त्यागी संत राजाओं का राजा होता है : आचार्यश्री महाश्रमण
देईखेड़ा, 7 दिसंबर, 2021
अहिंसा यात्रा प्रणेता, मानवता के महासूर्य, जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी 3 देश, 20 राज्य और लगभग 18000 किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा के संकल्पों के साथ गतिमान है। आचार्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ मंगलवार को देईखेड़ा पर अपनी करुणा बरसाते हुए लोगों को गृहस्थ जीवन को धर्ममय बनाने के सूत्रों की प्रेरणा प्रदान करने के साथ ही अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी से भावित कर उन्हें सन्मार्ग पर चलने को अभिप्रेरित भी किया। आचार्यश्री महाश्रमण जी ने कापरेन स्टेशन से मंगल प्रस्थान किया। वर्तमान में राजस्थान का बूंदी जिला श्रीचरणों से पावन हो रहा है। मार्ग में आने वाले ग्रामीण जनों व विभिन्न वाहनों से अन्यत्र जाने वाले लोगों ने आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री देईखेड़ा के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे तो विद्यालय के शिक्षकों आदि ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। पूज्यप्रवर ने अमृत देशना प्रदान करते हुए गृहस्थ जीवन को सुखी बनाने के सात सूत्र एवं गृहस्थ जीवन की उपयोगिता बताई। गृहस्थ जीवन के सुखी बनाने के प्रथम सूत्र के रूप में बताया कि गृहस्थ को सुपात्र दान देना चाहिए। और भी दान देना चाहिए। दूसरी बातगुरु के प्रति विनय का भाव रखें। तीसरीसर्वसत्वानुकंपासब प्राणियों के प्रति दया की भावना रखनी चाहिए। चौथी बात हैन्यायपूर्ण बर्ताव करना चाहिए। पाँचवीं बातदूसरों का हित हो, ऐसी विधि में रुचि रखें। दूसरों को पीड़ा पहुँचाने का प्रयास न हो। जबान अच्छी बोलें। दाता और याचक का फर्क हाथ की मुद्रा देखकर किया जा सकता है, यह एक प्रसंग से समझाया कि मीठी जुबान से दूसरों का दिल जीता जा सकता है। अगली बात कि श्रीलक्ष्मी का कभी घमंड नहीं करना चाहिए। लक्ष्मी तो चंचल होती है। प्राण, जीवन और जवानी भी चंचल है, एक धर्म शाश्वत है। अंतिम बात हैअच्छी सत्संगति करनी चाहिए। अच्छे त्यागी साधु की संगति करनी चाहिए। अच्छा साहित्य पढ़ें, अच्छा संपर्क करना चाहिए। ये सात बातें गृहस्थ जीवन के काम की हैं। शरीर और आत्मा दो चीजें हैं, आत्मा आगे जाने वाली है। शरीर तो नश्वर है, आत्मा स्थायी है। अच्छा जीवन जीते हैं, धर्माचरण, सदाचरण करते हैं तो आत्मा आगे जाकर भी ठीक रह सकेगी। त्यागी संतों के चरणों में शीष झुकाने से आनंद आता है। त्यागी संत तो राजाओं का भी राजा होता है। साधु के लिए तो धरती ही शैय्या है। हाथ की भुजा उसका सिराहना है। संत के तो खुला आकाश चंदोवा है। संत को तो सहज हवा आती है, वो ही पंखा है। साधु के लिए तो चंद्रमा का प्रकाश ही दीया है। संत तो सारे राजाओं से भी सुखी रहने वाला हो सकता है। हम सभी के जीवन में धर्म रहे। धर्म से सुख मिलता है, कल्याण होता है। मंगल प्रवचन के उपरांत समुपस्थित ग्रामीणों व अन्य श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री की प्रेरणा से अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार कर पूज्य गुरुदेव से मंगल आशीर्वाद भी प्राप्त किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।