आत्मा के कल्याण के लिए मानव जीवन जीने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

पालनपुर। 6 मई, 2025

आत्मा के कल्याण के लिए मानव जीवन जीने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

संयम और साधना के प्रतीक, अहिंसा यात्रा के यशस्वी पथिक तथा अणुव्रत आंदोलन के वर्तमान नेतृत्वकर्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का 64वां जन्म दिवस पालनपुर में अत्यंत श्रद्धा, भक्ति और समर्पण के वातावरण में मनाया गया। 63 वर्ष पूर्व सरदारशहर के दुगड़ परिवार में माता नेमा की पुण्य कुक्षि से बालक ‘मोहन’ के रूप में जन्मे। तेजस्वी बालक आगे चलकर मुनि सुमेरमल जी से दीक्षा लेकर ‘मुनि मुदित’ बन गए। पूज्य गुरुदेव तुलसी की दूरदृष्टि ने उन्हें महाश्रमण पद पर प्रतिष्ठित किया, और पूज्य आचार्य महाप्रज्ञजी ने उन्हें युवाचार्य घोषित किया। आज वे सम्पूर्ण तेरापंथ धर्मसंघ के अधिपति हैं — जन-जन के मनमोहन - ज्योतिचरण श्री महाश्रमण। परम पावन आचार्य प्रवर के 64 वें जन्मोत्सव के पावन अवसर पर गुजरात के राज्यपाल महामहिम आचार्य देवव्रतजी विशेष रूप से उपस्थित हुए।
भाग्य और पुरुषार्थ की हो संतुलित साधना
अपने जन्मोत्सव पर पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फ़रमाया — एक प्रश्न हो सकता है कि जीवन क्यों जिएं? प्राचीन साहित्य में 84 लाख जीव योनियां बताई गई हैं, उनमें यह मानव जीवन जो हमें प्राप्त है वह दुर्लभ है। मानव जीवन मिल गया है तो यह विशेष चीज़ मिल गई। जन्म-मरण से, अत्यंत दुःख से मुक्ति इस मानव जीवन से ही हो सकती है। जन्म होना एक सामान्य घटना है। जन्म तो हर प्राणी लेता है। विशेष बात यह है कि जन्म लेने के बाद आदमी जीवन में सत्पुरुषार्थ क्या करता है? अच्छा पुरुषार्थ करने वाला अच्छे फल को प्राप्त कर सकता है। इच्छित फल न मिलने से निराशा भी हो सकती है। दो अवधारणाएं हैं — भाग्यवाद और पुरुषार्थवाद। मैं भाग्यवाद को भी मानता हूं। कर्मवाद भाग्यवाद से जुड़ा है। कर्तव्य पुरुषार्थ है। भाग्यवाद को जान लें, पर भाग्य को भी अच्छा बनाना है तो पुरुषार्थ करना होगा। प्रयत्न करने पर भी सिद्धि, सफलता न मिले तो इसमें कोई दोष नहीं है। दुबारा पुरुषार्थ करो, सफलता मिल भी जाए। कोई पुरुषार्थ ऐसा नहीं होता जिसका कोई फल नहीं होता है। देर भले हो जाए, अंधेर नहीं है।
मानव जीवन में भी यदि कोई संन्यास को प्राप्त कर लेता है तो बहुत बड़े सौभाग्य की बात है। संन्यास की तुलना में दूसरी भौतिक संपदा नहीं आ सकती। जिसने शुद्ध संन्यास पाल लिया, वह धन्य हो जाता है। त्याग के समान सुख नहीं, और राग के समान दुख नहीं। जो त्याग के मार्ग पर चलता है, वह महानता के मार्ग पर अग्रसर होता है। जीवन क्यों जीएं, इसका समाधान शास्त्र के माध्यम से दिया गया कि मानव जीवन में धर्म के मार्ग पर चलते हुए मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा के कल्याण के लिए मानव जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। पूज्यवर ने संन्यास को जीवन का सर्वोच्च पुरुषार्थ बताते हुए कहा कि आज वैशाख शुक्ल नवमी है। मैं जन्म दिवस को ज्यादा महत्त्व नहीं देता। संन्यास लेना महत्त्व की बात है।
आप भी संन्यास ले लेना
