हर परिस्थिति में समता रखने से मिलती है सुख और शांति : आचार्यश्री महाश्रमण
शिवाड़, 18 दिसंबर, 2021
अहिंसा यात्रा के माध्यम से जन-जन को पावन बना रहे महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी शिवाड़ स्ििात धुरमेश्वर ज्योतिर्लिंग ट्रस्ट द्वारा निर्मित विश्रांति निलयम पधारे। प्रवचन में आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे पास प्रवृत्ति के तीन साधन हैंशरीर, वाणी और मन। चेतना को हम एक मुखिया मान लें। उसके ये तीन कर्मचारी हैं। शरीर से आदमी कई कार्य करता है, तो शरीर एक कर्मकर हो गया। वाणी के द्वारा बोलकर कितनों को ज्ञान, दिशा-निर्देश दिया जा सकता है। मन के द्वारा आदमी सोचता है। कल्पना और स्मृति करता है। शरीर और वाणी तो प्रत्यक्ष हो जाते हैं, पर मन परोक्ष रहता है। पर कुछ अनूठा लग सकता है। मन की बात आँखें कह देती हैं। यह आचार्य भिक्षु के दृष्टांत से समझाया। मन एक ऐसा तत्त्व है, जो दुर्मन भी बन सकता है और सुमन भी बन सकता है। आदमी सोच-सोच के सुखी या दु:खी बन जाता है। यह भी एक प्रसंग से समझाया कि अच्छी चीजें हैं, फिर दु:खी क्यों बनूँ। आदमी भौतिक सुख से खुशियाँ न मनाएँ। हर स्थिति में समता रखो तो सुख-शांति रहती है। यह भी एक प्रसंग से समझाया कि चिंता किस बात की है, मौत की परवाह नहीं है। जितना समय शेष है, शांति से जी लूँ। जो जीना जानता है, उसको दूसरे नहीं मार सकते। चिंतन हमारा प्रशस्त रहे। धर्म का यह सार है कि चिंतन हमारा बढ़िया रहे। थोड़े से नुकसान से आदमी दु:खी बन जाता है। चिंतन से चित्त को प्रसन्नता मिल सकती है। आज शिवाड़ आना हुआ है। शिव से जुड़ा स्थान है। शिव का मतलब हैकल्याण। हम लोग तीन बातों का प्रचार कर रहे हैंसद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति। इनके तीन संकल्प समझाकर स्थानीय लोगों को ग्रहण करवाए। पूज्यप्रवर के स्वागत में ज्योतिर्लिंग ट्रस्ट से प्रेम प्रकाश शर्मा, सकल जैन संघ से दिनेश जैन, वरिष्ठ पत्रकार शंभुदयाल मिश्रा, संदीप जैन, दुर्गाशंकर पारीक ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने आठ कर्मों के बारे में विस्तार से समझाया।