गृहस्थ जीवन भी सदाचारयुक्त होना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण
सूरवाल, 14 दिसंबर, 2021
आचार्यश्री महाश्रमण जी आज ढढाण के उस क्षेत्र में पधारे जहाँ से तेरापंथ का प्रगाढ़ संबंध रहा है। पूज्यप्रवर सूरवाल पधारे जहाँ अतीत में एक ही परिवार से 22 दीक्षाएँ हुई थीं। मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए तरण-तारण ने फरमाया कि आदमी को थोड़े लाभ के लिए ज्यादा नुकसान नहीं उठाना चाहिए। यह मानो एक नीति का-सा सूत्र है कि जहाँ लाभ थोड़ा, हानि ज्यादा ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए। हम मनुष्य जन्म को देखें, कितना महत्त्वपूर्ण जीवन है। इसको थोड़े लाभ के लिए खो दिया जाता है या इसका अच्छा लाभ उठाने का प्रयास किया जाता है। थोड़े के लिए बहुत को खो देना एक तरह से समझ की कमी जैसी बात हो जाती है। यह एक प्रसंग से समझाया। हमारा यह मानव जीवन अमूल्य हीरा है, इसका उपयोग अच्छा हो। आगे तो पाई-पाई का हिसाब देना पड़ता है। जैसे कर्म किए हैं, वैसा फल भोगना पड़ेगा। साधु तो सभी नहीं बन सकते हैं पर गृहस्थ जीवन भी सदाचारयुक्त होना चाहिए। आदमी नशा, चोरी, डकैती न करे। यह एक प्रसंग से समझाया कि जो मेरी नहीं है, वो मैं नहीं ले सकता। पैसे को लक्ष्मी कहा गया है, तो लक्ष्मी अशुद्ध न हो। ईमानदारी रखें। बेईमानी का धन घर में न आए।
आचार्य महाप्रज्ञ जी ने बताया था कि दो शब्द हैंअर्थ और अर्थाभास। न्याय-नीति से कमाया गया पैसा अर्थ है। अनीति-अन्याय से कमाया गया पैसा अर्थाभास है। अर्थाभास के प्रति आकर्षण न रहे। अर्थ के साथ न्याय नीति रहे। हर दुकान में नैतिकता चाहिए। जीवन-व्यवहार में नैतिकता चाहिए। हम लोग सूरवाल आए हैं, यहाँ की जनता में धर्म की लौ जलती रहे, ऐसी कामना हैं सूरवाल का तो हमारे धर्मसंघ को एक अवदान है। इतनी दीक्षाएँ यहाँ से हुई हैं। वर्तमान में तो नहीं दिया है। एक गाँव ने महादान दिया है। महत्त्वपूर्ण स्थान है। गुरुदेव तुलसी भी पधारे थे। आगे भी अवदान देते रहें। पूज्यप्रवर ने अहिंसा यात्रा के तीन संकल्प समझाकर स्वीकार करवाए।
मुख्य नियोजिका जी ने पूज्यप्रवर की यात्रा के उद्देश्यों के बारे में समझाया। आदमी इन उद्देश्यों को अपनाकर सुखी बन सकता है। आचार्यप्रवर की अभिवंदना में स्थानीय सभा के अध्यक्ष राजेश जैन, महिला मंडल से सीमा जैन, पारुल व सैफाली जैन एवं धर्मेश जैन ने अपने भाव व्यक्त किए। सूरवाल पंचायत समिति के निर्देशक नमोनारायण मीणा ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अल्पकालिक विश्राम के बाद भीलवाड़ा चतुर्मास के बाद से प्राय: संध्या के समय भी विहार करने के अपने क्रम को जारी रखते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी सूरवाल से प्रस्थित हुए। लगभग आठ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए सिनोली स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय के प्रांगण में पधारे। जहाँ आचार्यश्री ने रात्रिकालीन प्रवास किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।