राग-द्वेष से मुक्ति मोक्ष प्राप्ति की सबसे बड़ी युक्ति है : आचार्यश्री महाश्रमण
रायपुरिया, 10 जून, 2021
तीर्थंकर के प्रतिनिधि, जन-जन के तारक आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: रायपुरिया शहर में पधारे। पूज्यप्रवर युवावस्था में भी सन् 2004 में इस शहर में पधारे थे। मंगल पाथेय प्रदान करते हुए महासूर्य ने फरमाया कि धार्मिक साहित्य में मोक्ष की बात आती है। जैन दर्शन के नवतत्त्वों में भी पहला तत्त्व जीव है, तो अंतिम तत्त्व मोक्ष है।
मोक्ष परम लक्ष्य होता है। मोक्ष हो जाने के बाद उस मोक्ष प्राप्त आत्मा का न जन्म होता है न मृत्यु। रोग-शोग कुछ भी नहीं होता। अशरीरी-निराकार अवाक और अयन होता है। अलेश्य, अयोग होता है। केवल शुद्ध आत्मा मोक्ष में अवशेष रहती है। आत्मा निष्कर्म-अकर्म हो जाती है।
मोक्ष को प्राप्त जीव को सिद्ध-मुक्त कहा जाता है। परमात्मा-परमेश्वर भी कह सकते हैं। शास्त्रकार ने बताया है कि कौन व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त नहीं होता। मोक्ष की प्राप्ति में कई बाधाएँ हैं। जो चंड स्वभाव का आदमी है, गुस्सैल है, उसके लिए मोक्ष का द्वार मानो बंध है। अकषाय बने बिना मोक्ष नहीं होता।
दिगंबर या श्वेतांबर हो जाने से, तर्कवाद में प्रवीण हो जाने से, तत्त्ववेत्ता बन जाएँ, अपने सिद्धांत की बहुत आग्रहपूर्ण प्रस्तुति कर दें, पर इतने मात्र से मुक्ति नहीं हो सकती। सारांश या निष्कर्ष बता दिया कि कषायों से मुक्ति मिल गई, राग-द्वेष से मुक्ति मिल गई, वह अपने आपमें मुक्ति हो जाती है।
जीवन के बाद मुक्ति मिलती है, वह तो परम मुक्ति होती है। परंतु जीवन-काल की सीमा तक भी मुक्ति मिल सकती है। संस्कृत ग्रंथ में कहा गया है कि जिसने मन और मदन को जीत लिया, जो मानसिक-कायिक विकारों से मुक्त हो गया है, आशा-लालसा से निवृत्त हो गया है, ऐसे व्यक्ति का तो मानो यहीं मोक्ष हो गया।
एक शब्द आता हैजीवन मुक्त। जीते हुए भी मुक्त। जो अतीत की स्मृतियों में व्यर्थ न जाए, भविष्य की व्यर्थ विचारणा-कल्पना न करे, वर्तमान में जो कुछ प्राप्त है, उसमें संतुष्ट रहें, मध्यस्थ रहें, यह जीवन-मुक्त आदमी का लक्षण है।
आदमी को ज्यादा गुस्सा नहीं करना चाहिए, जो बात कहनी है, शांति से कहे। गुस्सा अहितकर होता है। मनुष्यों का शत्रु हैगुस्सा। मोक्ष में तो ये बाधक है ही पर व्यवहार में भी गुस्सा नुकसानदेह होता है। जब तक गुस्सा रहेगा तब तक मुक्ति नहीं।
गर्व है, मति और ॠद्धि का अहंकार रखने वाला है, उसकी मुक्ति नहीं। चुगलखोरी वृत्ति भी बाधा है। साहस, बिना सोचे-विचारे काम करनेवाला अविमर्स्यकारी होता है, सहसा करने वाला होता है, उसके लिए भी मोक्ष मानो बाधित है। जो चिंतनपूर्वक-विचारपूर्वक काम करने वाला होता है, वह अच्छी बात उसके लिए होती है।
कोई भी काम जो विशेष है, सहसा नहीं करना चाहिए। आवेश में भी निर्णय नहीं करना चाहिए। अविवेक परम आपदाओं का स्थान है। जो चिंतनपूर्वक काम करने वाला है, संपदाएँ उससे आकृष्ट होकर, उसके गुणों में लुब्ध होकर आदमी का वरण करती है।
अनुशासन की अवहेलना करने वाला, अविनय से पेश आने वाला है, उसके लिए भी मोक्ष बाधित हो जाता है। निज पर शासन, फिर अनुशासन सुंदर सूक्त है। जो स्वयं अनुशासित नहीं रहता है, स्वयं शिष्य नहीं बन सकता है, तो वह अच्छा गुरु भी नहीं बन सकता है। जो स्वयं दूसरों के अनुशासन में रहे, वो अच्छा अनुशास्ता बन सकता है।
एक बाधा हैअसंविभाग। दूसरे का हक मैं कैसे लूँ। गृहस्थ भी इसका ध्यान रखें कि दूसरे के अधिकार की चीज पर अधिकार नहीं जताना। मेरा सो मेरा, तेरा सो भी मेरा ये भाव न रहे। ये ओछा चिंतन है। तेरा सो तेरा, मेरा भी तेरा, ये चिंतन रखें। अध्यात्म का चिंतन हैना कुछ तेरा, ना कुछ मेरा, दुनिया रैन बसेरा। यह परमार्थपरक चिंतन हो जाता है।
जहाँ संविभाग होता है, वहाँ समीचीनता रह सकती है। चाहे भोजन की बात हो या काम की बात और गृहस्थों के संपत्ति की बात हो, जहाँ असंविभाग है, वो एक सम्यक् स्थिति भी नहीं हो सकती है। जो मोक्ष के साधक है, साधु है जिन्होंने मोक्ष के लिए परिवार, परिग्रह,मोह छोड़ दिया, परमार्थ के पथ पर आगे बढ़ने का संकल्प ले चुके हैं। उनके लिए विशेषतया धातव्य है कि जो मोक्ष के बाधक तत्त्व हैं, उनसे बचने का प्रयास करें और निर्बाध होकर मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें।
आज रायपुरिया आए हैं। 2004 में पूर्व-अवस्था में आया था। यहाँ की जनता व श्रावक-श्राविकाओं में खूब अच्छे संस्कार रहे, धर्म-अध्यात्म की साधना में आगे बढ़ें। मंगलकामना। पूज्यप्रवर ने सम्यक्-दीक्षा ग्रहण करवाई।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में स्थानीय अध्यक्ष रमणलाल कोटड़िया, महिला मंडल, कन्या मंडल, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी, किशोर मंडल, तेयुप से सोहित-मोहित कोटड़िया, जीवन विज्ञान से प्रकाश कोटड़िया, स्कूलों के बच्चे, ज्ञानमल मणोत, किरण भंडारी, तेयुप अध्यक्ष शुभम कोटड़िया ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।