यादें... शासनमाता की - (2)
साध्वी स्वस्तिक प्रभा
7 मार्च, सन् 2022, प्रात: लगभग 7 बजे सा0प्र0 के पास पधार गए। वंदना के पश्चात् सा0प्र0आज्ञा-अलोयणा का जिम्मा जिन्हें देना हो, आ0प्र0 उन्हें फरमा दें।
आ0प्र0ये बात हम बाद में करेंगे, पहले स्वास्थ्य संबंधी बात करते हैं।
डॉ0 राजेशजी कुंडलिया ने बीदासर से लेकर अब तक की शारीरिक स्थिति की विस्तृत जानकारी दी। प्रसंगवश डॉ0 राजेशजी ने कहासा0प्र0 मेरी माँ से बढ़कर है।
आ0प्र0 ने अध्यात्म साधना केंद्र, महरौली जाने का निर्णय किया और फरमायामुख्य नियोजिकाजी सा0प्र0 के परिपार्श्व में हो तो आज्ञा-आलोयणा का जिम्मा उनका रहे। उनका विकल्प साध्वीवर्या रहे। सा0प्र0 को पल-पल साता-समाधि पहुँचाएँ और आस-पास में शोरगुल न रहे। जप-स्वाध्याय धीरे-धीरे चले।
तत्पश्चात् आ0प्र0 अपने प्रवास कक्ष की ओर पधार गए। लगभग 9:30 बजे पुन: सा0प्र0 को सेवा करवाने के लिए पधारे।
आ0प्र0आपने बहुत काम किया है
गुरुदेव के साहित्य का काम
छोटे संतों के प्रेरणा देना
साध्वी समुदाय का काम
संतों को धर्मोपकरण वितरण करना
हमारे कार्य-सिलाई आदि सिखाना
सा0प्र0गुरुदेव का प्रताप है, संघ की शक्ति है। गुरुदेव ने कितनी मेहनत करवाई है। कितने लंबे-लंबे विहार करवाए हैं।
दोपहर में लगभग 1:20 पर आ0प्र0 पुन: सा0प्र0 के कक्ष में पधारे।
आ0प्र0आपके अनुकूलता हो तो मैं कुछ बातें आलोयणा (आत्मालोचन) के रूप में आपको बताऊँ। आलोयणा से संयम का पर्यवेक्षण हो सकता है। जैसे शरीर में व्याधि होने पर ध्यान दिया जाता है, डॉक्टर
को दिखाया जाता है, चेकअप करवाया जाता है वैसे ही संयम भी मानो
शरीर है।
सूक्ष्मता से देखें कि इसमें कहीं कोई दोष तो नहीं लगा है। जिस प्रकार पहले एक्स-रे होता है, उसके बाद सोनोग्राफी की जाती है, फिर एम0आर0आई0 होती है, उसी प्रकार अब गहराई से ध्यान देना है कि कहीं कोई दोष तो नहीं लगा है ना। इसमें ॠजुता आवश्यक है। यदि ॠजुता न हो तो कहीं बिंदी (धब्बा) सी लग जाती है। विशेष रूप से जब शरीर बीमार हो जाए तब आलोयणा कर लेनी चाहिए। लगभग 1:30 बजे प0पू0 आ0प्र0 ने सा0प्र0 को आलोयणा करवाना प्रारंभ किया। उस समय कक्ष में केवल आ0प्र0, मुख्यमुनिप्रवर एवं सा0प्र0 विराजित थे। शेष साधु-साध्वियाँ कक्ष के बाहर थे।
आ0प्र0 ने 5 महाव्रत, रात्रि भोजन विरमण व्रत, 5 समिति, 3 गुप्ति, देव, गुरु, धर्म तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्रइन सबकी विस्तार से आलोयणा करवाई।
करीब 40 मिनिट तक यह क्रम चला। आलोयणा के संदर्भ में सा0प्र0 ने अपने जीवन के प्रसंग विशेष को भी जागरूकतापूर्वक आ0प्र0 से निवेदित किया। इस क्रम के अंत में करबद्ध, विनत भाव से सा0प्र0 ने फरमाया
गुरु हो तो ऐसे हो। गुरुदेव! आपने पूर्ण कृपा करवाई, अनुग्रह करवाया। आलोयणा करवाकर आपने मुझे शुद्ध बना दिया।
फिर आ0प्र0 ने वहाँ से प्रस्थान किया और लगभग 10 कि0मी0 का विहार कर राजेंद्र नगर में कन्हैयालालजी पटावरी के घर रात्रि प्रवास किया।