लोभ को संतोष से परास्त करने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मालवापरा। 3 मई, 2025

लोभ को संतोष से परास्त करने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

अक्षय तृतीया महोत्सव के निमित्त चार दिवसीय डीसा प्रवास सम्पन्न कर, अप्रमत की साधना के साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 12 किमी का विहार कर मालवापरा की प्राथमिक शाला में पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए परम पावन ने फरमाया कि व्यक्ति के भीतर इच्छा जागृत होती है, लोभ का भाव जागता है। शास्त्र में कहा गया है कि एक लोभी आदमी को यदि सोने-चांदी के असंख्य-असंख्य पर्वत भी मिल जाएं, तो भी उसे संतोष नहीं मिलता। ऐसा होने का कारण है कि इच्छाएं आकाश के समान अनंत होती हैं। जैन श्रावकों के बारह व्रतों में पाँचवां व्रत है - इच्छा परिणाम व्रत। व्यक्ति को इच्छाओं को सीमित रखना चाहिए। तीन तरह के व्यक्ति हो सकते हैं - महेच्छ, अल्पेच्छ और अनेच्छ। आदमी को इच्छाओं का अल्पीकरण करने का प्रयास करना चाहिए। संतोष से लोभ पर नियंत्रण किया जा सकता है।
मूढ़ और मोहग्रस्त व्यक्ति लोभ परायण होता है, पर पंडित आदमी अलोभ परायण होता है। संतोष परम सुख होता है। अनेक प्रकार के धन बताए गए हैं, पर संतोष धन के सामने सब धन धूलि समान होते हैं। हमें लोभ को संतोष से परास्त करने का प्रयास करना चाहिए। पूज्यवर ने समझाया कि जिस तरह जिसने जूता पहन लिया, उसके लिए पूरी धरती चमड़े से मढ़ी हुई के समान है, वैसे ही संतोषी व्यक्ति ने संतोष धारण कर लिया, उसके लिए सब जगह सम्पदा ही सम्पदा है। आप लोग गृहस्थ हैं, पर व्यापार-कमाई में ज्यादा लालच न करें। नुकसान भी अगर हो जाए, तो दुःखी-निराश न हों। असफलता के कारणों को खोजें। पुरुषार्थ करना अपने हाथ की बात है, सफलता या फल मिलना अपने हाथ की बात नहीं है। जीवन के विभिन्न पहलुओं में हमें संतोष रखना चाहिए। जीवन में संतोष एक धन है, वह हमें प्राप्त हो जाए, यही बड़ी बात है। पूज्यवर के स्वागत में विद्यालय परिवार से प्रिंसिपल अशोक भाई प्रजापति व दिलीप भाई शाह ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।