प्रभु महाश्रमण तुम मेरे अंतर के राम हो
साध्वी प्रबुद्धयशा
कोई भी उपाय हुवै तो बताओ
दीपावली का पावन दिन। पूज्यवर के साथ मुख्य मुनिप्रवर, मुनिश्री दिनेश कुमार जी, कुमारश्रमण जी, कीर्तिकुमार जी, विश्रुतकुमारजी आदि भी पधारे। मातृहृदया साध्वीप्रमुखाश्रीजी, मुख्यनियोजिका जी, साध्वीवर्याजी एवं हम कई साध्वियाँ वहाँ उपस्थित थीं।
आचार्यवर(महान कृपा के साथ) संतों की ओर होकरआं रो कियां उपचार कियो जा सकै है? आंनै पाछा खड्या कियां कर्या जा सकै। ए ठीक हूं ज्यावै। सारो काम-काज पैली की तरह करणो शुरू कर देवै। कोई तरीको ध्यान में आवै? कोई उपचार हुवै तो बताओ। गुरुदेव की चिंता को देखकर हम सब विस्मित थे।
साध्वीप्रमुखाश्रीजीगुरुदेव खूब ध्यान दिरावै है।
कीर्तिमुनि व्यवस्था देख रह्या है।
आचार्यप्रवर ने सबको पूछाकोई तंत्र, मंत्र, जड़ी-बूंटी, चूर्ण, दवाई ध्यान में हुवै तो बताओ।
फिर कल्पलताजी सेकोई मंत्र जाणो हो के?
कल्पलताजीगुरुवचन से बड़ा कोई मंत्र नहीं है।
सभीगुरुकृपा ही सबसे बड़ी औषधि है।
आचार्यवरजाप-स्वाध्याय का प्रयास तो हो ही रहा है।
सभीतहत्।
साध्वीप्रमुखाश्रीजीस्वाध्याय, जाप, पथ्य एवं सेवा में कोई कमी नहीं है। सतियाँ पूरा ध्यान रख रही हैं।
आचार्यवरफिर भी कोई उपाय हो जिससे ये ठीक हो जाएँ।
जिनप्रभाजीगुरुदेव! आपश्री, साध्वीप्रमुखाश्रीजी एवं सभी बहुत कृपा करवा रहे हैं।
गुरुकृपा से ही इनके भीतर शांति, समाधि है यही इन्हें ठीक करेगी।
शिक्षा
आचार्यवर ने एक दिन फरमायाम्हारी आवाज सुण रह्या हो? चंद्रिकाश्रीजीतहत् गुरुदेव।
आचार्यवरदेखो। स्वास्थ्य के लिए प्रयास कर रह्या हां। कदै इ सफलता मिल ज्यावै कदै इ नहीं भी मिलै या कम मिलै। तो मन में दु:खी नहीं होणो चाहीजै। इयां सोचणो म्हारै कर्मां को कर्जो उतर रह्यो है। आपां के ऊपर कित्तो कर्मा को कर्जो है, बो उतारणो है। अच्छो है अठै ही उतर ज्यावै, जियां कोई व्यक्ति पर एक करोड़ को कर्जो है। बो 20 लाख दै देवै तो लारे 80 लाख ही बचै। फेर कदेइ 15 लाख दै देवै तो 65 लाख ही शेष रेवै। इयां करतां-करतां पूरो कर्जो उतर ज्यावै। बियां ही समता स्यूं कर्मां को कर्जो उतारणो है। और मुक्ति ने नेडी करणी है।
चंद्रिकाश्रीजीगुरुदेव बहुत कृपा करवाई। मैं समता स्यूं कर्म काटूं बस आ ही इच्छा है।
एक दिन में तीन बार
दिनांक 12 नवंबर। साध्वी चंद्रिकाश्रीजी मूर्च्छा की सी स्थिति में थी। पूज्यप्रवर प्रात:काल दर्शन देने पधारे। पर वे मूर्च्छा में थीं। मंगलपाठ सुनाकर पूज्यश्री पधार गए। पुन: मध्याह्न में आचार्यवर आगे का चिंतन करवाने के लिए हमारे ठिकाने पधारे। वे मूर्च्छा में ही थी। पूज्यवर की सन्निधि में साध्वीप्रमुखाश्रीजी आदि साध्वियाँ एवं मुख्यमुनिश्री आदि कई संत उपस्थित थे।
आचार्यवरअब कांई करणो चाहीजै। अठै डॉक्टर की सुविधा कोनी। आंनै जयपुर भेज देणो कियां रेवै। बठै डॉक्टर, हॉस्पिटल सब है।
आचार्यवर चिंतन में थे। अन्य सभी मौन थे, क्योंकि स्थिति गंभीर थी। पुन: आचार्यवर-शरीर और आत्मा दो दृष्टियाँ स्यूं चिंतन करां तो इयां लागै। आत्मा की दृष्टि स्यूं तो अठै ही रहणो उचित है। और शरीर की दृष्टि स्यूं जयपुर जाणो ठीक लागै।
मैंने निवेदन कियाभंते! जब वे होश में थी तब उनकी भिन्न समाचारी, एमआरआई आदि की इच्छा नहीं थी। वे हमेशा मना करती रही।
पूज्यवर ने उनके ज्ञातिजनों से पूछाउन्होंने भी जयपुर की इच्छा अभिव्यक्त की। पूज्यवर ने जयपुर का निर्णय करवा दिया।
फिर शाम को लगभग आधा घंटा दिन रहा तब साध्वी जिनप्रभाजी कार्यवश गुरुदेव के ठिकाने गईं।
(क्रमश:)