मुनि दर्शन कुमार जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
अर्हम
साध्वी कंचनप्रभा
हर संसारी प्राणी कर्मोदय से आबद्ध है। वे कर्म अपना परिणाम दिखाते ही हैं। आठों कर्मों में वेदनीय कर्म का अपना प्रभाव है। कभी-कभी वेदनीय कर्म इस क्रम उदय में आता है जब मन आहत हो जाता है। वे व्यक्ति अंगुली पर गिने जाने वाले स्मरणीय हो जाते हैं, जो निर्भीक होकर सटीक उत्तर देते हैं। यह चारित्रात्माओं में देखा जा सकता है। हमारे धर्मसंघ के ऐसे महान संत जिनका कुछ दिन पहले ही प्रयाण हुआ। वे आदरणीय मुनि दर्शन कुमार जी। उनकी सूर्यास्त के बाद कुछ रात्रि होने पर ऐसे इमरजेंसी स्थिति बनी। चिकित्सकों ने निवेदन किया कि आपकी हृदय की स्थिति भयजनक है, इसलिए आपको अभी का अभी हॉस्पिटल जाना चाहिए। अन्यथा रात्रि में कुछ भी हो सकता है। मुनि दर्शन कुमार जी ने अति दृढ़ता के साथ उत्तर दिया कि अगर रात्रि में कुछ हुआ तो मेरा औदारिक शरीर श्मशान जाएगा तथा सूर्योदय हुआ तो हॉस्पिटल। जो होना होता है वही होता है। रात्रि में ही उनका प्रयाण हो गया। ऐसे महान संत थे मुनि दर्शन कुमार जी। जिनको परमपूज्य आचार्यप्रवर के सान्निध्य में भीलवाड़ा चातुर्मास का लाभ मिला। मुनिश्री ने धर्मसंघ प्रभावना में अच्छा श्रम किया। विभिन्न प्रांतों की यात्राओं में श्रावक समाज की सार-संभाल की। उनकी कविताएँ भी विचित्र होती। परमपूज्य भिक्षु स्वामी तथा उत्तरवर्ती सभी आचार्यप्रवर परमपूज्य गुरुदेवश्री जुलसी-जिनके करकमलों से दीक्षित हुए तथा परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी तथा वर्तमान में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी के प्रति सर्वात्मना समर्पित रहे।