
झूठ बोलकर जीतना हारने के समान होता है : आचार्यश्री महाश्रमण
गोविंदी, 7 जनवरी, 2022
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी सर्द और बर्फीले मौसम में ठंड की परवाह किए बिना 17 किलोमीटर का प्रलंब विहार कर नागौर जिले में गोविंदी ग्राम स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे।
मुख्य प्रवचन में तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि एक है यथार्थवाद और दूसरा हैमृषावाद। दोनों मानो एक-दूसरे से विपरीत हैं। यथार्थवादयानी जैसा है, वही बतलाना। मृषावाद हैजैसी वस्तु स्थिति है, उससे भिन्न-गलत बता देना। हमारा व्यवहार होता रहता है, साथ में भी रहते हैं। जहाँ अनेक हैं, वहाँ भाषा की अपेक्षा भी पड़ती है। लेन-देन का व्यवहार होता है। जहाँ व्यक्ति अकेला, अरण्यवासी है, वहाँ वह किससे कितना बोला। व्यवहार होता है, उसमें यथार्थवाद कितना है और मृषावाद कितना है, यह एक विचारार्थ बात बन सकती है। जब तक छद्मस्थता है, झूठ बोल सकता है। तात्त्विक बात है कि छठे गुणस्थान के बाद कोई झूठ नहीं बोल सकता। साधु के तो मृषावाद बोलने के तीन करण तीन योग से त्याग होता है, परंतु गलती भी हो सकती है। गृहस्थों के भी मजबूत संकल्प हों तो वह मृषावाद से बच सकता है। कठिनाई आ सकती है। ईमानदारी परेशान हो सकती है, परास्त नहीं हो सकती। परेशानियों को झेल सकें, कुछ कंटकाकीर्ण पथ पर चल सके, तो आगे तो फिर बहुत अच्छी मंजिल है। आदमी परेशानियों से परास्त हो, मृषावाद में जा सकता है। झूठा आरोप न लगाएँ। न्यायालय न्याय का मंदिर होता है, वहाँ अयथार्थ को बैठने का स्थान भी न मिले। अपराध को राई से पहाड़ न बनाया जाए। लोकतंत्र का एक अंग हैन्यायपालिका। उसमें न्याय की आशा की जा सकती है। न्याय के आसन पर बैठने वाला व्यक्ति तो बड़ा आदमी होता है। न्याय देने में तेरा-मेरा न हो। वहाँ धर्म की बात हो। दुनिया में आज भी न्याय चलता है। झूठ के आधार पर विजय प्राप्त करना गलत है। झूठ बोलकर जीतना भी हार है। न्यायालय में यथार्थवाद रखा जाए। गृहस्थों के जीवन में भी यथार्थता रहे। स्वयं स्वयं का मूल्यांकन करें। दुनिया में ईमानदारी का महत्त्व है। बेईमानी का कमाया पैसा पाप है। लड्डू भले छोटा हो, पर चौगुणी का मीठा हो। असली और नकली की पहचान हो। डफोलशंख केवल बोलता है, करता कुछ नहीं है। हम शंख बनें। हमें गलत बात नहीं करनी चाहिए। सत्य लोक में सारभूत है, उससे कल्याण हो सकता है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।