समझ शक्‍ति और सहन शक्‍ति के संयोग से व्यक्‍ति सुखी रह सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

समझ शक्‍ति और सहन शक्‍ति के संयोग से व्यक्‍ति सुखी रह सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

बाबेई, 10 दिसंबर, 2021
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी 16 किलोमीटर का विहार कर बाबई के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे। ग्रामवासियों ने आचार्यप्रवर का भावभीना स्वागत किया। दैनिक प्रवचन में जैन जगत के उज्ज्वलतम नक्षत्र आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि ज्ञान का बड़ा महत्त्व है। ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास कितने-कितने लोग अपने-अपने ढंग से करते हैं। गाँव-गाँव में जगह-जगह विद्यालय मिलते हैं। हमारा प्रवास भी यात्रा में प्राय: विद्या संस्थानों में हो रहा है। विद्यालय, महाविद्यालय, विश्‍वविद्यालयों में विद्यार्थी पढ़ते हैं। ज्ञान-प्राप्ति का प्रयास किया जाता है। अध्ययन करने में परिश्रम-समय लगाया जाता है। अध्ययन करने से पहला लाभ है, आदमी को ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान प्राप्ति का लक्ष्य भी हो और परिश्रम हो तभी ज्ञान मिल सकता है।
विद्यालय में विभिन्‍न विषय अध्यापकों द्वारा पढ़ाए जाते हैं। विषयों की उपयोगिता भी होती है। परंतु ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार वाली बात भी जुड़ी रहनी चाहिए। शिक्षा प्रणाली में अनेक विषयों के साथ संस्कार उपार्जन वाली बात भी हो। किसी देश-समाज का भविष्य तभी अच्छा हो सकेगा या होने की आशा की जा सकती है, जब विद्यार्थी अच्छी शिक्षा और संस्कारों का अर्जन करें। बच्चे के सामने एक लंबा भविष्य होता है, उसमें अच्छी विद्या, अच्छे संस्कार दिए जाएँ तो समाज-राष्ट्र आगे जाकर अच्छा हो सकता है। आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत्त एक विषय हैजीवन-विज्ञान। जीने की कला, जीने का विज्ञान है, जीवन विज्ञान। बच्चों में नैतिकता, ईमानदारी, नशामुक्‍ति, विनम्रता के संस्कार हों। प्रयास करने से कुछ फल मिल सकता है। केवल ज्ञान ही नहीं साथ में अच्छे संस्कार, अच्छा आचरण भी हो। केवल ज्ञान अधूरा है। विद्यार्थियों में भावात्मक विकास भी हो। शारीरिक, मानसिक विकास भी आवश्यक है। आई क्यू के साथ ई क्यू का भी विकास हो। जिसके पास बुद्धि का बल नहीं है, उसमें एक कमजोरी है। समझ शक्‍ति के साथ सहन शक्‍ति भी बढ़े। तभी आदमी सुखी रह सकता है। विद्यार्थी में भावात्मक विकास ऐसा हो कि वह सहन भी कर सके। जिसमें भावात्मक विकास नहीं है, वह आदमी परिवार, समाज, राष्ट्र के लिए मुसीबत बन सकता है। उसमें गलत आदतें पड़ सकती हैं। यह एक प्रसंग से समझाया कि बच्चे में प्रारंभ में ही अच्छे संस्कार न दिए जाएँ तो समस्या हो सकती है। एक प्रसंग से और समझाया कि अच्छे संस्कार देने वाले अभिभावक अपनी संतान को सन्मार्ग पर ला सकते हैं। ये संस्कारों की बात है। घर में, स्कूल में भी अच्छे संस्कार मिले। साधु-संतों से भी अच्छे संस्कार मिलते हैं। भारत में कितने-कितने ग्रंथ हैं, उनमें अच्छे संस्कार भरे पड़े हैं। जब त्यागी संतों का समागम होता है, उनकी कल्याणी वाणी से अच्छी प्रेरणा मिल सकती है। संस्कार युक्‍त विद्या का विद्यालयों, महाविद्यालयों में प्रयास होता रहे तो अच्छे परिवार, समाज, राष्ट्र का निर्माण हो सकता है। हम इस अहिंसा यात्रा में तीन बातों का प्रचार कर रहे हैंसद्भावना, ईमानदारी व नशामुक्‍ति। तीनों संकल्पों को समझाकर स्थानीय लोगों व विद्यार्थियों को स्वीकार करवाए। जैन परिवारों की संभाल की।
पूज्यप्रवर के स्वागत में बाबेई श्री संघ से सौभागमल ने अपनी भावभरी अभिव्यक्‍ति देते हुए कहा कि पूज्यप्रवर के पधारने से ये धरा धन्य हो गई है। आचार्यप्रवर के तीन संकल्पों का हम द‍ृढ़ता से पालन करें। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।