स्वाद और विवाद में संयम रखने से हो सकता है आत्मकल्याण : आचार्यश्री महाश्रमण
कोटा, 2 दिसंबर, 2021
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना सहित अहिंसा यात्रा के साथ स्टोन नगरी कोटा पधारे। कोटा कोचिंग और कचौरी के लिए भी प्रसिद्ध है। जन-जन को जगाने वाले महापुरुष के कोटा पदार्पण पर आज जन-जन ही पुलकित नहीं है, पर प्रकृति भी पुलकित है। कोटा शिक्षा की नगरी है। आचार्यप्रवर अध्यात्म की विद्या सिखाने यहाँ पधारे हैं। जन-जन के उद्बोधक परम पावन ने अमृत देशना की वर्षा कोटावासियों पर करते हुए फरमाया कि मनुष्य इंद्रियों वाला प्राणी है। इसके पास पाँच ज्ञानेंद्रियाँ हैं। पाँच कर्मेन्द्रियाँ भी होती हैं। ज्ञानेंद्रियाँ ज्ञान की माध्यम बनती हैं और इंद्रियों के द्वारा आदमी काम-भोग आसेवन भी कर सकता है। इंद्रियों का समुचित संयम रखना आत्मा के लिए हितकर होता है। आदमी कान, आँख, नाक, रस, स्पर्श का संयम रखें। साधु का जीवन तो संयममय होना चाहिए। साधुओं का अलग जगत-परिवेश है। गृहस्थ के जीवन में भी इंद्रिय संयम लाभप्रद हो सकता है। क्या सुनते हैं और क्यों सुनते हैं व कैसे सुनते हैं, ये तीन प्रश्न बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। हम बुरी बातों को सुनने में रस न लें। गांधीजी के बंदर की तरह दूसरों की निंदा में रस नहीं लेना चाहिए। योग्य, आवश्यक बात या प्रवचन व ज्ञान की बात सुनने में रस लें, यह हमारा हितकर हो सकता है। साधु का आगमन होना अच्छी बात है। संतों की वाणी, आर्षवाणी, जिन वाणी, धर्म वाणी सुनने में आदमी समय लगाएँ तो कान भी धन्य हो जाते हैं और जीवन भी धन्य हो जाता है। आत्मा धन्य और पवित्र बन सकती है। सदुपयोग पर भी ध्यान दे सकते हैं। क्यों सुनना कि मुझे कुछ ज्ञान मिल सके। मेरा जीवन, मेरी आत्मा अच्छी बन सके। कैसे सुनना कि एकाग्र होकर सुनना। सुनते समय दूसरी बातों में ध्यान न लगाएँ। ध्यान से सुनने से अच्छा लाभ प्राप्त हो सकता है। प्रवचन श्रवण के बाद मनन कर लें कि क्या बात आई, उसकी अनुप्रेक्षा करें। अपने जीवन में अच्छी बात कैसे आ सकती है। तो फिर रूपांतरण की बात हो सकती है। यह एक प्रसंग से समझाया। प्रवचन जो करता है, उससे उसको तो लाभ हो ही जाता है, पर दूसरों में परिवर्तन आए न आए वो अलग बात है। श्रोता है, उसको प्रवचन का लाभ मिले, न भी मिले, किंतु वक्ता है, साधु है, उसको तो निर्जरा का लाभ मिल ही जाता है। हजारों लोग भी प्रवचन सुनते हैं, पता नहीं कितनों के मन में बदलाव आ सकता है। बदलाव क्यों नहीं आता है, उसको एक प्रसंग से समझाया कि बात गहराई से अंदर जाए भी तो असर करेगी।
देखना है तो क्या देखें, क्यों देखें, कैसे देखें? अच्छी चीज देखो, बुरी चीज मत देखो। अच्छे साहित्य को पढ़ें। संतों के दर्शन करें। देखने से भीतर में ज्ञान मिले और भाव शुद्ध हो। दृश्य का भी हमारे भावों पर असर पड़ सकता है। पढ़ना भी है या देखना भी है, तो ध्यान से देखें या पढ़ें। सुनना और देखना ये दो ज्ञान के बड़े अच्छे माध्यम हो सकते हैं। जीभ, नाक व स्पर्श का भी संयम हो। भोजन जीवन के लिए है। जीवन भोजन के लिए न हो। मुँह से न तो ज्यादा स्वाद लेने की और न ही ज्यादा विवाद करने की प्रवृत्ति करें। कई लोग तो भूख से मर सकते हैं, पर कई लोग ज्यादा खाकर खराब हो सकते हैं। जिह्वा के साथ वाणी का भी संयम हो। स्वाद और विवाद में संयम रखें। हमारे जीवन में इंद्रियों का संयम रखें, अच्छा उपयोग करें। दुरुपयोग से बचें तो हमारा जीवन अच्छा रह सकता है, हमारी आत्मा-चेतना भी कल्याण की ओर आगे बढ़ सकती है। पूज्यप्रवर ने अहिंसा यात्रा के तीनों सूत्रों को विस्तार से समझाया। तीनों संकल्प स्वीकार करवाए। कोटा में परमपूज्य गुरुदेव तुलसी पधारे थे। करीब 50 वर्ष का समय बीत चुका है। जीवन में शिक्षा आवश्यक है, पर शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार रहें तो विद्यार्थी का जीवन अच्छा रह सकता है।
कोटा में मुनि धर्मचंद जी पीयूष का विराजना हुआ था। उनका विशिष्ट अनशन भी हुआ था। मुनिश्री की स्मृति करता हूँ। कोटा की जनता में अच्छी भावना, अच्छी आध्यात्मिकता, अच्छे संस्कार आते रहें। नगरीय विकास मंत्री शांतिलाल धारीवाल ने आचार्यश्री महाश्रमण जी से कहा कि मैं सौभाग्यशाली हूँ जो आप जैसे महान संत के दर्शन करने औरआपके प्रवचन को सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। आपके इन संकल्पों का प्रभाव यहाँ की जनता में अवश्य दिखाई देगा, ऐसा मेरा विश्वास है। तदुपरांत कोटा तेरापंथी सभा के अध्यक्ष संजय बोथरा, महिला मंडल की अध्यक्षा ऊषा बाफना, तेयुप अध्यक्ष आनंद दुगड़, अणुव्रत समिति के अध्यक्ष अशोक दुगड़, रवि बुच्चा, जैन श्वेतांबर दादाबाड़ी (दानबाड़ी) के अध्यक्ष एम0पी0 चतर, ओसवाल समाज संस्था के अध्यक्ष नरेंद्र लोढ़ा, पंकज मेहता, महावीर प्रसाद, संजय साह, सकल दिगंबर समाज के विमल जैन, सरावगी समाज के जे0के0 जैन, पद्मावती पोरवाल समाज के अशोक जैन, हनुमान दुगड़, वर्धमान स्थानकवासी समाज के बुद्धिप्रकाश जैन, रतनलाल जैन, कोटा नगर के पूर्व अध्यक्ष रविंद्र त्यागी व कोटा सभा के मंत्री धर्मचंद जैन ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। महिला मंडल की सदस्याओं द्वारा स्वागत गीत का संगान किया।