चारित्र की ऊंचाई को साधें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आखोल। 28 अप्रैल, 2025

चारित्र की ऊंचाई को साधें : आचार्यश्री महाश्रमण

भरत क्षेत्र में भी महाविदेह का आभास कराने वाले आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 9 किमी का विहार कर आखोल स्थित श्री महाविदेह तीर्थधाम में पधारे। तीर्थंकर वाणी का रसास्वादन कराते हुए परम पुरुष ने फरमाया कि संसार में साधु होते हैं—कोई वेषधारी, कोई नामधारी, तो कोई भाव-निक्षेप से साधु होता है। यदि साधु है पर साधुता नहीं है, तो वह केवल नामधारी है। भाव-निक्षेप वाला साधु वह है, जिसमें छठे गुणस्थान से लेकर चतुर्दश गुणस्थान तक की स्थिति संभव है। भाव-निक्षेप से युक्त साधुता ही कल्याणकारी होती है। भाव-निक्षेप अर्थात जो वस्तुतः साधु है, मूलतः वही सच्चा साधु है। माध्यम कोई भी हो सकता है—हम भाषा के माध्यम से जानने का प्रयास करते हैं, चाहे वह नाम हो, शब्द हो, रूप हो या स्थापना।
पूज्यवर ने कहा, 'आज हम महाविदेह तीर्थ में आए हैं। यह नाम-स्थापना-निक्षेप हो सकता है। हमारे मुख से बार-बार सीमंधर स्वामी का नाम आता है। वर्तमान में अर्हत सीमंधर स्वामी विद्यमान हैं। प्रश्न यह उठता है कि उनका नाम बार-बार क्यों आता है? क्या सीमंधर स्वामी कोई पुरुष दानी हैं? नहीं, बल्कि वह हमारे लिए सबसे निकटतम अर्हत हैं। हमारे भीतर चारित्र की उच्चता बनी रहनी चाहिए। आज मुझे ऊंचे पट्ट पर बैठाया गया है—पर उसका अर्थ यही है कि हम चारित्र की ऊंचाई को साधें।' आचार्यश्री ने कहा, 'तीर्थंकर की देशना से जीवों का कल्याण संभव है। नाम तो केवल नाम है, किंतु भावरूप में जो है, वही भगवान हैं। हमारी परंपरा में भाव-निक्षेप ही वास्तविक साधुता है। जब तक जीवन है, साधुपना बना रहता है, पर मृत्यु के बाद आत्मा में वह नहीं रहता। केवल नाम-निक्षेप वाले वेषधारी नरकगामी हो सकते हैं। हमें चाहिए कि हम अहिंसा के पथ पर आगे बढ़ें—यही हमारा लक्ष्य हो, और वही हमारे लिए कल्याणकारी हो।'
साध्वी संचितयशाजी की स्मृति सभा आयोजित मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में साध्वी संचितयशाजी की स्मृतिसभा का आयोजन किया गया। पूज्यवर ने उनका संक्षिप्त परिचय देते हुए बताया कि वे डबल एम.ए. और पीएच.डी. धारक थीं। वे चित्रकला एवं रंगाई में भी निपुण थीं। हम उनकी आत्मा के प्रति मंगलकामना करते हैं कि वे सीमंधर स्वामी के दर्शन करें और अपने अंतिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करें। आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने चार लोगस्स का ध्यान किया। मुख्य मुनि प्रवर ने कहा, 'हमारा धर्म संघ संसार रूपी समुद्र है, जिसमें अनेक रत्न हुए हैं। साध्वी संचितयशा जी एक डॉक्टर साध्वी थीं। उन्होंने अनेक साध्वियों की निष्काम भाव से सेवा की थी। साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने कहा, 'यदि व्यक्ति अपना जीवन समाधिपूर्वक जीता है, तो जीवन सफल हो जाता है। साध्वी संचितयशा जी एक साधना शील साध्वी थीं। उन्होंने समाधिमरण प्राप्त किया है। मैं स्वयं भी उनके साथ रही हूं। वे सेवा भावनाओं से युक्त थीं। हम प्रार्थना करते हैं कि वे शीघ्र मोक्ष श्री को वरण करें।' इस अवसर पर रेखा बोरदिया (डीसा) ने पूज्यवर से 43 उपवास की तपस्या का प्रत्याख्यान ग्रहण किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।a