तेरापंथ धर्मसंघ का आचार्य बनना एक विशिष्ट बात है: आचार्यश्री महाश्रमण
13वें पट्टोत्सव का हुआ भव्य आयोजन
युगप्रधान समवसरण, सरदारशहर, 11 मई, 2022
वैशाख शुक्ला दशमी, भगवान महावीर केवल्य ज्ञान प्राप्ति दिवस। आज ही के दिन वि0सं0 2067 में वर्तमान के वर्धमान आचार्यश्री महाश्रमण जी सरदारशहर में तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता के रूप में पट्टासीन हुए थे। पूरे धर्मसंघ ने आपको वर्धापित किया था। आज पूरा धर्मसंघ परम पावन का तेरहवाँ पट्टोत्सव मना रहा है।
आचार्य भिक्षु के परंपर पट्टधर तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आज वैशाख शुक्ला दशमी है। आज ही के दिन परम आराध्य भगवान महावीर ने केवलज्ञान, केवल दर्शन और निरंतराय की स्थिति को प्राप्त किया था। मोहनीय कर्म का क्षय हुआ था। भगवान महावीर का केवल्य प्राप्ति का दिवस है।
आज की ये तिथि मेरे साथ भी जुड़ गई है। मुझे धर्मसंघ के द्वारा आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के द्वारा किए गए निर्णय को औपचारिक रूप में क्रियान्वित करते हुए आचार्य पद की पछेवड़ी आज के दिन ओढ़ाई गई थी। मैं उस चद्दर पर ध्यान दे रहा हूँ कि उस चद्दर में मानो भार का द्योतक था कि यह चद्ददर आचार्य पद की चद्दर है। अमल-धवल चद्दर है। मुनि सुमेरमलजी सुदर्शन द्वारा धर्मसंघ की ओर से चद्दर ओढ़ाई गई थी। हमारे इतने बड़े धर्मसंघ का आचार्य बनना एक विशिष्ट बात है। एक विशेष उपलब्धि है। पर मैं पद को ज्यादा महत्त्व नहीं देता। यहाँ तो आत्मा के कल्याण की बात है। आत्म साधना कितनी ऊँची है, इसका महत्त्व है। परंतु व्यवस्था तंत्र के हिसाब से आचार्य का सर्वाधिक महत्त्व है।
आत्मा की युक्ति के आधार पर आचार्य के पाँच जन्म से ज्यादा नहीं होते हैं। कारण आचार्य इतनी निर्जरा कर लेते हैं कि जैसे लोगों को चित्त समाधि देने का प्रयास करना, दीक्षा देना, अध्ययन-अध्यापन करवाना, ज्ञान देना आदि से निर्जरा हो ही जाती है। इस कारण मुक्ति जल्दी हो सकती है। हमारे धर्मसंघ में आचार्य एक ही है, तो उनको सहयोगी भी चाहिए। हमारे कितने-कितने साधु-साध्वियाँ अपने-अपने ढंग से कितने-कितने कार्यों को संभालते हैं। व्यवस्था तंत्र में भी सहयोग लेना अपेक्षित हो सकता है, जैसे मुख्य नियोजिका जी साध्वियों की देखरेख, साध्वीवर्या समण श्रेणी की देखरेख व मुख्य मुनि लिखने आदि कार्यों से मुझे सहयोग करते हैं। चिंतन-मनन में भी सहयोग रहता है।
आचार्यों को पूर्वाचार्यों के पास रहने का मौका मिलता है। वे अपने गुरु से व्यवस्था संबंधी बातों को ग्रहण कर लेते हैं। मुझे तो दो-दो गुरुओं के पास, उनके चरणों में रहने का, देखने का, सीखने का मौका मिला। गुरु से सैद्धांतिक ज्ञान के साथ प्रशासनिक ज्ञान, अनुभव, तरीके लिए जा सकते हैं। दायित्व तो एक बार ही मिलता है, पर उसकी अनुश्रुति प्रतिवर्ष काल के हिसाब से करते हैं। औपचारिक रूप में जन्म दिवस से ज्यादा दीक्षा का महत्त्व होता है और दीक्षा दिवस से ज्यादा पट्टोत्सव दिवस का महत्त्व है। वो दिन सिर्फ मेरा ही है, इसलिए ये दिन विशिष्ट है। असाधारण दिन है।
