जीवन भर के लिए सब पापों का त्याग करना है साधुत्व

गुरुवाणी/ केन्द्र

गंगाशहर।

जीवन भर के लिए सब पापों का त्याग करना है साधुत्व

बोथरा भवन में दीक्षार्थी कल्प मेहता का स्वागत उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमलकुमारजी के सान्निध्य में आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुनि कमल कुमारजी ने कहा कि मुनि शरीर को भले छोड़े पर धर्म को न छोड़े। हम सभी में अपने गुरूदेव के प्रति अश्रद्धा के भाव नहीं आने चाहिए, गुरू के प्रति अपनी आस्था को सुदृढ़ रखना चाहिए। आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ दोनों प्रायोगिक धर्माचार्य हुए थे। वे प्रयोग के द्वारा रोग ठीक करते थे। स्वामी जी ने जो सिद्धान्त दिये थे उन सिद्धान्तों के कारण ही आज हम सब एक है। आचार्य श्री तुलसी एक समयज्ञ गुरु हुए, जिन्होंने कितने-कितने काम किए, तेयुप, किशोर मण्डल, महिला मण्डल, कन्या मण्डल जैसी संस्थाओं का निर्माण किया।
मुनिश्री ने दीक्षार्थी कल्प के लिए कहा कि साधुत्व को स्वीकार करना हंसी खेल नहीं, जीवन भर के लिए सब पापों का त्याग करना होता है। जो साधु सचेत होता जागरूक होता है तो वह इस लोक और पर लोक दोनों में सुखी होता है। मुनिश्री ने कल्प को शिक्षा देते हुए कहा कि साधुपण में रम जाना, गुरू भेजे वहीं जम जाना। मुनि श्रेयांसकुमारजी ने कल्प के लिए संयम पथ पर उत्तरोत्तर विकास की कामना के साथ गीत का संगान किया। मुनि विमलविहारीजी ने कहा कि दीक्षा वही ले सकता है जिसका संकल्प मजबूत होता है। मुनि प्रबोधकुमारजी, मुनि नमिकुमारजी, मुनि मुकेशकुमारजी ने कल्प के भावी जीवन की मंगल कामना करते हुए अपने विचार व्यक्त किए। दीक्षार्थी कल्प ने कहा कि आत्मा में रमण करना, आत्मा में लीन हो जाना ही असली साधु जीवन है। जैसे पानी पुरी चाहे कितनी भी खा लो लेकिन मन नहीं भरता इसी प्रकार मन यही करता है कि मुनि कमलकुमार जी मुझे और प्रेरणा देते रहें। तेरापंथी सभा के मंत्री जतन संचेती ने कहा कि संयम जीवन में चलने वाला अपना सम्पूर्ण रिजर्वेशन कर लेता है। दीक्षार्थी कल्प अपना आध्यात्मिक विकास करता रहे। दीक्षार्थी कल्प का स्वागत तेरापंथ न्यास के न्यासी जैन लूणकरण छाजेड़ ने व तेरापंथी सभा के उपाध्यक्ष पवन छाजेड़ ने पताका और साहित्य भेंट करके किया।