अनुपमेय कृति
साध्वी पीयूषप्रभा
आचार्य तुलसी की अनुपमेय कृति साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा असाधारण विशेषताओं की पुंज थी। संयम जीवन की यात्रा का शुभारंभ कर आपने अपने उज्ज्वल भविष्य की सर्जना की। गुरु भक्ति, संघ भक्ति और आत्म भक्ति से भावित आपका जीवन आचार्य तुलसी की पैनी नजरों से छिपा नहीं रहा। उन्होंने आपको गंगाशहर की पावन भूमि पर साध्वीप्रमुखा के रूप में मनोनीत कर एक नए इतिहास का निर्माण किया। निस्पृहता निरभिमानिता और निष्कांकिता की त्रयी से समन्वित व्यक्तित्व सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया। जहाँ तेरापंथ के विशाल साध्वी समाज को आपने शिक्षा, साधना और संघीय संस्कारों से संपुष्ट बनाने में अपने बहुमूल्य क्षणों को समर्पित किया, वहीं ज्ञानाराधना के क्षेत्र में सभी के लिए प्रेरणा प्रदीप बनकर बाती में तेल भरती रही। ब्रह्ममुहूर्त में स्वाध्याय की स्वर लहरियाँ आज भी कानों से गुंजायमान हो रही है। महाश्रमणी, संघ-निदेशिका, असाधारण साध्वीप्रमुखा एवं शासनमाता जैसे वजनी संबोधन प्राप्त करना आपके धीर-गंभीर व्यक्तित्व एवं कुशल नेतृत्व का ही सुपरिणाम है।
उपशम की साधना में आप निरंतर प्रवर्द्धमान रहे।
कोलकाता (राजरहाट) चातुर्मास की बात हैं एक दिन एक साध्वीश्री जी आई और कहा कि आपको साध्वीप्रमुखाश्री जी बुला रही हैं। उस समय मैं जप कर रही थी अतः नहीं जा सकी। जप संपन्न होते ही मैं आपश्री के उपपात में पहुँची। मैंने निवेदन किया कि आपने मुझे बुलाया किंतु उस समय नहीं आ सकी। कारण की भी जानकारी दी। उस समय प्रमुखाश्री जी ने सहज भाव से जो कहा वह उनकी विशिष्ट उपशम की साधना का परिचायक था। उन्होंने कहाµमैंने तुम्हें पहले नहीं कहा। कोई बात नहीं। 500 से अधिक साध्वियों का संरक्षण करने वाली हस्ती के ये शब्द श्रवण कर मैं उनकी साधना के प्रति नत हो गई। और उस दिन मुझे लगा कि वे आत्मसाधिका आत्मआराधिका पहले थी उसके बाद साध्वीप्रमुखा। वे निरंतर अध्यात्म की गहराइयों का स्पर्श कर रही थीं। इसीलिए अहंकार उनको छू नहीं सका। ऋजुता, मृदुता इत्यादि दशविध धर्मों से संवलित वह प्रेरणामय व्यक्तित्व युगों-युगों तक साध्वी समाज का पथदर्शन करता रहे।