दिवस तो है, मेरा और मना रहे हो आप। कितनी प्रस्तुतियाँ हुई हैं। मुझे इस दिवस को मनाने में सब सहयोग दे रहे हैं। मुझे बोल-बोलकर जागरूक रहने में सहयोग कर रहे हैं। कुछ-कुछ प्रस्तुतियाँ मुझे अच्छी लगी। अच्छा विकास हुआ है। छोटे-छोटे साधु-साध्वियों में ज्ञान का विकास होता रहे। हमारा संयम का जीवन है। हमारी ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की साधना अच्छी चलती रहे, विकास होता रहे। हमारी निर्मलता बढ़ती रहे। श्रावक-श्राविकाओं का भी सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप अच्छा बढ़ता रहे। श्रावक्त्व बढ़ता रहे। उपासक श्रेणी में भी कईयों ने अच्छा विकास किया है। उनमें ज्ञान भी है और समय भी लगाते हैं। आध्यात्मिक सेवा में समय लगा रहे हैं। दूसरों को भी प्रशिक्षण देते रहें। उपासक श्रेणी भी अच्छी श्रेणी है, धर्मसंघ का एक अंग है। ज्ञान-साधना का उनमें भी विकास होता रहे।
महिला मंडल द्वारा जैन स्काॅलर, तत्त्व-दर्शन के कोर्स भी अच्छे चलाए जा रहे हैं। आचार्य भिक्षु से संबंध हमारा धर्मसंघ है। गुरुओं ने मुझे इस रूप में सेवा करने का मौका दिया है। हम इस धर्मसंघ की सेवा करें और इस धर्मसंघ के माध्यम से दूसरों की सेवा करते रहें। धर्मसंघ से जुड़ी संस्थाएँ धार्मिक-आध्यात्मिक सेवाएँ देती रहें। खूब उत्साह सभी में रहे। संघ को आगे बढ़ाने में विकास करते रहें। बारह वर्षों बाद आज का दिन सरदारशहर में मनाया जा रहा हैं यहाँ का प्रवास भी अच्छा रहा। हमारा धर्मसंघ विकास करता रहे। पूज्यप्रवर की अभ्यर्थना में मुनिवृंद ने आचार्य स्तवन का उच्चारण किया। उपासक श्रेणी द्वारा गीतिका की प्रस्तुति हुई। खुशी दुगड़, सूरजकरण दुगड़, पूज्यप्रवर के ननिहाल पक्ष, पदमचंद पटावरी, ज्ञानशाला, मुमुक्षु बहनों ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की।
मुनि विवेककुमार जी, मुनि विनम्र कुमार जी, मुनि राजकुमार जी, मुनि मृदुकुमार जी, मुनि मनन कुमार जी, मुनि ध्रुव कुमार जी, मुनि अनुशासन कुमार जी, मुनि नम्रकुमार जी, मुनि पाश्र्वकुमार जी, मुनि हितेंद्र कुमार जी, मुनि गौरव कुमार जी, मुनि वर्धमान कुमार जी, मुनि अनेकांत कुमार जी, मुनि केशी कुमार जी, साध्वी जिनप्रभाजी, साध्वी ऋद्धिप्रभाजी ने पूज्यप्रवर की अभ्यर्थना में अपने भाव अभिव्यक्त किए। साध्वीवृंद ने समुह गीत की प्रस्तुति दी। साध्वी सुषमाकुमारी जी, साध्वी मुदितयशाजी ने भी भावना अभिव्यक्त की। समणीवृंद ने गीत, समणी जिनप्रज्ञाजी, समणी निर्मलप्रज्ञा जी, समणी विनीतप्रज्ञा जी, समणी भावितप्रज्ञाजी, समणी पावन प्रज्ञाजी, समणी नियोजिकाजी अमलप्रज्ञा जी, समणी कमलप्रज्ञा जी, समणी कुसुमप्रज्ञाजी, समणी अक्षयप्रज्ञा जी, समणी प्रणवप्रज्ञाजी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। साध्वी नवीनप्रभाजी ने 61 मुक्तक भेंट किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। पट्टोत्सव का कार्यक्रम संघगान के साथ संपन्न हुआ।