आत्म-निग्रह दु:खमुक्‍ति का उपाय है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्म-निग्रह दु:खमुक्‍ति का उपाय है : आचार्यश्री महाश्रमण

सिंघाना, 14 जनवरी, 2022
14 जनवरी मकर सक्रांति का दिन। कड़कड़ाती ठंड एवं बादलों से आच्छादित वातावरण में संयम सुमेरु आचार्यश्री महाश्रमण जी 11 किमी का विहार कर सिंघाना के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे। मुख्य प्रवचन में आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी डरता भी है, अन्य प्राणी भी डरते हैं। डर किस चीज से लगता है? प्राणी दु:ख से डरते हैं, कष्टों से घबराते हैं। तो फिर एक भावना भी आदमी के मन में कल्पना हो सकती है कि दु:खों से कैसे छुटकारा मिले। दु:ख मुक्‍ति या सर्व दु:ख मुक्‍ति कैसे मिले? साधु बनना दु:ख मुक्‍ति का मार्ग है। पर मूल उपाय हैहे पुरुष! तुम आत्मा का अभिनिग्रह करो। अपने आपका संयम करो। आत्म संयम और आत्मानुशासन करो। इस प्रकार तुम दु:ख से मुक्‍त हो जाओगे। आत्म-निग्रह दु:खमुक्‍ति का उपाय है। शरीर, मन और वाणी व इंद्रिय पर कंट्रोल रखें। यह एक प्रसंग से समझाया कि हमें गुस्सा नहीं करना चाहिए। यथा नाम तथा गुण। हमारे दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ अमृत समान थे। चंद्रमा के समान शीतल थे। साधु भी शीतल हो। बड़ों को बड़प्पन रखना चाहिए। अनिग्रह से दु:ख हो सकता है। ईच्छाओं का सीमाकरण हो। यह भी एक प्रसंग से समझाया कि किसी का छूट गया, किसी ने छोड़ दिया। जो छोड़ देता है, वो सुखी हो जाता है। त्याग नहीं तो आदमी दु:खी हो जाता है। जिसका छूट गया वो दु:खी हो जाता है। शास्त्रकार ने एक महत्त्वपूर्ण सूत्र दे दिया है कि आत्मा-निग्रह करो। आत्मनिग्रह करने से दु:ख से मुक्‍त हो जाओगे। यह भी एक प्रसंग से समझाया कि निग्रह करने से आपदाएँ नहीं आ सकतीं। अच्छी आत्मा निग्रह की साधना हो जाए, मुक्‍ति मिल जाए तो फिर सर्वदा-सर्वथा दु:ख मुक्‍ति प्राप्त हो सकती है। हम आत्म-निग्रह की साधना में आगे बढ़ने का प्रयास करते रहें। अणुव्रत में भी संकल्पों-व्रतों के द्वारा आत्मानुशासन होता है, किया जाता है। परमपूज्य महाप्रज्ञजी भी जो प्रेक्षाध्यान कराते थे, वह भी आत्म-निग्रह का उपाय बन सकता है। अनेक उपयोगों से, तरीकों से, संकल्पों से आदमी आत्म-निग्रह की दिशा में आगे बढ़ सकता है। हम अपने आप पर भी कंट्रोल करने का प्रयास करें। साधु का तो मुख्य काम ही साधना करना है। पर साधु-संतों के उपदेशों से भी एक पथ-दर्शन प्राप्त हो सकता है। गृहस्थ लोग भी आत्म-निग्रह की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। चंचलता ज्यादा न करें। उपशांत कलह की उदीरणा न करें। अनेक तरीकों से हम आत्म-निग्रह कर सुखी बन सकते हैं और दूसरों के सुखी बनने में भी यथा-संभव अपना योगदान दे सकते हैं। यह आत्म-निग्रह का जो सूत्र आगम में प्राप्त होता है, महत्त्वपूर्ण पथदर्शन है। उसके लिए वैसा प्रयास करने की अपेक्षा है। छोटे से सूत्र की साधना विराट-महान हैं। इसको आत्मसात करना बड़ी बात है। उपदेश जीवन में आए तो वे ज्यादा फलदायी हो सकते हैं। हम प्रयास करते रहें, तो सिद्धि मिल सकती है। हम आत्म-निग्रह करें, यह काम्य है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने कहा कि तप से शुद्धि हो सकती है।