अर्प और काम पर धर्म का संयम रहे : आचार्यश्री महाश्रमण
दिल्ली, 7 मार्च, 2022
इक्कीसवीं सदी के युगपुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि गृहस्थ जीवन में अर्थ की व्यवस्था पर भी ध्यान होना होता है। आर्थिक व्यवस्था ठीक नहीं होती है, तो गार्हस्थ्य में कठिनाई पैदा हो सकती है। चतुरवर्ग की बात आती है, त्रिवर्ग की बात भी आती है। चार पुरुषार्थ अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष। मोक्ष तो परम की साधना है। साधु सर्वत्यागी बनकर मोक्ष को समर्पित कर देते हैं। गार्हस्थ्य में भी मोक्ष के लिए पुरुषार्थ किया जा सकता है। बारहव्रत और सुमंगल साधना जैसे अनेक रूपों में गृहस्थ भी धर्म की साधना कर सकता है। गार्हस्थ्य में अर्थ और काम ये दोनों भी चलते हैं। गार्हस्थ्य के दो पहिए हैंअर्थ और काम। इनसे संसार चलता रहता है। अर्थ और काम पर धर्म का संयम रहना चाहिए। संयम करने के लिए अणुव्रत के नियमों को स्वीकार करें। संयम अणुव्रत की आत्मा है। प्रेक्षाध्यान साधना से भी धर्म को पोषण मिल सकता है। वित्त और वृत्त दो शब्द हैं। वित्त यानी धन। वृत्त यानी चारित्र। वित्त के परिप्रेक्ष्य में चारित्र अच्छा रहे। वित्त के अर्जन में शुद्ध साधन हो तो शुद्धता रह सकती है। दो शब्द हैंअर्थ और अर्थाभास। न्याय से उपार्जित धन अर्थ है और अन्याय से उपार्जित धन अर्थाभास है। गार्हस्थ्य में अर्थाभास न हो। आदमी प्रयत्नपूर्वक वृत्त-चारित्र की सुरक्षा करे। वित्त से ज्यादा महत्त्व वृत्त का होता है। मोक्ष के संदर्भ में भी आदमी को जागरूक रहना चाहिए। शरीर अशाश्वत है, आत्मा शाश्वत है। पैसा-धन भी शाश्वत नहीं है। मृत्यु निकट होती जा रही है तो धर्म का संचय करो। एक सामायिक भी कोई रोज करता है तो मानो धर्म का संचय किया जा रहा है और भी ढंग से धर्म का संचय त्याग-तप से किया जा सकता है। बुढ़ापे का भरोसा न करें। धर्म दो प्रकार का होता हैकालिक धर्म और कालातीत धर्म। जप-सामायिक, पौषध आदि कालिक धर्म है। ईमानदारी-चोरी न करना आदि कालातीत धर्म है। ये तो जिंदगी भर करो। अपने आचरण के साथ धर्म जोड़ा जा सकता है। अणुव्रत को तो जैन-अजैन, नास्तिक कोई भी स्वीकार कर सकता है। छोटे-छोटे नियमों से जीवन में धर्म आ सकता है। श्रावक के बारह व्रतों में दोनों प्रकार के धर्म आ जाते हैं। बारह व्रतों का सुंदर प्रारूप है। आचरण में धर्म आए। जीवनशैली में संयम रहे। दुनिया में अनेक समस्याओं का कारण आदमी का असंयम होता है। पुनर्जन्म और पुण्य-पाप भी संसार में है। वित्त के साथ आदमी का चरित्र भी अच्छा रहना चाहिए। आज दिल्ली में के0एल0 जैन के घर आना हो गया। अच्छा क्रम चलता रहे। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में के0एल0 जैन ने अपनी भावना व खुशी अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।