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प्रेक्षा ध्यान, जीवन-विज्ञान और साहित्य के महान आचार्य के 16वें महाप्रयाण दिवस पर विविध कार्यक्रम
सिलवासा के तेरापंथ भवन में प्रेक्षा प्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की 16वीं वार्षिक पुण्यतिथि का आयोजन प्रोफेसर साध्वी डॉ. मंगलप्रज्ञा जी के सान्निध्य में श्रद्धा, समर्पण और साधना के साथ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए साध्वी मंगलप्रज्ञा जी ने कहा, 'आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी एक शक्तिशाली महापुरुष थे। उन्होंने भगवान महावीर के वचन ‘णो णिण्हवेज्ज वीरियं’—अपनी शक्ति का संगोपन मत करो—को जीवन में आत्मसात किया। पुरुषार्थ और पराक्रम के बल पर उन्होंने सफलता के शिखर को छुआ। वे प्रज्ञा के महासागर थे। असाधारण प्रतिभा लेकर टमकोर जैसे छोटे कस्बे में जन्म लेकर अपने विनय और समर्पण से विश्वविख्यात बन गए।'
उन्होंने कहा कि, 'महाप्रज्ञ जी द्वारा रचित साहित्य एक विशाल वैभव है, जिसमें व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं के समाधान समाहित हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वयं स्वीकार किया था कि वे महाप्रज्ञ साहित्य के प्रेमी पाठक हैं।' अपने अनुभव साझा करते हुए साध्वीश्री ने कहा, 'उनके श्रीचरणों में वर्षों तक साधना और शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलना मेरे जीवन का परम सौभाग्य रहा है। तुलसी-महाप्रज्ञ काल वास्तव में तेरापंथ का स्वर्णिम काल था। उनकी प्रज्ञा रश्मियों ने अनेकों व्यक्तित्वों को निखारा।' कार्यक्रम को प्रेरणादायक बनाते हुए साध्वीश्री ने कहा, 'आज महाप्रज्ञ पुण्यतिथि पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम वचन कटुता से बचें, जो आजकल वैमनस्य की स्थिति का कारण बनती है। सुसंस्कृत भाषा का प्रयोग करें, उपशांत कषायों की साधना करें और वर्तमान में शुभ संकल्पों के साथ आगे बढ़ें।' इस अवसर पर साध्वी वृन्द ने गीत का सुमधुर संगान किया। साध्वी अतुलयशा जी, साध्वी राजुलप्रभा जी और साध्वी चैतन्यप्रभा जी ने अपनी कविताओं और वक्तव्यों के माध्यम से श्रद्धा व्यक्त की। कार्यक्रम में तेरापंथ सभा सिलवासा के निवर्तमान अध्यक्ष नितेश भंडारी, अणुव्रत समिति की अध्यक्षा एडवोकेट मधुवाला जैन और तेरापंथ सभा वापी के अध्यक्ष झंवरलाल गुलगुलिया ने भी अपने श्रद्धासिक्त विचार प्रस्तुत किए। तेरापंथ महिला मंडल द्वारा सामूहिक संगान किया गया और रात्रिकालीन कार्यक्रम में ज्ञानशाला के विद्यार्थियों ने सुंदर प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन साध्वी सुदर्शनप्रभा जी ने किया।