दुःख मुक्ति का रास्ता है - संन्यास लेना: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

दुःख मुक्ति का रास्ता है - संन्यास लेना: आचार्यश्री महाश्रमण

दीक्षा महोत्सव का हुआ भव्य आयोजन

सरदारशहर, 6 मई, 2022
वीतराग के साधना शिखर, संयम प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में आज दीक्षा महोत्सव का आयोजन हुआ। मुमुक्षु निशा डागा को परम पावन ने साध्वी दीक्षा प्रदान करवाई। महामनीषी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी आत्मा अनादिकाल से और अनंत काल से जन्म-मरण की परंपरा में भ्रमण कर रही है। जन्म-मरण होना कब शुरू हुआ उसका कोई समय नहीं है। यह परंपरा निरंतर चल रही है। बार-बार जन्म-मरण चलता रहता है।
इस संसार में दुःख है। हालाँकि सुख भी है, पर जन्म, बुढ़ापा, रोग और मृत्यु दुःख है। इसलिए यहाँ प्राणी संकलिष्ट हो जाते हैं। आदमी के मन में ये बात आ सकती है कि मैं इस दुःखमय संसार में ही रहूँगा या इससे मुक्ति भी पा सकता हूँ? दुःख मुक्ति मिल तो सकती है। उसका उपाय क्या है? दुःख मुक्ति का रास्ता है, संन्यास लेना, जिस श्रद्धा के साथ निष्क्रांत हुए हो, घर छोड़ संन्यास ग्रहण किया है, संयम पर्याय उत्तम स्थान को लिया है, उसका पालन भी करें। गुरु आज्ञा का सम्यक् पालन करते हुए संयम का पालन करें। जैन श्वेतांबर तेरापंथ में अतीत में दस आचार्य हुए हैं। वर्तमान आचार्य ही प्रायः दीक्षा प्रदान कराते हैं। कभी-कभी आचार्य की आज्ञा से अन्य साधु-साध्वी भी दीक्षा प्रदान कर सकते हैं।
दीक्षा एक नया अभिनिष्क्रमण-प्रस्थान है। संयम का स्वीकरण होता है। आज एक बहन की दीक्षा होने जा रही है, जो सरदारशहर से ही हौ। हमारे पास लिखित आज्ञा पत्र आ गया है। तत्पश्चात पूज्यप्रवर ने पारिवारिक जनों से मौखिक आज्ञा व दीक्षार्थिनी बहन की भी मौखिक आज्ञा ली। दीक्षा संस्कार का कार्यक्रम पूज्यप्रवर ने आर्षवाणी से शुरू किया। भगवान महावीर एवं पूर्वाचार्यों का स्मरण करते हुए नमस्कार महामंत्र से मुमुक्षु निशा डागा को सर्वसावद्य योग तीन करण तीन योग से यावज्जीवन का त्याग सामायिक पाठ के उच्चारण से करवाया। पूज्यप्रवर ने अतीत की आलोचना करवाई। केश लुंचन संस्कार मुख्य नियोजिका विश्रुतविभाजी ने किया। रजोहरण प्रदान मुख्य नियोजिका जी से करवाया। दीक्षा के साथ ही नया जन्म हो जाता है। पूज्यप्रवर नया नाम संस्कार करते हुए मुमुक्षु निशा का नया नाम साध्वी नमनप्रभा किया।
पूज्यप्रवर ने साधुचर्या की शिक्षा प्रदान करवाई। श्रावक-श्राविका समाज ने नवदीक्षित साध्वी को वंदना की। अनुशासन का ओज आहार पूज्यप्रवर के द्वारा बाद में अंदर प्रदान करवाया जाएगा। पूज्यप्रवर ने सुमंगल साधना के विषय में भी विस्तार से समझाया। मुख्य नियोजिका जी ने दीक्षा के महत्त्व को समझाते हुए कहा कि दीक्षा तन की औषधी है। जो व्यक्ति अध्यात्म के क्षेत्र में प्रवेश करना चाहता है, उसे दीक्षा स्वीकार करनी होती है। समर्थ और शक्ति संपन्न गुरु ही दीक्षा प्रदान करा सकते हैं। दीक्षा का मतलब है-व्रतों को ग्रहण करना। दीक्षा-वैराग्य के भाव निमित्तों से आ सकती है। इन निमित्तों के कारण व्यक्ति राग से विराग की ओर जाता है। दीक्षा का मार्ग फूलों का मार्ग है, तो शूलों का मार्ग भी है। फिर भी व्यक्ति दीक्षा ग्रहण करना चाहता है। दीक्षा से पूर्व मुमुक्षु निशा का परिचय मुमुक्षु मीनाक्षी आंचलिया ने दिया। आज्ञा पत्र का वाचन पारमार्थिक शिक्षण संस्था के संयोजक मोतीलाल जीरावला ने किया। लिखित आज्ञा पत्र को मुमुक्षु निशा के पिता किशनलाल व माँ कांतादेवी ने श्रीचरणों में अर्पित किया। मुमुक्षु निशा ने अपनी भावना पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। महिला मंडल व कन्या मंडल द्वारा समूह गीत की प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि मोक्ष का मूल गुरु कृपा हो सकती है। हमारे जीवन में सम्यक्त्व का महत्त्व है।