प्रभु महाश्रमण तुम मेरे अंतर के राम हो
साध्वी प्रबुद्धयशा
साध्वीप्रमुखाश्रीजी का अपार स्नेह एवं कृपादृष्टि साध्वी चंद्रिकाश्रीजी के भीतर ऊर्जा का संचार कर रही थी। श्रद्धेया महाश्रमणीजी प्रतिदिन पधारते और सेवा करवाते। कभी-कभी वे तीन-चार बार पधार जाते। साध्वीप्रमुखाश्रीजी बार-बार हम साध्वियों को पुछवाते रहतेचंद्रिकाश्रीजी कैसे हैं? जरूरत है तो मैं आऊँ। साध्वीप्रमुखाश्रीजी कभी वैराग्यपरक, स्तुतिपरक ढालें सुनवाते, कभी उन्हें दोहें सिखाते, कभी जप करवाते, कभी छोटे-छोटे प्रश्न पुछवाते, कभी इतिहास की बातें बताते, कभी ग्रास दिलवाते, कभी विनोद करवाते आदि। साध्वीप्रमुखाश्रीजी जब सेवा करवाते तो ऐसा लगता मानो उनके भीतर के रसायन ही बदल रहे हैं। वे अतिरिक्त आनंद एंव चित्त समाधि का अनुभव करती। वंदनीया मुख्य नियोजिका जी प्रतिदिन प्राय: मध्याह्न में पधारते। उन्हें जप के साथ विशेष रूप से आध्यात्मिक प्रेरणा दिलवाते। मुख्य नियोजिकाजी की प्रेरणाएँ उनके चिंतन को आध्यात्मिक संपोषण देती। आदरणीय साध्वीवर्याजी भी प्रतिदिन आराधना की ढाल सुनाने पधारते। दिन-भर साध्वियों का समागम एवं उनकी शुभकामनाएँ उन्हें आह्लादित करती ।
हमने अनुभव किया कि उन्हें इतनी, चारों ओर से संवेदनाएँ, शुभकामनाएँ प्राप्त हो रही थीं कि जिससे वे वंदना की अनुभूति में नहीं गई। वे परम समाधि का अनुभव कर रही थीं। उनकी आत्म-जागृति और आंतरिक समाधि का ही परिणाम था कि दिनांक 12 नवंबर को रात्रि में (जयपुर आने से पूर्व) अर्हत वंदना के बाद उन्होंने कहामुझे साध्वीप्रमुखाश्रीजी की सेवा करनी है। आलोयणा करनी है। श्रद्धेया साध्वीप्रमुखाश्रीजी निवेदन करते ही तत्काल पधारे उन्हें आलोयणा करवाई। वे पूरी शक्ति और जागरूकता के साथ स्थान-स्थान पर ‘तत्स मिच्छामि दुक्कड़ं’ का उच्चारण कर रही हैं। वे आराधक पद के लिए सदैव जागरूक थी। आलोयणा करके वे बहुत हल्केपन का अनुभव कर रही थी। साध्वी चंद्रिकाश्रीजी की जागृत चेतना हमारे लिए विशेष प्रेरणा है।
साध्वी चंद्रिकाश्रीजी का मेरे ऊपर अतिरिक्त उपकार है। वे हमारे वर्ग की जिम्मदार साध्वी थी। वे बड़ी कुशलता से जिममेदारियों का निर्वहन करतीं। उन्होंने मुझे हर दृष्टि से पूर्णत: निश्चिंत रखा। वे मुझे अध्ययन, जीवन-निर्माण, व्यक्तित्व विकास आदि दृष्टियों से बहुत ज्यादा प्रेरित करती थी। अभी प्रतिपल पग-पग पर उनकी कार्यकुशलता, उनकी निश्छलता, उनकी वैराग्य भावना, उनकी श्रमशीलता, उनकी गुण ग्राहकता, उनकी कृतज्ञ भावना स्मृति पटल पर तैरती रहती है और संप्रेरित करती रहती हैं। उनका सहवास चिरस्मरणीय है। वह पवित्र आत्मा जहाँ भी है समुत्थान करती रहे। अंतहीन कृतज्ञता एवं शुभाशंसा के साथ---- (समाप्त)