राज्यपाल महोदय की उपस्थिति पर पूज्यप्रवर ने कहा — आज महामहिम राज्यपाल महोदय का आगमन होना महत्वपूर्ण है। आपका पांच बार पदार्पण होना बड़ी बात है। मुझे याद नहीं कि कोई एक राज्यपाल यहां पांच बार आए हों। आपके भाषण मुझे अच्छे लगते हैं। आपका भाषण संन्यासी का-सा भाषण लगता है। कभी मौका आए तो आप भी संन्यास ले लेना। पूज्यवर ने आगे कहा - दुगड़ परिवार भी आया है, सुजानमलजी नहीं आ पाए। पूरे परिवार में धार्मिकता के अच्छे संस्कार बने रहें। मुझमें भी धार्मिक-आध्यात्मिकता साधना का विकास होता रहे। राज्यपाल महोदय ने पूज्यवर की कृति 'तीन बातें ज्ञान की' के अंग्रेज़ी संस्करण 'Three Aspects of Wisdom' को पुज्य्प्रवर को अर्पित कर पुस्तक का लोकार्पण किया। यह पुस्तक जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित की गई है।
राज्यपाल महोदय ने अपनी भावपूर्ण कविता में संन्यास को यूँ परिभाषित किया —
'है संन्यास क्या — ग़म में औरों के गलना,
पड़ी चिता में औरों के जलना,
खंजर की धारा पर पग धरकर चलना,
न हरगिज़ हिचकना, न हरगिज़ मचलना।
इधर तोड़ना बंधन सब खानुमां के,
इधर बाप बन जाना सारे जहां के।
किया संन्यास का रुतबा आला,
तपस्वी महाश्रमण जी, तेरा बोलबाला।''
उन्होंने आगे कहा, 'जन्म-जन्मांतर का संयोग होता है, तब मुझे आपके कार्यक्रम में पांचवीं बार आने अवसर मिला है। आपके विचार, आपका जीवन दर्शन, प्राणी मात्र के प्रति करुणा और दया का भाव — सही अर्थों में बहुत बड़ी प्रेरणा है। पूज्य आचार्य महाश्रमण जी ने संन्यास धर्म का पालन करते हुए अपना सम्पूर्ण जीवन प्राणीमात्र की भलाई के लिए समर्पित किया है। आपके प्रवचनों में युवा पीढ़ी को नशामुक्त बनाना, जीवन चरित्र ऊंचा करना, सामाजिक कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना — ये प्रेरणाएं मिलती हैं। आचार्यजी का चिंतन एक बहुत बड़ा मार्गदर्शन है। आप महातपस्वी और संयमी हैं और शास्त्रों के साथ जुड़कर हमारी परम्पराओं और सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना करने में आपका बहुत बड़ा योगदान रहता है। ऐसे महापुरुष का जन्मदिन हम सबके के लिए एक प्रेरणा है। मैं पूज्यश्री के जन्मदिन पर मंगलकामना करता हूं कि आप शतायु हों, मानवता का कल्याण करते रहें। आपका सान्निध्य हम सभी को प्राप्त होता रहे।
साध्वीवर्याश्री संबुद्धयशाजी ने कहा कि आचार्य प्रवर पांव-पांव चलने वाले महासूर्य हैं। आप प्रबल पुरुषार्थी और पुण्यशाली हैं। आपको लींबड़ी संप्रदाय के आचार्यजी ने 'पुण्य सम्राट' अलंकरण से उपमित किया था। आपकी श्रम-निष्ठा, तपो-निष्ठा महान है। श्रम से आप मोती निपजाते हुए धर्मसंघ की श्रीवृद्धि करवा रहे हैं। आप व्यक्तित्व निर्माण की कार्यशाला हैं। पूज्यवर के मंगल प्रवचन से पूर्व तेरापंथ समाज-पालनपुर ने गीत की प्रस्तुति दी। मुनि अक्षयप्रकाशजी, मुनि चिन्मयकुमारजी, मुनि गौरवकुमारजी, मुनि संयमकुमारजी, मुनि केशीकुमारजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। मुनि राजकुमारजी, मुनि नम्रकुमारजी ने गीत का संगान किया। साध्वी विशालयशाजी, साध्वी सुमतिप्रभाजी, साध्वी ख्यातयशाजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वी प्रवीणप्रभाजी एवं साध्वी आर्षप्रभाजी ने अपनी संयुक्त प्रस्तुति दी। समणी निर्मलप्रज्ञाजी ने भी अपनी प्रस्तुति दी।
आचार्यश्री के संसारपक्षीय भाई श्रीचंद दूगड़, महेन्द्र दूगड़ व रत्नी बाई और मैत्री बोथरा ने अपनी प्रस्तुति दी। दूगड़ परिवार की ओर से गीत को प्रस्तुति दी गई। बालिका आद्या बच्छावत, पालनपुर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। मुमुक्षु भाइयों ने भी अपनी प्रस्तुति के द्वारा आचार्यश्री को वर्धापित किया। ‘दादी मां एक स्मृति पुस्तक’ नवनीत मूथा आदि द्वारा पूज्यप्रवर को निवेदित की गई। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।