मानव संस्कृति के उन्नायक थे भगवान ऋषभ
पुणे।
जैन धर्म का महापर्व अक्षय तृतीया का समायोजन साध्वी काव्यलता जी के सान्निध्य में अहिंसा भवन में किया गया। दो तपस्विनी बहनें प्रवीणा मरलेचा व हिमांगी ठक्कर की तप अनुमोदना की गई।
साध्वी काव्यलता जी ने कहा कि भगवान ऋषभ मानव संस्कृति के उन्नायक पुरुष थे। कर्म युग का प्रारंभ कर मानव जाति के उपकारी पुरुष बन गए। भगवान ऋषभ इस अवसर्पिणी के प्रथम राजा, प्रथम मुनि, प्रथम भिक्षाचर थे।
आज का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भगवान ऋषभ ने एक वर्ष के अंतराल से राजा श्रेयांस के हाथ से ईक्षु रस ग्रहण कर पारणा किया। इस तप का अनुसरण आज भी कई लोग करते हैं।
इस अवसर पर साध्वी ज्योतियशाजी ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए साध्वी सुरभिप्रभाजी के साथ सुमधुर गीत का संगान किया। तेरापंथ सभा के अध्यक्ष महावीर कटारिया, महिला मंडल की अध्यक्षा पुष्पा कटारिया ने भगवान ऋषभ की अर्चना कर तपस्वियों की अनुमोदना की। तेरापंथ कन्या मंडल ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। तपस्विनी प्रवीण मरलेचा के पारिवारिकजन रिनल रुणवाल, विनय मरलेचा ने विचार प्रस्तुत किए व मरलेचा परिवार की बहनों ने गीतिका प्रस्तुत की। महिला मंडल द्वारा अभिनंदन पत्र भेंट किया गया। आभार ज्ञापन तेयुप के अध्यक्ष धर्मेन्द्र चोरड़िया ने किया।