हमें अक्षय सम्यक्त्व मिले, जो कभी क्षीण न हो: आचार्यश्री महाश्रमण
सरदारशहर की पावन धरा पर हुआ अक्षय तृतीया का सफल कार्यक्रम
सरदारशहर, 3 मई, 2022
अक्षय तृतीया का पावन दिन जो जैन धर्म व अन्य धर्मों से जुड़ा दिन है। भगवान ऋषभ के लगभग 13 माह, 10 दिन की चौविहार तपस्या आज के दिन उनके प्रपौत्र श्रेयांस कुमार द्वारा ईक्षु रस से पारणा हुआ था। इसी परंपरा के अनुसार वर्षीतप के पारणे होते हैं।
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने इस पावन दिन मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आध्यात्मिक जगत में धर्म के तीन प्रकार बताए गए हैं। आध्यात्मिक साधना के तीन प्रकार हैंµअहिंसा, संयम और तप। आज अक्षय तृतीया का कार्यक्रम हो रहा है।
वर्तमान का वर्षीतप भगवान ऋषभ के तप का आंशिक रूप है। उसका अनुकरण किया जा रहा है। भगवान ऋषभ ने तो संकल्प सहित वर्षीतप नहीं किया था, हो गया था। दान उनको मिला नहीं। उन्होंने बहुत बड़ी तपस्या की थी। वर्तमान में इतनी बड़ी तपस्या संभव नहीं है।
उपवास करना भी अच्छा तप है। उपवास करने से और साधना करने के लिए समय मिल जाता है। भगवान ऋषभ गृहस्थ अवस्था में पहले रहे थे। बाद मे साधु बने थे। गृहस्थ अवस्था में उन्होंने समाज की सेवा की थी। मैं उनको एक राजनीति का मानता हूँ। राजनीति करना भी एक सेवा है। उन्होंने जनता को प्रशिक्षण दिया था। बाद में वे अध्यात्म नीति में आए। वे धर्मनेता बन गए थे।
वर्तमान अवषर्पिणी के वे प्रथम तीर्थंकर, अध्यात्म के प्रवक्ता बन गए थे। उनसे बड़ा और कोई नहीं था। वे धर्म के प्रवक्ता बन गए थे। वे साधु बन गए थे। प्रवक्ता बनने के साथ साधना भी हो। साधना और धर्म की बात करने वाला प्रवक्ता व्यक्ति साधना खुद भी करे तो उसकी बात का ज्यादा महत्त्व हो सकता है।
यह वर्षीतप एक बहुत अच्छी साधना है। चैत्र कृष्णा अष्टमी से नए सिरे से वर्षी तप शुरू होता है। उपवास के साथ जप, कषायमंदता की साधना चले। चारित्रात्माओं ने, समणियों ने, श्रावक-श्राविकाओं ने कितने-कितने वर्षी तप कर लिए हैं। मैं तो साधुवाद दूँगा वर्षीतप करने वालों को कि उन्होंने अच्छा कार्य किया है। आत्मशुद्धि का अच्छा उपक्रम वर्षीतप है।
पूज्यप्रवर ने वर्षीतप के नियम समझाए। ये नियम वर्षीतप को आभूषित करने वाले बन जाते हैं। वर्षीतप में लगे दोषों की शुद्धि के लिए पूज्यप्रवर ने 51 सामायिक की आलोयणा दिलवाई। हमें अक्षय सम्यक्त्व मिले, क्षायिक चारित्र भी प्राप्त हो, ऐसी अक्षय शक्ति मिले जो वापस क्षीण न हो जाए।
अक्षय तृतीया की तिथि बड़ी शुभ मानी जाती है। आज के दिन अच्छा काम किया जा सकता है। पुनः वर्षीतप शुरू करने वालों को पूज्यप्रवर से प्रत्याख्यान करवाए।
पूज्यप्रवर ने आगे फरमाया कि आज ही के दिन मंत्री मुनिश्री सुमेरमल जी ‘लाडनूं’ का तीन वर्ष पूर्व महाप्रयाण हो गया था। मैं उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। वे मेरे परम उपकारी रहे हैं। साध्वीप्रमुखाश्री जी भी नहीं रहे हैं, उनको भी सादर भावांजलि अर्पित करता हूँ। उनकी अनुपस्थिति में हमारा ये कार्यक्रम हो रहा है। आगे वर्षीतप करने वालों के प्रति भी मंगलकामना।
मुख्य मुनिप्रवर ने कहा कि तीर्थंकर जन्म के साथ ही तीन ज्ञान के धनी होते हैं। भगवान ऋषभ ने सत्य को साक्षात किया था। वे अतिन्द्रिय ज्ञान से संपन्न थे। लोगों की समस्या का समाधान किया। उन्होंने सामाजिक व्यवस्था के साथ आध्यात्मिक व्यवस्था भी स्थापित की।
मुख्य नियोजिका जी ने अक्षय तृतीया के दिन के इतिहास को समझाते हुए इसके महत्त्व को समझाया। तपस्या को सभी धर्मों ने स्वीकार किया है, इससे कर्म निर्जरा होती है। आठ प्रकार की कई ग्रंथियाँ तप से शांत होती है। मनोबल से तपस्या हो सकती है। तपस्या से आत्मतोष मिलता है।
साध्वीवर्याजी ने कहा कि यह संसार अध्रुव, अशाश्वत है। परिवर्तन का कालचक्र चलता रहता है। वर्तमान अवसर्पिणी के तीसरे आरे में भगवान ऋषभ का जन्म हुआ था। उन्होंने विश्व व्यवस्था को सुदृढ़ किया। गीत का सुमधुर संगान किया। हमारी समता अक्षय बने।
सरदारशहर में लगभग 170 तपस्वियों ने पूज्यप्रवर की सन्निधि में पारणे किए। 3 साधु व 5 साध्वियों ने पूज्यप्रवर से ईक्षु रस ग्रहण किया। 4 समणियों ने भी वर्षीतप का पारणा किया। मुमुक्षु सलौनी ने भी वर्षीतप का पारणा किया। इस बार के पारणे की यह विशेषता थी कि 13 वर्ष के दक्ष नखत ने भी वर्षीतप का पारणा किया। महिला मंडल, कन्या मंडल व ज्ञानशाला ने समुह गीत की प्रस्तुति दी। व्यवस्था समिति की महामंत्री सूरज बरड़िया ने सभी का स्वागत व आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।