यादें... शासनमाता की - (7)
साध्वी स्वस्तिक प्रभा
12 मार्च, 2022, आज प्रातः लगभग 7ः00 बजे पधारकर आचार्यप्रवर ने 7ः35 तक साध्वीप्रमुखा को सेवा-उपासना करवाई।
आचार्यप्रवर: रात को कैसे रहा? नींद और---
साध्वी कल्पलताजी: सदा की तरह ही रहा।
परमपूज्य ने वीरत्थुई के पाठ के बाद ‘श्रद्धा विनय समेत’ गीत का संगान किया। जाते समय साध्वीप्रमुखाजी को नमस्कार महामंत्र सुनाकर कक्ष में पधारे। लगभग 10ः05 पर पुनः साध्वीप्रमुखाश्री जी के कक्ष में पधारे।
आचार्यप्रवर: महेंद्र कुमारजी स्वामी ने पत्र भेजा है, पढ़ दें। (साध्वीवर्याजी से) तुम पढ़ दो, धीरे-धीरे पास में जाकर।
साध्वीप्रमुखाश्री: आचार्यप्रवर प्रवचन में पधारें।
आचार्यप्रवर ने मौन मुस्कुराहट में प्रत्युत्तर दिया।
साध्वीप्रमुखा: कृपा करवाई, अनुग्रह करवाया।
पुनः 3ः30 पर आचार्यप्रवर का साध्वीप्रमुखाश्री के पास पधारना हुआ।
आचार्यप्रवर: कैसे हैं? (अचानक कुर्सी से उठकर साध्वीप्रमुखा के पास जाकर फरमाया)। बोला हुआ अरुचिकर तो नहीं लगता?
साध्वीप्रमुखाश्री: नहीं (गर्दन हिलाते हुए)
आचार्यप्रवर: (साध्वीप्रमुखाश्री के पास विराजकर) आपको रुचि हो तो गीतिका या आगम कुछ सुना दें? किसकी रुचि है?
साध्वीप्रमुखाश्री: (इशारे से) कुछ भी।
आचार्यप्रवर: आहार क्या लिया? दलिया लेते हैं क्या?
साध्वी सुमतिप्रभाजी: दलिया की मात्रा ज्यादा नहीं ले सकते। कोशिश की मगर उबाक आ जाती है। अस्पताल में 1-2 दिन लिया था। एक दिन रात में साध्वीप्रमुखाजी को सपना आया कि रुपचंदजी दुगड़ (बीदासर) ने खीर की भावना भाई।
साध्वीप्रमुखाश्री: ये सपना बताने के बाद से मुझे खीर दी खीर खिलाई।
साध्वी सुमतिप्रभाजी: उस दिन (सपने वाले दिन) बहुत विलंब हो गया। नवकारसी आए हुए काफी देर हो गई थी। मैंने साध्वीप्रमुखा से निवेदन किया तो फरमाया कि मासखमण का पारणा इतनी जल्दी थोड़ी होता है, समय तो लगता ही है। (गत 1 महीने से साध्वीप्रमुखा के आहार की मात्रा काफी कम थी और साध्वीप्रमुखा ने एक बार फरमाया था कि मेरे अत्याधिक ऊनोदरी का मासखमण सा हो गया है)।
आचार्यप्रवर: अपना ये सिद्धांत है कि आत्मा अनंत काल से यात्रा कर रही है। इस आत्मा में सम्यक्त्व आ जाए, चारित्र भी आ जाए तो वह बहुत बड़ी बात हो जाती है। भगवान महावीर की आत्मा ने भी कितने-कितने जन्म लिए। आत्मा जब साधना में लग जाए तो ऐसा मानें कि भवसागर का किनारा आ गया। भगवान महावीर की आत्मा ने भी कितनी साधना कीµवासुदेव, चक्रवर्ती और बाद में तीर्थंकर बन गए।
आखिर नंदन राजर्षि के भव में 11 लाख, कितनी मासखमण की तपस्या की। भगवान महावीर के जन्म में भी 12 साल तक तपस्या की, उसमें भी कितने उपद्रव हुए। केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद बस किनारा आ गया।
(साध्वीप्रमुखाजी से) आपकी आत्मा नरक में गई या नहीं, पता नहीं। मरुदेवा माता की आत्मा नरक में नहीं गई, वर्णन के अनुसार वनस्पति के सिवाय तिर्यंच में नहीं गई। केले के पत्ते में जाने की बात आती है। यह जरूरी नहीं है कि सबकी आत्मा नरक में जाए ही। मरुदेवा का जीव निगोद में रहा, न देव में गया, न नरक में।
भगवान महावीर की आत्मा बहुत बार नरक में पधारी है। देवगति में भी गई है। साधना करते-करते मंजिल तक पहुँचने के लिए अनेक जन्म लग जाते हैं।
हमें इस जन्म में साधना का मार्ग मिल गया है। साधु के तो सामान्यतया देवगति मानकर चलें। कर्म तो खुद को भोगने पड़ते हैं। किंतु उसमें भी समता भाव जितना रख सकें, अच्छा है। हालाँकि मौके पर समता कितनी रख सकें, पर आदर्श तो यही है।
इसके बाद आचार्यप्रवर ने पुण्य-पाप पूरब कृत---गीत के कई पद्यों का संगान किया।
आचार्यप्रवर: इतनी देर तक सोना भी सरल नहीं है। मन कैसे लगे? किसी से बात नहीं, न लिखना-पढ़ना। सोते-सोते टाइम कैसे पास हो? णमो सिद्धाणं---जप करते-करते उनसे ताँता जुड़ जाए। पूर्वकृत कर्मों को भोगने से या निर्जरा होने से ही छुटकारा मिलता है।
साध्वीप्रमुखाश्री: कृपा करवाई, गुरुदेव कितनी मेहनत करवा रहे हैं?
आचार्यप्रवर: पैरों में मालिश करने से साता मिलती है क्या? कभी धीमें-धीमें मालिश करते रहें। कहीं असाता नहीं हो, इन्हें साता मिले। आचार्य महाप्रज्ञजी मालिश (व्यावच) करवाते। मैं एक दिन गुरुदेव तुलसी के पास
पाँव दबाने के लिए गया। गुरुदेव ने तुरंत पाँव खींच लिए। गुरुदेव ने फरमाया कि मेरे पैर नहीं दुःखते, मेरे साँस की तकलीफ है, उसको तुम दूर कर सको
तो कर दो।
मुनि दिनेश कुमारजी: आचार्य महाप्रज्ञजी के जब युवाचार्य महाश्रमणजी मालिश करते, तब वे फरमाते कि महाश्रमण का तेजस शरीर कितना सदाम है, तुम लोग कोई (मुनिवृंद) नहीं कर सकते, किंतु ये थोड़ी देर में विद्युत जैसे बना देते हैं।
आचार्यप्रवर: आपको जैसे साता मिले, वैसे पैर दबवाते रहें। श्वास में कठिनाई तो नहीं हुई?
साध्वीप्रमुखाश्री: थोड़ी है।
आचार्यप्रवर: थोड़ी है? कुछ देर बाद हम वापस आएँ।
साध्वीप्रमुखाश्री: वापस पधारकर क्या करवाएँगे? आचार्यप्रवरµ(पास वाले कक्ष की ओर इशारा करते हुए) हम यहीं पर हैं।
आचार्यप्रवर ने पुनः शाम को 5ः30 पर पधारकर आराधना के कुछ पद्यों, गीतों का संगान किया और फिर अपने प्रवास-स्थल पर पधार गए।
(क्रमशः)