। पहली बात है- अशुभ, पाप का काम छोड़ दो। दूसरी बात है शुभ और अच्छे काम करो। इस मार्ग पर चलने से मानलो पुनर्जन्म नहीं है तो तुम्हारा नुक़सान नहीं होगा। वर्तमान जीवन तो अच्छा रहेगा। अगर परलोक, पुनर्जन्म और पुण्य-पाप के फल हैं तो भी अच्छा रहेगा। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि आचार्यवर दूसरी बार कच्छ की यात्रा करवा रहे हैं। तेरापंथ धर्म संघ एक तेजस्वी धर्म संघ है। इसकी तेजस्विता उत्तरोतर बढ़ रही है। इस तेजस्विता का कारण है कि संघ के प्रत्येक सदस्य में श्रद्धा, अनुशासन की भावना कूट-कूट कर भरी है।
गण की डोर एक आचार्य के हाथ में है। गुरु की दृष्टि में ही सृष्टि है। श्रद्धा के कारण ही नये-नये आयाम स्थापित हो रहे हैं। गुरु तंत्र के कारण ही तेरापंथ प्रगति कर रहा है। पूज्यवर के स्वागत में तेरापंथ महिला मंडल ने स्वागत गीत की प्रस्तुति दी। लब्धि व मिली मेहता ने 'बेटी तेरापंथ की' की ओर से अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।