विशिष्ट संपदाओं के धनी थे गणाधिपति गुरुदेवश्री तुलसी : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

विशिष्ट संपदाओं के धनी थे गणाधिपति गुरुदेवश्री तुलसी : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 6 नवंबर, 2021
कार्तिक शुक्ला द्वितीया। आज से लगभग 107 वर्ष पूर्व राजस्थान के लाडनूं शहर में तेरापंथ के नवम अधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी का जन्म माँ वंदना की कुक्षी से हुआ था। वो माता-पिता भी धन्य हो जाते हैं, जिनके यहाँ भावी अणगार का अवतरण होता है। तेरापंथ धर्मसंघ में आज के दिन को अणुव्रत दिवस के रूप में समायोजित किया जाता है। अणुव्रत दिवस पर अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि अर्हत् वाङ्मय में कहा गया हैआकाश अनंत है। उस अनंत आकाश का एक हिस्सा, बहुत छोटा सा हिस्सा लोकाकाश है। लोकाकाश के भी एक हिस्से में एक चंद्रमा को भी देखते हैं, सूर्य को भी देखते हैं। शास्त्र में आचार्य की अभिवंदना-वंदना की गई है। उस वंदना के भीतर कुछ अंशों में आचार्य का स्वरूप भी प्रकट किया गया है। दशवैकालिक आगम के नौवें अध्ययन के श्‍लोकों में आचार्य को कुछ करणीय पथदर्शन देने वाले भी मिल सकते हैं। शिष्यों के तो वे अभिवंदना के रूप में उच्चारणीय हो सकते हैं। आचार्यों से उन्हें पथदर्शन पाने के लिए भी वे उपयुक्‍त योग्य बन सकते हैं। जो गुरु मुझे सतत अनुशिष्टि देते हैं, उन गुरुओं की मैं सतत पूजा करता हूँ। ये शिष्य की ओर से है। इससे आचार्य यह स्मृति कर सकते हैं कि शिष्य मेरी पूजा इसलिए करता है कि मैं उसे सतत अनुशिष्टि देता हूँ, तो मेरे द्वारा अनुशिष्टि दी जाती रहे, ताकि मैं पूजा के योग्य बना रह सकूँ। आचार्यों की शृंखला में मैंने या हममें से कुछ ने देखा वो थेआचार्य तुलसी। शास्त्र में कहा गया है कि चंद्रमा कौमुदि से जैसे निर्झर आकाश में शोभायमान होता है, नक्षत्र तारायण से परिवृत्त होकर, वैसे आचार्य भिक्षुओं के मध्य शोभायमान होते हैं। आचार्य तुलसी की मैं स्मृति करता हूँ तो उनका मुखारविंद जो था वो चंद्रमा के समान, मुस्कान भरा वदनारविंद सामने आता है। विराजमान होते, तो मानो कोई राजा-महाराजा विराजमान हैं। कोई विशिष्ट व्यक्‍तित्व या दर्शनीय मूर्ति विराजामन है। मेरी द‍ृष्टि में शरीर का ज्यादा महत्त्व नहीं है। महत्त्व आदमी की साधना, ज्ञान, योग्यता का है। शरीर का थोड़ा महत्त्व हो सकता है। शरीर की सक्षमता का कुछ अधिक महत्त्व है। गुरुदेव तुलसी में ये सारे गुण देखे हैं। उनके पास शरीर संपदा भी थी। उनकी प्रतिभा अपने ढंग की थी, कुछ विशिष्ट थी। उनके पास वाणी की संपदा, गीत की संपदा भी थी। गीत बनाने और गाने की भी संपदा थी। उनके पास जो राग-रागिनियों का ज्ञान था, वो विरल कहा जा सकता है। आज के दिन एक महापुरुष ने इस धरती पर जन्म ग्रहण किया था। ऐसे सपूत को जन्म देने वाली मातृभूमि लाडनूं है। गुरुदेव तुलसी ने अपने जीवन में कितने कार्य किए। उन्होंने समण-श्रेणी का प्रादुर्भाव किया। समण श्रेणी के जन्म को भी आज 41 वर्ष संपन्‍न हो रहा है। कितनी-कितनी समणियाँ और समण इस श्रेणी में आए हैं। समणियाँ अपने ढंग से कार्य करती हैं। समण श्रेणी का भी अच्छा साधना का पक्ष रहे। साध्वीवर्या जी इनकी व्यवस्था में अच्छा योगदान दे रही हैं।
परमपूज्य गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत का जो सूत्रपात किया, मानव जाति के लिए वह एक कल्याणकारी कार्य है। वे स्वयं अणुव्रत के प्रति प्रेम का विशेष भाव रखने वाले थे। अणुव्रत उनका प्रिय विषय था। कितना-कितना अणुव्रत का प्रचार कर अणुव्रत को पोषण देते रहते थे। अनेकों संस्थाएँ अणुव्रत से जुड़ी रही हैं। अणुव्रत न्यास आध्यात्मिक-धार्मिक संदर्भों में अलग योग्दान दे सकती हैं।
