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होली पर्व पर विविध आध्यात्मिक कार्यक्रम
होली चातुर्मास के अवसर पर तेरापंथ भवन बोलाराम में डॉ. साध्वी गवेषणाश्री जी ने कहा - होली भारत का प्रमुख पर्व है। चैत्र मास के प्रारंभ के साथ ही पतझड की विदाई और बसंत का आगमन हो जाता है। बसंत उल्लास की ऋतु है। यह उत्सव राग-रंग का पर्व है। मुख्य रूप से यह पर्व खेती और किसानों का पर्व है। इस पर्व का स्वास्थ्य के साथ भी गहरा संबंध है। आरोग्य की चर्चा करें तो आदमी का मन, शरीर, स्वास्थ्य आदि रंगों से प्रभावित होते है, इसीलिए कि वह स्वयं रंगमय है। भगवती सूत्र में आता है कि हिंसा का भी अपना रंग है। झूठ, चोरी, मोह, ईर्ष्या का भी अपना रंग है। रंगों के आधार पर एक सिद्धान्त् का विकास हुआ वह है- लेश्या। हमारी सारी भावधारा लेश्या है। हमारे प्रत्येक विकास के साथ लेश्याओं का संबंध है। इसीलिए आवश्यकता है यह रंगो का पर्व लेश्या के संग खेले तो आरोग्य का पर्व हो सकता है। साध्वी मेरुप्रभाजी ने सुमधुर गीत का संगान किया। साध्वी दक्षप्रभाजी ने भी मधुर संगान के साथ अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम की शुरुआत स्थानीय महिला मंडल के मंगलाचरण से हुई। बोलाराम तेरापंथ सभा के अध्यक्ष रतन सुराणा व सिंकदराबाद सभा के अध्यक्ष सुशील संचेती ने अपने विचार रखे।
नवयुवती बहनों ने पंच-परमेष्ठी के रंगों की महत्ता बताते हुए सुंदर प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन साध्वी मयंकप्रभाजी ने किया।