अमृत-अर्चन

अमृत-अर्चन

साध्वीप्रमुखा

 समणीवृंद 

तुलसी गीत गुणोत्कीर्तन, गुरु पादे अमृत-अर्चन।

हे जगजननी जगत् मोहिनी, विश्‍वव्यापिनी शतवंदन,
तुलसी कर कृति-कला कनकद्युति, महाश्रमणीवर नमोनमन।
अर्धशदी तव सुष्ठुशासना-प्रमुख आसना गुरु चरणन,
अमृत पादे, अमृत मोच्छब, अमृत दाता मनोनमन।
जय-जय---

ज्ञानी विज्ञानी अवधानी, विघ्न विनाशिनी पाप हरो,
प×चशताधिक श्रमणी भिक्खुणी, शांतिप्रदायिनी ताप हरो।
गुरुत्रय-ब्रह्मद‍ृष्टि अनुसरणी, धर्मधारिणी हस्त धरो,
हे जगमाता, हे जगदम्बा, पाप-ताप-संताप हरो।
जय-जय---

तुलसी जीवन ग्रंथन लेखन, शोधन संपादन गुरुतर,
महाप्रज्ञ महामहिमाशाली चरण सेविका अति अनुत्तर।
सति शिरोमणी, संघ शिखंडिनी, गूंजे जश ध्वनि महीमात्तर,
जय-जय हे ममता ोतस्विनी, नेह झरे झरणा झर-झर।
जय-जय---

अमला-धवला शस्यश्यामला जगत् वत्सला निर्झरणी,
साध्वीप्रमुखा पट्टशोभिनी, निर्मल-विमला शिवसरणी।
द‍ृढ़-संकल्पी निरविकल्पी, मानसशिल्पी यशस्विनी,
भैक्षवशासन मृदु अनुशासन, मातृहृदया मनस्विनी।
जय-जय---

चंदेवी की चमक चांदनी, चिंहु-दिशि चमके मुख आनन,
मन-वच-काय-भाव सुभाषिनी, करे चिकित्सा स्मितवचनम,
अद्य: उत्सव अमृत महोत्सव, सन्‍निधि गुरुवर महाश्रमण
श्रमण श्रेणी करे अमृत अर्चन मुखरित भाव फरे अर्पण।
जय-जय---

लय : अयि-गिरि---