हमारी संघनिष्ठा और सम्यक् निर्मलता वर्धमान रहे : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन विश्व भारती, 27 जनवरी, 2022
वर्धमान महोत्सव का दूसरा दिन। भैक्षव शासन के एकादशम अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि वर्तमान महोत्सव का मध्यवर्ती द्वितीय दिवस। वर्धमानता अच्छी भी हो सकती है और गलत भी हो सकती है। यह निर्भर करती है दिशा पर। वर्धमानता किस दिशा में हो रही है। जैसे हमारे संत लोग विहार करते हैं, कभी जानकारी के अभाव में दूसरा मार्ग ले लेते हैं। विहार कर रहे थे वर्धमानता तो हो रही थी पर गलत मार्ग पर हो गई। ठीक मार्ग पर हो तो वह हितकर हो सकती है। विकास की दिशा सही है या गलत यह एक महत्त्वपूर्ण विषय बनता है। ज्ञान के क्षेत्र में विकास करें, अच्छा है। ज्ञान मात्र अपने आपमें अच्छा है। शुद्ध चीज होती है, फिर भी इसमें विवेक होना चाहिए कि मेरे लिए क्या पढ़ना अधिक लाभप्रद हो सकता है। कौन से समय क्या कार्य करना चाहिए, यह विवेक हो। जैविभा में समण संस्कृति संकाय जो ज्ञान विस्तार का कार्य कर रहा है, गृहस्थों के लिए अच्छा है। जैन विद्या का अच्छा ज्ञान कराया जाता है। हमें मूल विषय का ज्ञान पहले करना चाहिए। बाद में तुलनात्मक ज्ञान करें। ज्ञान के साथ दर्शन हमारा पुष्ट रहे। सम्यग् दर्शन के लिए हमारी श्रद्धा रहे कि जिनेश्वर देव ने जो प्रज्ञप्त किया है, वो सही ही है। यथार्थ के प्रति जितनी श्रद्धा मजबूत होती है, वह सम्यग् दर्शन का एक आयाम है। संघीय मान्यताओं पर श्रद्धा हो। केवली जाने वह ही सत्य है। व्यक्तिगत चिंतन हो सकता है, पर जब तक संघ की मान्यता न हो उस बात को प्रकट न करें। हमारा शोध के साथ बोध भी सही हो। तर्क किया जा सकता है। तर्क करने से मंथन होता है, तो सत्य सामने आ सकता है। अच्छे विचार आने पर संघ की मान्यता परिवर्तित हो सकती है। डालमुनि और वीरचंद भाई के कच्छ-भुज के प्रकरण को समझाया। वीरचंद भाई कितने निराग्रही थे। यथार्थ को जैसे-तैसे खंडित करने का प्रयास भी पाप है। यथार्थ में तेरा-मेरा गौण है, प्रभु ने कहा वो ही ठीक है। वहाँ चुप रह जाना चाहिए। आचार्य भिक्षु के राजनगर के प्रसंग को समझाते हुए फरमाया कि आचार्य भिक्षु के चिंतन में भी यथार्थ के प्रति मोड़ आया, वे आगे बढ़ें और क्रांति भी की। यथार्थ के प्रति जितनी श्रद्धा हमारी मजबूत होगी, सम्यक्त्व पुष्ट हो सकेगा। सम्यक्त्व पुष्टि के लिए कषाय-मंदता भी रहे। सम्यक्त्व पुष्टी के लिए तत्त्वबोध को भी बढ़ाने का प्रयास है। दर्शन एक ऐसा तत्त्व है, जो हमारे चारित्र को भी निर्मल बना सकता है। ज्ञान और चारित्र के बीच दर्शन होने से यह निष्कर्ष निकल सकता है कि दर्शन एक सेतू है। इससे ज्ञान चारित्र में परिवर्तित हो सकता है। ज्ञान और आचार तट है, सेतू संस्कार हैं। श्रद्धा निष्ठा मजबूत होती है, तो ज्ञान आचार में आ सकता है। संघ के प्रति भी हमारी निष्ठा हो। संघ को छोड़ने की बात करने वाला अपने व्यक्तित्व में थोड़ी कमी लाता है। संघ छोड़ने की बात करना कमजोरी की बात है। ज्ञान होना अलग बात है। पर संघनिष्ठा प्रमुख हो। साधु-साध्वी या समणियाँ हो या श्रावक-श्राविकाएँ भी हों, संघनिष्ठा के संदर्भ में हमारी निष्ठा मजबूत रहें। यही जीएँगे, मरेंगे तो भी यही मरेंगे। अंतिम श्वास संघ में ही लेंगे। संघ निष्ठा में कमी न हो, मजबूती रहे। हमारी संघनिष्ठा और सम्यक् निर्मलता भी वर्धमान रहे। यह काम्य है। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि हमारा संघ संवर्धन कर रहा है। संघ की नींव के जो पत्थर हैं, वो बड़े मजबूत हैं। वे पत्थर हैविनय, समर्पण, सेवा भाव व सहिष्णुता का। इन पर संघ का प्रासाद खड़ा हुआ है। नायक के बारे में अनेक बातें बताई जाती हैं। नायक के पास विजेता हो। हमें विजनरी आचार्य प्राप्त हुए हैं। आचार्य भिक्षु इस प्रासाद का प्रकार के रूप में मर्यादाओं का निर्माण किया।
साध्वीवृंद द्वारा वर्धमानता का गीत की प्रस्तुति हुई। तेरापंथ युवक परिषद ने गीत की प्रस्तुति दी। मुनि सुपार्श्वकुमार जी जो लाडनूं से हैं, लंबे समय के पश्चात पूज्यप्रवर के दर्शन किए है, अपनी भावना अभिव्यक्त की। जैविभा द्वारा प्रकाशित पुस्तक तीर्थंकर चरित्र के अंग्रेजी अनुवाद को पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में लोकार्पित की। तेरापंथ परिचायिका सन् 2010 से 2021 जिसका संकलन मुनि ॠषभकुमार जी आदि संतों ने किया है। श्रीचरणों में लोकार्पित की गई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि दो पुस्तकें अभी सामने आई हैं। यह तेरापंथ परिचायिका जो पुस्तक है, यह बहुत ही उपयोगी प्रतीत हुई। बहुत जानकारियाँ इस पुस्तक से मिल सकती हैं। ऐतिहासिक बातें हैं। तीर्थंकर चरित्र तो श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री सुमेरमलजी की हैं, उसका अंग्रेजी अनुवाद आया है। अंग्रेजी पाठकों के लिए जानकारी का माध्यम बन सकती है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने कहा कि साधना तो संघबद्ध ही हो सकती है।