साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी का साहित्य वाङ्मय जगत के लिए वरदान है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी का साहित्य वाङ्मय जगत के लिए वरदान है : आचार्यश्री महाश्रमण

जैन विश्‍व भारती, 29 जनवरी, 2022
साध्वीप्रमुखा चयन अमृत महोत्सव पर साध्वीप्रमुखा महाश्रमणी साध्वीश्री कनकप्रभाजी के साहित्य का लोकार्पण। आचार्यश्री महाश्रमण जी ने जिन्हें असाधारण साध्वीप्रमुखाश्री जी से उपमित किया है। वे साध्वीप्रमुखाओं में प्रथम साध्वीप्रमुखा है कि जिन्होंने इतने साहित्य का सृजन किया है। आपके साहित्य पाँच विभागों में वर्गीकृत हैंयात्रा, गद्य, पद्य, संस्मरण और पद साहित्य। जैन विश्‍व भारती के अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारियों ने साध्वीप्रमुखाश्री जी के साहित्य को पूज्यप्रवर के श्रीचणों में लोकार्पण हेतु प्रस्तुत किया। अमृत पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत साहित्य लोकार्पण के अवसर पर मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि ज्ञान का एक माध्यम हैश्रवण और दूसरा माध्यम हैपठन। और भी कुछ उपाय हो सकते हैं। आदमी सुनकर, कल्याण को भी जान लेता है और पाप को भी जान लेता है। कल्याण और पाप यानी अच्छा और बुरा कल्याणकारी और अहितकारी दोनों को सुनकर जाना जा सकता है। परंतु जानने के बाद करना क्या है, वह महत्त्वपूर्ण बात होती है। जो श्रेय है, कल्याणकारी है, उसका आचरण करना चाहिए। जो पापात्मक प्रवृत्ति है, उसको छोड़ देना चाहिए।
सुनने से ज्ञान हो सकता है। परमपूज्य गुरुदेव तुलसी ने कितने-कितने प्रवचन किए थे। परमपूज्य महाप्रज्ञ जी ने कितने प्रवचन, भाषण दिए थे। ज्ञान का दूसरा माध्यम हैपठन। पढ़ने के द्वारा भी बहुत ज्ञान प्राप्त किया जा
सकता है। साहित्यकार-लेखक होते हैं, वो एक लिखित रूप में ग्रंथ प्रस्तुत करते हैं, वो पाठक की आँखों का विषय बन सकता है। आज साध्वीप्रमुखाजी के ग्रंथों के लोकार्पण का कार्यक्रम हो रहा है। पढ़ना ज्ञान का एक साधन है। पढ़ने वाले तो कितना समय पढ़ने में लगा देते हैं। पढ़ने के साथ मननशीलता और ग्रहणशीलता हो तो पढ़ने का अधिक लाभ हो सकता है। लिखने के लिए भी पढ़ने का अभ्यास सामान्यतया अपेक्षित होता है। स्वयं उस बात को आत्मसात करके फिर उसको लिखें। शब्द अपने आपमें मूर्त है, पुद्गल है, पर शब्द में प्राणवत्ता है, मूल तत्त्व है, वह उसका अर्थ है, शब्द और अर्थ दोनों का महत्त्व है। शब्द की जो अर्थात्मा है, वो मूल है, वो हमें ज्ञान देने वाली हो सकती है। लेखक को शब्द शिल्पी तो होना ही चाहिए। शब्दों के माध्यम से क्या परोस रहा है, उसका भी महत्त्व है। शब्द रूपी रथ पर अर्थ रूपी महाराजा बैठकर यात्रा करता है। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी विराजमान हैं। गुरुदेव तुलसी के समय से आपको देखता आ रहा हूँ। कुछ अंशों में लेखन का आपको नशा सा हो गया है। जिस चीज का नशा हो जाता है, उस चीज को संचित करने में भी आनंद आ सकता है। आपका स्वतंत्र लेखन भी है, दूसरा पक्ष हैसंपादन। आज तो आपके स्वतंत्र लेखन के साहित्य का लोकार्पण हुआ है।
संपादन का काम भी आपका बहुल मात्रा में हो सकता है। गुरुदेव तुलसी के कितने साहित्य को आपके संपादन से प्रस्तुत होने का मौका मिला होगा। लिखने के लिए आदमी कुछ ऐसा साहित्य पढ़े जिसमें कुछ जीवंतता हो और लिखने का भी पथदर्शन भी प्राप्त होता रह सके। साध्वीप्रमुखाश्री जी में पढ़ने का भी शौक और रुचि रही है। कविता बनाना तो आपके लिए कुछ अंशों में खेल है। विषय दे दो, दो घंटे में कविता बनकर सामने आ सकती है। यह अपनी प्रतिभा का, कवित्व शक्‍ति का क्षयोपशम मानना चाहिए। हर किसी के वश की बात नहीं है। विद्वता के दो अंग हैंकवित्व और वक्‍तृत्व। उसमें दोनों बातें हैं। मेरा आकलन और अनुमान है कि साध्वीप्रमुखाश्री जी का जो साहित्य है, पढ़ने वाले पढ़ें और समीक्षा करें। साध्वीप्रमुखाश्री जी का साहित्य कुछ स्तरीय साहित्य है। यह मेरा सामान्य आकलन रूपेण एक निष्कर्ष है। कविता साहित्य और गद्य साहित्य भी पठनीय है।  