अणुव्रत विश्‍व भारती भी एक ऐसी संस्था बन पड़ी है, जिसमें व्यापकता आ गई है। अनेक गतिविधियाँ आज उस संस्था के अंतर्गत समाहित है। अनेक कार्यकर्ता इससे जुड़े हुए हैं। वे अपनी शक्‍ति का नियोजन अणुव्रत के प्रचार-प्रसार में करते रहें। अणुव्रत नैतिकता, संयम पर आधारित कार्यक्रम है। परमपूज्य आचार्य महाप्रज्ञ जी का साया भी अणुव्रत को मिला था।
अणुव्रत के प्रवर्तक आचार्य तुलसी का जन्म दिवस अणुव्रत दिवस के रूप में प्रतिष्ठित है। मानव-मानव में नैतिकता, संयम, सद्भावना की चेतना जिस आंदोलन में है, उस आंदोलन को बढ़ाने में चारित्रात्माओं की शक्‍ति लगे और कार्यकर्ताओं की शक्‍ति भी लगे। अणुव्रत का काम आगे बढ़ता रहे। आज का दिन आचार्य तुलसी जन्म दिवस, समण श्रेणी दिवस और अणुव्रत दिवस से जुड़ा हुआ है। हम सभी अणुव्रत के कार्य करते रहें, यह काम्य है। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कहा कि गुरुदेव तुलसी का जन्म अकेला नहीं है। यह एक त्रिपदी है। ऐसा भी समय था हमारे धर्मसंघ में कोई जन्म दिवस या महोत्सव नहीं मनाया जाता था। पूज्य जयाचार्य की सूझबूझ से तीन महत्त्वपूर्ण उत्सव शुरू हुए, पर आचार्यों का जन्म दिवस नहीं मनाया जाता था। वि0सं0 2010 में जोधपुर चतुर्मास में स्थानीय प्रबुद्ध लोगों ने गुरुदेव से जन्म दिवस मनाने की सहमति ली और बोले। अच्छी प्रस्तुतियाँ हुई तो गुरुदेव को लगा कि इस दिन को निमित्त बनाकर हमारे साधु-साध्वियाँ भी बोलने-लिखने में गति कर सकते हैं। तो इस क्रम को चलाना चाहिए। उसके बाद गुरुदेव का जन्म दिन मुंबई में सामान्य रूप में मनाया गया। गुरुदेव जन्मदिन पर कुछ संकल्प रूप में नए-नए प्रयोग करते थे। उस दिन कार्यक्रम लंबा चला था तो गुरुदेव ने एक प्रयोग किया था21 घंटे का मौन। उसके बाद अनेक रूपों में जन्म दिन मनाया जाने लगा। अणुव्रत आंदोलन से तेरापंथ की ख्याति बढ़ी। अनेक संप्रदाय के लोग संपर्क में आए, प्रभावित भी हुए। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि आज के दिन मुझे वह द‍ृश्य आँखों के सामने दिखाई दे रहा है, जिस दिन हम एक नए मार्ग पर अग्रसर हो रहे थे। हमें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था कि हमें किस मार्ग में आगे बढ़ना है। हमारे लिए आधार थे हमारे गुरुदेव। उन्होंने जैसा मार्ग-दर्शन हमें दिया, उस मार्ग पर आगे बढ़ते रहें, चलते रहें। 
साध्वीवर्या जी ने कहा कि जीवन में सफलता के लिए तीन बातों की आवश्यकता होती हैआशीर्वाद, संकल्पशक्‍ति और पुण्याई। जिस व्यक्‍ति में इन तीनों का योग होता है, सफलता उसके दरवाजे पर दस्तक देती है। ये तीनों बातें हम देखें तो आचार्यश्री तुलसी के जीवन में पूर्णत: घटित होती है। मुख्य मुनिप्रवर ने कहा कि परमपूज्य गुरुदेव तुलसी का परिचय एक अत्यंत विराट व्यक्‍तित्व था। मानव के भगवान बनकर इस धरती पर आए थे। उन्होंने अणुव्रत धर्म के माध्यम से पूरे विश्‍व को मानव धर्म दिया था। उनका जीवन पुरुषार्थ की एक महनीय गौरव गाथा है। सुमधुर गीत का संगान किया। मुनि मनन कुमार जी जो अणुव्रत के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक हैं, ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। समणीवृंद्ध ने समूह गीत की प्रस्तुति दी। अणुव्रत विश्‍व भारती के संचय जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। ममता प्रकाश बुरड़ ने 19 की तपस्या के प्रत्याख्यान पूज्यप्रवर से लिए। अणुव्रत के संकल्प शृंखला अणुव्रत क्रिएटिवीटी कोंटेस्ट, नशामुक्‍ति व जीवन-विज्ञान दिवस पोस्टर श्रीचरणों में दिखाए गए। अणुव्रत समिति, भीलवाड़ा के उपाध्यक्ष लक्ष्मीलाल झाबक ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।