मन की एकाग्रता के लिए तन की स्थिरता भी अपेक्षित : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मन की एकाग्रता के लिए तन की स्थिरता भी अपेक्षित : आचार्यश्री महाश्रमण

पापड़ी, 8 दिसंबर, 2021
तेरापंथ धर्मसंघ के अधिनायक महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी 15 किलोमीटर प्रलंब विहार कर पापड़ी स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रांगण में पधारे। परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी ने उपस्थित जन समुदाय को अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि ध्यान के चार प्रकार बताए गए हैंआर्त-ध्यान, रौद्र-ध्यान, धर्म-ध्यान और शुक्ल-ध्यान। ध्यान शब्द काफी प्रसिद्ध है। विभिन्‍न ध्यान पद्धतियाँ दुनिया में उपलब्ध होती हैं। ध्यान अध्यात्म-साधना का एक अंग है। ध्यान की परिभाषा हैएक आलंबन पर मन को केंद्रित कर देना अथवा मन, वचन, काय की प्रवृत्ति को रोक लेना ध्यान हो जाता है। ध्यान अशुभ भी होता है और शुभ भी होता है। मन की एकाग्रता ध्यान है। तो मन की एकाग्रता राग-द्वेष युक्‍त भी हो सकती है। मन की एकाग्रता राग-द्वेष मुक्‍त भी हो सकती है। राग-द्वेष युक्‍त एकाग्रता अशुभ ध्यान है। राग-द्वेष मुक्‍त एकाग्रता आध्यात्मिकता युक्‍त है, वह शुभ ध्यान हो जाता है। निरोध संपूर्णतया तो बार-बार नहीं होता है। अनंत काल में संभवत: एक बार होता है। शैलेषी अवस्था होती है, अप्रकंप अवस्था होती है, उस समय न शरीर की चंचलता, न वाणी का प्रयोग और न ही मन की चंचलता होती है। वह संपूर्णतया योग-निरोध की अवस्था होती है। जिसे अयोग संवर भी कहा जाता है। अयोग अवस्था एक विचित्र अवस्था है, मानो जीवन भी है और जीवन होते हुए भी अजीवन जैसी स्थिति प्रतीत हो रही है। आर्त ध्यान और रौद्र-ध्यान में राग-द्वेष है, अंताप है, इसलिए दोनों ही अशुभ ध्यान हैं। धर्म और शुक्ल-ध्यान शुभध्यान होते हैं। प्रेक्षाध्यान का अर्थ भी यही है कि प्रियता और अप्रियता से मुक्‍त हो देखना। गहराई से विशेष रूप से देखना। एकाग्रता का अपना महत्त्व है। मन की एकाग्रता के लिए तन की स्थिरता भी सहयोगी बनती है। शरीर स्थिर व वाणी का अप्रयोग रहता है, फिर मन की एकाग्रता को साधना भी कुछ आसान हो सकता है। दो शब्द हैंव्यग्र और एकाग्र। जब मन विविध आलंबनों पर जाता है, तो वह व्यग्र मन होता है। मन जब एक जगह केंद्रित हो जाता है, वह एकाग्र मन हो जाता है। दीर्घ श्‍वास के प्रयोग से मन एकाग्र हो सकता है। सुबह-सुबह एक सामायिक हो जाए। सामायिक में धार्मिक साधना चले। मन इधर-उधर न भटके, यह एक प्रसंग से समझाया कि मन को चंचल न बनाएँ, धार्मिक प्रवृत्ति में लगाए रखें, यह काम्य है। पूज्यप्रवर ने स्थानीय लोगों को अहिंसा यात्रा के तीन सूत्रों को विस्तार से समझाया। तीनों संकल्पों को समझाकर स्वीकार करवाए। पूज्यप्रवर मध्याह्न लगभग तीन बजे विहार कर लाखेरी गाँव में पधारकर वहीं पर रात्रि प्रवास किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।