अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

ु मंत्री मुनि सुमेरमल ‘लाडनूं’

(3) चारित्र मार्ग

प्रश्‍न-28 : परिहार विशुद्धि चारित्र का क्या स्वरूप है?
उत्तर : परिहार विशुद्धि चारित्र वाले ‘परिहार’ नाम की तपस्या करते हैं। इसे केवल छेदोपस्थापनीय चारित्र वाले ग्रहण कर सकते हैं। ऐसे मुनि जिनके संयमी जीवन के बीस वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, वे ही यह तप अंगीकार कर सकते हैं। नौ मुनि मिलकर अठारह महीनों तक कठोर तपस्या करते हैं। प्रथम छह महीनों में चार मुनि तप करते हैं, चार मुनि उनकी परिचर्या-सेवा करते हैं, उन नौ में से एक साधु को आचार्य नियुक्‍त कर लिया जाता है। दूसरी छमाही में तप करने वाले परिचर्या व परिचर्या करने वाले तप करते हैं। आचार्य वही रहते हैं। तीसरी व अंतिम छमाही में आचार्य तप करते हैं, शेष आठों मुनियों में से एक को आचार्य चुन लिया जाता है और बाकी सात मुनि परिचर्या करते हैं।

तप का क्रम ॠतु जघन्य मध्यम उत्कृष्ट
(1) प्रथम छमाही में ग्रीष्म उपवास बेला तेला
(2) द्वितीय छमाही में शीत बेला तेला चोला
(3) तृतीय छमाही में वर्षा तेला चोला पंचोला
(क्रमश:)