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प्रेक्षा ध्यान, जीवन-विज्ञान और साहित्य के महान आचार्य के 16वें महाप्रयाण दिवस पर विविध कार्यक्रम
साध्वी अणिमाश्री जी के सान्निध्य में महावीर भवन के सुरम्य प्रांगण में आचार्य महाप्रज्ञ जी का 16वाँ महाप्रयाण दिवस श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया। साध्वीश्री ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा, 'तेरापंथ धर्मसंघ के नीलगगन में महाप्रज्ञ के रूप में प्रज्ञा के महासूर्य का अवतरण हुआ था। उस महासूर्य की प्रत्येक किरण नवीन और तेजस्वी थी। उनके मस्तिष्क में निरंतर नवीन विचारों का स्फुरण होता रहता था। उनके अचिंतन से उत्पन्न चिन्तन ने तेरापंथ धर्मसंघ को विकास के शिखरों पर आरूढ़ किया। उनका तृतीय नेत्र जागृत था, इसलिए उनकी प्रज्ञा ने कीर्तिमानों के नव कोष रचे।'
साध्वीश्री ने आगे कहा, 'उनके जीवन में महावीर जैसी समता, बुद्ध जैसी करुणा, आचार्य भिक्षु जैसी आचार-निष्ठा और सत्यनिष्ठा, जयाचार्य जैसी प्रज्ञा, तथा तुलसी जैसी तेजस्विता के दर्शन होते थे। वे उपशांत कषाय के हिमालय थे। उपशम कषाय की साधना ने उन्हें अगणित ऊर्जाएँ प्रदान कीं। हमें भी उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को साधनमय बनाना चाहिए।'
साध्वी कर्णिकाश्री जी ने कहा, 'जन्म से कोई व्यक्ति महान नहीं होता, अपने विशिष्ट गुणों से ही वह महानता के पथ पर अग्रसर होता है। जब वह मंज़िल तक पहुँचता है, तो सबके लिए प्रेरणा का प्रदीप बन जाता है। आचार्य महाप्रज्ञ जी विशिष्ट गुणों के महानायक थे।' डॉ. साध्वी सुधाप्रभा जी ने कहा की दिव्य प्रकाश और नई ऊर्जा के संवाहक आचार्य महाप्रज्ञ जी ने असंख्य जीवनों को उजास से भर दिया। अध्यात्म की ऊर्जा से उन्होंने अनगिनत लोगों को जागृत और ऊर्जा-सम्पन्न बनाया। साध्वी मैत्रीप्रभा जी ने कहा - आचार्य महाप्रज्ञ आत्मद्रष्टा और भविष्यद्रष्टा संत थे। उन्होंने अपनी प्रज्ञा से धर्मसंघ के स्वर्णिम भविष्य के अनेक आलेख लिखे।
साध्वी समत्वयशा जी ने मंच का प्रभावशाली संचालन करते हुए कहा, 'आचार्य महाप्रज्ञ समर्पण के शलाका पुरुष थे। वे धर्मसंघ में बिंदु बनकर आए और सिंधु बनकर महाप्रयाण किया।'
समदड़ी महिला मंडल ने मंगल संगान किया। भूपतराज खांटेड़, महावीर छाजेड़, बालक दियान एवं सुश्री प्रजल ने अपने-अपने भावपूर्ण प्रस्तुतिकरण से उपस्थित जनों को भावविभोर कर दिया।