यह अमृत महोत्सव का अवसर आया है, इस उपलक्ष्य में साहित्य नए व्यवस्थित रूप में आया है। जिन्होंने इनके संपादन में श्रम किया है, योगदान दिया है, उन्होंने भी अपनी सेवा की है, श्रम दान किया है। अमृत महोत्सव से पहले दिन आपके साहित्य का नव स्वरूप अमृत महोत्सव की निष्पत्तिमत्ता को उजागर करने वाला है। कार्यक्रम के साथ ज्ञान का काम भी किया है। मौके-मौके पर काम हो जाता है। इतना विराट साहित्य सामने आया है, वो एक निष्पत्तिपूर्ण हो गया है। साहित्य का व्यवस्थित रूप देखने में आ रहा है। जैविभा को यह मौका मिलता रहता है। साहित्य प्रकाशन के लिए प्राय: एक मात्र संस्था हमारे धर्मसंघ की है। अमृत महोत्सव का रचनात्मक कार्य इसको कहा जा सकता है। इसमें श्रम करने वालों ने ज्ञान-यज्ञ में अपनी आहूतियाँ दी हैं। साध्वीप्रमुखाश्री जी का वाङ्मय ज्ञान जगत, साहित्य जगत के लिए अपने आपमें एक अवदान है।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने तो संपादन करके एक तरह से नवनीत तैयार कर दिया है, पर हमारे से तो नवनीत खाना भी मुश्किल हो रहा है। भगवती जोड़, मेरा जीवन-मेरा दर्शन कितना बड़ा संपादन किया है। लगभग 84 पुस्तकों का संपादन आपने किया है। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने अपने जीवन में साहित्य के क्षेत्र में जो सेवा दी हैं, मेरी कामना है कि आगे भी लंबे काल तक साहित्य की गंगा प्रवाहित होती रहे। आप साहित्य की गंगा में निमज्जन भी करती रहें। आपके स्वास्थ्य की भी इतनी सक्षमता रहे कि वो साहित्य की सरिता को प्रवाहित करने में आप निमित्तभूत-योगभूत बनी रहे। हमारे धर्मसंघ में जो साहित्य का कार्य होता है, वो अपने आपमें गौरवास्पद कुछ अंशों में कहा जा सकता है। हमारे आचार्यों का कितना साहित्य है, इसके अलावा भी चारित्रात्माओं व गृहस्थों का कितना साहित्य है। आगम के साहित्य का तो कहना ही क्या? मैं उसे हमारे धर्मसंघ का सिरमौर साहित्य कहना चाहूँगा।
मेरा चिंतन था कि साध्वीप्रमुखाश्री जी का साहित्य व्यवस्थित रूप में सामने आए जो हो गया है। तेरापंथ के इतिहास के रूप में गुरुदेव तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञ जी के जीवन चरित्र पुस्तक रूप में भी जल्दी सामने आए। उनका भी लोकार्पण हो ऐसी हमारी मंगलकामना है। अपनी आत्म संतुष्टि भी साहित्य के लिए व्यक्‍त करता हूँ कि मेरा एक चिंतन था कि साध्वीप्रमुखाश्री जी का साहित्य एक अच्छे रूप में सामने आए। मैंने जो स्वप्न-इंगित प्रस्तुत किया था, शासन गौरव साध्वी कल्पलता जी को हमारी समायोजिका बनाया था। मेरे स्वप्न-इंगित को साकार करने में अंगुलियों का जो श्रम लगाया है, साधुवाद दिया जा रहा है।
साध्वीप्रमुखाजी द्वारा संपादित साहित्य की सूची दी गई है, वो तो लगभग 93 संख्या आई है, जो खंडों को जोड़ने से आई होगी।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि आचार्य श्रीराम ने अपने साहित्य में लिखा हैवह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक पर ज्ञान चेतना रूप में देवता निवास करते हैं। अब्दुल कलाम ने गीता-रामायण आदि वैदिक पुस्तकें भी पढ़ीं। उनका उनके जीवन पर असर यह हुआ कि बहुत सी बात बदल गई। उन्होंने जीवन भर मांसाहार नहीं किया। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि गीता एक
विज्ञान है। गुरुदेव के जन्मोत्सव, पट्टोत्सव आते तो मैं कविताएँ लिखती। धीरे-धीरे प्रयास बढ़ता गया। आज पूज्यप्रवर ने जो आशीर्वाद फरमाया हैआपका आशीर्वाद फलदायी कार्यकारी बने। मैंने दीक्षा के तीन वर्षों बाद गुरुदेव के निर्देशानुसार प्रवचन लिखती, गुरुदेव उसके लिए आदेश निर्देश फरमाते। गुरुदेव ने यात्रा के संस्मरण लिखने का भी निर्देश फरमाया। दक्षिण यात्रा का लगभग 1000 पृष्ठ का ग्रंथ लिखने का अवसर मिला।
गुरुदेव के आशीर्वाद से ही जयाचार्य के साहित्य संपादन का अवसर मिला। गुरुदेव का मार्गदर्शन मिलता रहता। मेरी साहित्य की यात्रा का काम गुरुदेव के मार्गदर्शन से ही हुआ। सब गुरुओं का ही प्रताप है। हमारे वर्तमान के लेखन में आचार्यश्री महाश्रमण जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है, गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी ने साहित्य यात्रा में जो मार्गदर्शन दिया वो मील का पत्थर हैं मुख्य नियोजिका जी ने भी अपनी आंतरिक भावनाएँ साध्वीप्रमुखाश्री जी के लिए अभिव्यक्‍त की। साध्वी वर्याजी ने भी अपनी मंगलभावना अभिव्यक्‍त की।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि हम ईच्छाओं का सीमाकरण करें, उनका अंत नहीं है।