सुसंस्कार और सद्गुण होते हैं जीवन की बड़ी संपत्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

पालनपुर। 5 मई, 2025

सुसंस्कार और सद्गुण होते हैं जीवन की बड़ी संपत्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्म संघ के महानायक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 8 किमी का विहार कर पालनपुर के एमबी कर्णावट हाईस्कूल परिसर में त्रिदिवसीय प्रवास हेतु पधारे। महामनीषी आचार्य प्रवर ने आर्हत वाणी की अमृत वर्षा कराते हुए फरमाया कि आदमी के जीवन में सद्गुणों का विकास होना चाहिए। हमारे जीवन की एक बड़ी संपत्ति सुसंस्कार और सद्गुण होते हैं। सद्गुणों का मूल उपादान हमारे भीतर हो सकता है। बच्चा कोरा कागज नहीं होता है; वह पीछे से भी संस्कार लेकर आता है, और वे संस्कार उभर सकते हैं। आत्मा का शाश्वत अस्तित्व है, और जन्म-जन्मांतर की परंपरा चलती रहती है।
सब साधु बने या न बने, पर उनमें संस्कारों का खजाना हो सकता है। संस्कार अच्छे-बुरे हो सकते हैं। गुरुदेव तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञजी पीछे से संस्कार लेकर आए थे। संस्कार उभरे और छोटी उम्र में ही साधु बन गए। पढ़ने से भी अच्छे संस्कार आ सकते हैं। अच्छे संस्कारों में रहने से अच्छे संस्कार प्राप्त हो सकते हैं। आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु पिछले जन्मों से संस्कार और ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम लेकर आए थे। शिक्षा संस्थानों में भी अच्छे संस्कार दिए जाते रहते हैं। जीवन विज्ञान से विद्यार्थियों का शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक संस्कारों का विकास हो सकता है।
शिक्षण संस्थानों से बौद्धिक संस्कारों के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी देने का प्रयास हो। बचपन में अच्छे संस्कार आ जाएँ और जीवन भर टिके रहें तो वह श्रेष्ठ हो सकता है। विद्यार्थियों में अनावश्यक घमंड न आए। विद्या विनय से शोभती है। ज्ञान का उपयोग करें, दुरुपयोग न करें। शक्ति व धन का भी घमंड न हो। निरहंकारिता भी एक अच्छा संस्कार है। अहंकार सुरापान के समान है। ज्ञान का दिखावा न हो, उपलब्धि हो सकती है, पर उसमें प्रदर्शन न हो। शक्ति हो, तो भी क्षमा रखें। गृहस्थ दान देते हैं, पर उसमें नाम की भावना न हो। हम सभी में अच्छे संस्कार रहें तो आत्मा श्रेष्ठ हो सकती है। आगे की गति भी उत्तम हो सकती है।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्यवर का 2025 का चातुर्मास तो अहमदाबाद में है, परंतु आचार्यवर गुजरात के हर क्षेत्र में प्रवास करवा रहे हैं। समुद्र का अवगाहन करने से रत्न मिलते हैं, वैसे ही महान व्यक्तियों का सान्निध्य भी व्यक्ति को महान बना देता है। संस्कार दो प्रकार के होते हैं – नैसर्गिक, जो बच्चा साथ में लेकर आता है, और अर्जित, जो जीवन में प्राप्त होते हैं। गुरु हमें अच्छे संस्कार देने वाले होते हैं। बच्चे को अच्छे संस्कार देने वाली माँ होती है।
हमारे भविष्य को अच्छा बनाने के लिए बच्चों को अच्छे संस्कार दें। बच्चों को आधुनिक बनाने के साथ-साथ आध्यात्मिक भी बनाएं। पूज्यवर के स्वागत में स्वागताध्यक्ष रसिकभाई मोदी, तेरापंथ सभा अध्यक्ष सुभाष खटेड, कार्यक्रम संयोजक किरीटभाई परीख, महिला मंडल अध्यक्ष सरोज चोरड़िया, कन्या मंडल से किंजल मोदी, विनोदभाई परीख, पालनपुर के विधायक अनिकेतभाई, कर्णावट स्कूल के प्रमुख ईश्वरभाई पटेल ने अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त कीं। समणी निर्मलप्रज्ञाजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। तेरापंथ महिला मंडल ने स्वागत गीत का संगान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।