
गुरुवाणी/ केन्द्र
ज्ञान युक्त आचार से मिल सकती है पूर्णता : आचार्यश्री महाश्रमण
जिनशासन के सजग प्रहरी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 13 किमी का विहार कर कूड़ा जामपर के प्राथमिक विद्यालय में पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि ज्ञान और आचार ये दो चीजें है। एक-दूसरे से सम्बन्धित भी हैं तो एक-दूसरे से अलग भी हो सकती हैं। सम्बन्धित ऐसे कि पहले जानो फिर आचरण करो। अहिंसा, ईमानदारी, सेवा, भक्ति, धर्म इनको पहले जानो फिर आचरण करो। हम ज्ञान को ईंजन मान लें तो आचार डिब्बों की तरह है, आगे ज्ञान फिर आचरण। इसलिए ज्ञान पूर्वक आचरण करो। शिक्षा-ज्ञान की बात है। नशामुक्ति, चोरी नहीं करना आचरण है। हमारे जीवन में शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है तो चरित्र भी बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा में अच्छे संस्कारों की भी बात हो। कोरा ज्ञान अधूरा है, आधा हिस्सा आचरण का है। इन दोनों के मिलने से पूरा एक हो सकता है।
परस्परोपग्रहो जीवानाम् - जीव एक दूसरे का सहयोग करे। समुपस्थित विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया - आपस में लड़ाई झगड़ा न करें, मैत्री का भाव रखें। चोरी नहीं करनी चाहिये। नशीली चीजों का भी सेवन न करें। ज्ञान और आचार दोनों की सम्पतियां विद्यार्थी में होती है, तो विद्यार्थी कितना सम्पन्न हो सकता है। स्कूल के दिन बड़े महत्वपूर्ण होते हैं। विद्यार्थी का शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक और भावनात्मक विकास हो। सद् ज्ञान का महत्व है, वेशभूषा का थोड़ा मूल्य है। जीवन में सद्गुणों के आभूषण पहनें। इनका विकास करने का प्रयास करें। संस्कारें का पुष्टिकरण होता रहे। एक बच्चा ही महापुरूष बनता है। हम अच्छा काम करते रहें। बच्चों में धार्मिकता, नैतिकता का विकास होता रहे। पूज्यवर ने विद्यार्थियों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के महत्व को समझाकर संकल्प स्वीकार करवाये। पूज्यवर के स्वागत में प्राथमिक शाला के शिक्षक किरणभाई सोलंकी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।