महासती शासनमाता कनकप्रभाजी के महाप्रयाण से एक युग का अवसान
अध्यात्म साधना केंद्र, 17 मार्च, 2022
साधना के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी को दर्शन देने स्वयं सुखसाता पूछने पधारे। शासनमाता के गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए पूज्यप्रवर ने उनकी भावना देखकर उन्हें प्रात: लगभग 7:27 पर चतुर्विध संघ की उपस्थिति में तिविहार संथारे का प्रत्याख्यान करवाया। पलक झपकते ही ये समाचार देश-विदेश में पहुँच गए।धीरे-धीरे शासनमाता के स्वास्थ्य स्थिति गंभीर होती जा रही थी। पूज्यप्रवर भी उनके परिपार्श्व में विराजमान थे। चतुर्विध धर्मसंघ आध्यात्मिक जप अनुष्ठान कर रहा था। शासनमाता की अति गंभीर स्थिति को देखते हुए उन्हें लगभग 8:40 पर चौविहार संथारे का प्रत्याख्यान करवा दिया और प्रात: लगभग 8:45 पर उनका संथारा सीज गया। शासनमाता ने वर्तमान नश्वर देह को त्यागकर महाप्रयाण कर दिया। पूज्यप्रवर ने डॉक्टर की सलाह से उनके महाप्रयाण होने की घोषणा की। पूरा धर्मसंघ एक बार तो स्तब्ध-सा रह गया पर जो होना था सो हो गया। आखिर एक दिन तो वर्तमान शरीर को जीव छोड़ता ही है। साध्वियों ने उन्हें नए वस्त्र पहनाकर उनके पार्थिव शरीर को श्रावक समाज के सुपुर्द कर दिया। श्रावक समाज ने शासनमाता के पार्थिव शरीर को सभी के अंतिम दर्शनार्थ महाश्रमण सभागार में अवस्थित किया। अंतिम दर्शनार्थ श्रावक-श्राविका समाज उमड़ पड़ा। अंतिम दर्शन कर सभी ने उनकी आत्मा के प्रति मंगलकामना करते हुए स्वयं को कृतार्थ किया।
बैकुंठी सरदारशहर में निर्मित करवाकर मँगवाई गई। पाँच खंडी बैकुंठी थी। 51 चाँदी कलश लगे थे। बैकुंठी देव विमान के समान शोभित हो रही थी। उनकी अंतिम महाप्रयाण यात्रा सायं चार बजे निकालने का निर्णय किया गया। शासनमाता के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार अध्यात्म साधना केंद्र के पीछे नव भूमि में करने का निर्णय किया गया।
शासनमाता के पार्थिव शरीर को देव विमान में स्थापित किया गया। सभी चारित्रात्माओं, समणीवृंद व श्रावकसमाज ने अंतिम अनमने मन से विदाई दी। पूज्यप्रवर महाश्रमण सभागार में पधारे। शासनमाता के पार्थिव शरीर को अंतिम मंगलपाठ सुनाया। लगभग सायं सवा चार बजे महाश्रमण सभागार से शासनमाता की अंतिम महाप्रयाण यात्रा शुरू हुई। पूरा सभागार जयकारों से गुंजायमान हो रहा था।
अंतिम यात्रा अध्यात्म साधना केंद्र से बाहर निकलते हुए बाहर का भ्रमण करते हुए पुन: अध्यात्म साधना केंद्र के दूसरे मार्ग से अंदर प्रवेश किया और अंतिम संस्कार जो निर्धारित था वहाँ पहुँच गई। वहाँ पर जैन संस्कार विधि से अंतिम संस्कार करवाया। शासनमाता के संसारपक्षीय पारिवारिकजनों ने मुखाग्नि दी और शासनमाता का पार्थिव शरीर देखते-देखते पंच महाभूत में विलीन हो गया। पूज्यप्रवर ने, मुख्यनियोजिका जी ने, साध्वीवर्याजी ने अपने भावपूर्ण उद्गार शासनमाता के प्रति अभिव्यक्त किए। दिल्ली श्रावक समाज ने पूरी जागरूकता से अपने दायित्व का निर्वहन किया। बालाजी हॉस्पिटल परिवार का पूरा सहयोग रहा।
शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री जी को तीन-तीन आचार्यों की सेवा में दायित्व निर्वहन का संयोग मिला। लगभग 50 वर्ष से ऊपर उनका साध्वीप्रमुखा का काल रहा। लगभग 61 वर्ष से ज्यादा का उनका संयम पर्याय रहा। उनका व्यवस्था परिप्रेक्ष्य तो बेजोड़ था ही, साहित्य सृजन व साहित्य संपादन भी उनका अद्वितीय रहा। उन्हें कवयित्री रामकुमारी वर्मा के समकक्ष देखा गया था। आज एक देदीप्यमान नक्षत्र सबकी आँखों से ओझल हो गया। शासनमाता वास्तव में शासनमाता ही थी। उनकी ममता माँ से भी ऊपर थी। वे मातृहृदया थी। उनकी क्षतिपूर्ति तेरापंथ समाज के लिए अकल्पनीय है। पूज्यप्रवर ने निर्देश दिराया है कि 21 मार्च तक अन्य कार्यक्रमों को गौण करते हुए पाँच दिन तक अध्यात्मिक जप-अनुष्ठान व शासनमाता की स्मृति सभाओं का आयोजन धर्मसंघ में हो। लगभग 22 मार्च को पूज्यप्रवर का अध्यात्म साधना केंद्र से विहार कर दिल्ली के उपनगरों में विचरण करने की संभावना है।