
यादें... शासनमाता की - (6)
साध्वी स्वस्तिक प्रभा
आचार्यप्रवर: कल रात की भी आलोयणा दे दें---2 घंटा जप-स्वाध्याय। दवाई के बारे में अनेक विचार आ जाते हैं। आयुर्वेदिक दें तो इनके ऐलोपैथिक चल रही है। आपका मन हो तो आयुर्वेदिक का सोचें। सरदारशहर से कनकमलजी को याद कर लें?
साध्सवीप्रमुखाश्री जी: ना
करीब 4ः10 बजे आचार्यप्रवर पास वाले कमरे में विराज गए।
सायं 5ः30 पर फिर पधारे।
आचार्यप्रवर: मुखवस्त्रिका नहीं लगी हुई है, इसलिए कपड़ा लगा (मुँह पर) रखा है?
साध्वी सुमतिप्रभा: तहत् आचार्यप्रवर नहीं होते तब कभी हटा भी देते हैं।
आचार्यप्रवर: आपके साता रहे तो कपड़ा हटा दो।
साध्वियाँ: लोगों को दर्शन देते समय भी कपड़ा लगाकर रखते हैं।
आचार्यप्रवर: मोरपिच्छी पास में आ गई?
साध्वी सुमतिप्रभा: तहत्।
आचार्यप्रवर: आपको पोढ़ाने में साता मिले तो पोढ़ा (लेट) जाएँ। कितनी देर विराज पाते हैं?
साध्वी सुमतिप्रभा: लगभग आधा घंटा।
आचार्यप्रवर: हम बैठे हैं-ऐसा सोचकर आपको बैठने का श्रम करने की जरूरत नहीं है।
साध्वीप्रमुखाश्रीजी: गुरुदेव इतनी कृपा करवा रहे हैं कि मैं बोल नहीं सकती।
आचार्यप्रवर: रात में भी सोए-सोए रहना होता है।
साध्वी सुमतिप्रभा: थोड़ी करवट लेते हैं।
आचार्यप्रवर: मेरे जाने के बाद फिर पोढ़ा जाएँगे।
साध्वी सुमतिप्रभा: सुबह-सुबह गुरु वंदना वाले टाइम कुछ देर विराजते हैं।
आचार्यप्रवर: यानी ज्यादा सुविधा सोने में रहती है। तब तो हम ज्यादा नहीं बैठें।
साध्वीप्रमुखाश्रीजी: गुरुदेव की मर्जी हो उतनी सेवा करवाएँ।
आचार्यप्रवर: आप भले पोढ़ाओ। सेवा तो आप फरमाओ तो दिन में भले 8-10 घंटा बैठ जाएँ।
साध्वीप्रमुखाश्रीजी: इतना नहीं गुरुदेव। धर्मरुचिजी स्वामी बाहर खड़े हैं। गुरुदेव की मर्जी हो इतिहास वाले कार्य की जिम्मेदारी उन्हें दे देवें।
इस संदर्भ में आचार्यप्रवर ने जो लिखित करवाया, उसे प्रस्तुत किया जा रहा है-
अभी सायंकाल लगभग 5ः45 के आसपास हम साध्वीप्रमुखाश्री जी के पास उनके कमरे में बैठे हैं। परमपूज्य गुरुदेव तुलसी के जीवनवृत्त (तेरापंथ के इतिहास का एक अंग) का कार्य मेरे द्वारा साध्वीप्रमुखाश्रीजी को सौंपा हुआ है। इस विषय में साध्वीप्रमुखाश्रीजी की अभिव्यक्ति संभवतः ऐसी हुई है कि उस कार्य की संपूर्ति में मुनिश्री धर्मरुचिजी स्वामी तथा साध्वी चित्रलेखाजी व साध्वी स्वस्तिकप्रभाजी योगदान दे। अपेक्षा पड़े तो शासन गौरव साध्वी कल्पलताजी का सहयोग भी लिया जा सकता है। परंतु मूलतः दो नाम साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने फरमाया-ऐसा मैं समझा हूँ और मेरी बात यह है कि साध्वीप्रमुखाश्रीजी स्वस्थ होकर स्वयं ये कार्य संपन्न करें-यह मंगलकामना है। साध्वीप्रमुखाश्रीजी की भावना मैंने नोट कर ही ली है। मेरी मंगलकामना भी सामने नोटेड है। मुनि धर्मरुचिजी स्वामी भी यहीं विराजित हैं। साध्वी चित्रलेखा, साध्वी स्वस्तिकप्रभा, साध्वी कल्पलताजी भी यहीं खड़ी हैं। इसलिए सभी सम्बद्ध व्यक्तियों के सामने ही यह बात हो रही है।
खासकर ये दो साध्वियाँ मुनि धर्मरुचि जी स्वामी से गाइडेंस अपेक्षानुसार लेकर कार्य करें और फिर निरीक्षण के लिए उन्हें दे दें। ये विधा रहनी चाहिए। मेरी इस बात में साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने संकेत के द्वारा सहमति प्रदान की है और ‘कृपा कराई गुरुदेव’-ऐसा शब्द फरमाया है।
मेरे इस लेखन से साध्वीप्रमुखाश्रीजी का इच्छित काम पूरा हो गया है-ऐसा उनके संकेत से लग रहा है।
साध्वीप्रमुखाश्रीजी: कृपा कराई।
मुनि दिनेश कुमार: गुरुदेव की मंगलकामना पूरी हो।
फिर प्रवास स्थल पर पधारने से पहले आचार्यप्रवर ने साध्वीप्रमुखाश्रीजी के लिए नमस्कार महामंत्र, मंगलपाठ, विघ्नहरण, चइत्ता भार, संती कुंथु---आरोग्य बोहिलाभं तथा चन्देसु निम्मलयरा-इन मंत्रों को अपने श्रीमुख से फरमाया।
(क्रमशः)