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प्रेक्षा ध्यान, जीवन-विज्ञान और साहित्य के महान आचार्य को 16वें महाप्रयाण दिवस पर विविध कार्यक्रम
तेरापंथ धर्म संघ के 10वें आचार्य, युगद्रष्टा संत आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का 16वाँ महाप्रयाण दिवस बोथरा भवन, गंगाशहर में उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमलकुमार जी के सान्निध्य में श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया गया। मुनिश्री ने आचार्यश्री को योगीराज, करुणामूर्ति और ज्ञान-योग के धनी संत बताते हुए कहा कि उनका सभी के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध था। उनके विचारों और साहित्य से प्रभावित होकर अनेक विद्वान, चिंतक, सरकारी अधिकारी, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर आदि ने अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन किए। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम उनके अनन्य भक्तों में थे। मुनिश्री ने आगे कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ जी ज्ञान के अहंकार से रहित, विकारमुक्त और एक सच्चे योगीराज थे। आचार्य तुलसी ने उन्हें युवाचार्य के रूप में नियुक्त किया था, और दोनों का संबंध 'दो शरीर, एक आत्मा' के समान था। उनमें विद्या, विनय, विवेक और समर्पण का अनुपम संगम था। मुनि श्रेयांशकुमार जी ने कविता और गीतिका के माध्यम से भावांजलि अर्पित की। मुनि प्रबोधकुमार जी ने आचार्यश्री की सरस्वती-संपन्न वाणी और साहित्य के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि उनकी रचनाएं मौलिक और जीवन परिवर्तक थीं। आगम साहित्य पर उनकी टीकाएं और भाष्य आज भी जन-जन को मार्गदर्शन दे रहे हैं।
मुनि विमलविहारी जी ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ जी ने प्रेक्षा ध्यान के माध्यम से तनावमुक्त जीवन का मार्ग दिखाया। मुनि नमिकुमार जी ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि 2007-2009 के बीच की सेवाओं ने उनके भीतर वैराग्य के बीजों का अंकुरण किया, जो 2016 में आचार्य श्री महाश्रमण जी से दीक्षा के रूप में परिणत हुआ। मुनि मुकेशकुमार जी ने गीतिका का संगान किया। इससे पूर्व प्रातः काल चौरडिया चौक स्थित 'महाप्रज्ञ स्तंभ' के समीप मुनि कमलकुमार जी के सान्निध्य में विशेष कार्यक्रम आयोजित हुआ। 'ॐ श्री महाप्रज्ञ गुरवे नमः' के जाप के साथ प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में मुनिश्री ने आचार्यश्री द्वारा प्रदत्त प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान और सत् साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने का आह्वान किया। उन्होंने जप, तप और स्वाध्याय के महत्व पर बल देते हुए आत्मिक उन्नति की प्रेरणा दी। इसी कड़ी में महाप्रज्ञ प्रेक्षा योग आरोग्य केंद्र द्वारा आयोजित दो दिवसीय प्राकृतिक चिकित्सा शिविर का शुभारंभ नथमल जुगराज बणोट के निवास स्थान पर मुनिश्री के मंगलपाठ के साथ हुआ। मुनिश्री ने भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं ध्यान योग की उपयोगिता को रेखांकित किया। थेरापिस्ट सत्य प्रकाश सांखला ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। भावांजलि सत्र में अनेक वक्ताओं ने कविता, मुक्तक, गीतिका और वक्तव्यों के माध्यम से आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी को श्रद्धा सुमन अर्पित किए।