
यादें... शासनमाता की - (8)
13 मार्च, 2022, गत दिनों की भाँति आज भी प्रातः लगभग 7ः00 बजे साध्वियों के प्रवास-स्थल पर परम पूज्य आचार्यप्रवर पधार गए। वंदना के पश्चात् साध्वीप्रमुखाजी के कक्ष में करीब 18 मिनिट मौन, ध्यान किया, फिर वीरत्थुई का पाठ शुरू किया।
आचार्यप्रवर: कैसे हैं? मोटामोटी ठीक है?
साध्वीप्रमुखाश्री: कृपा-शुभदृष्टि करवाई।
लगभग 9ः10 पर परमपूज्यश्री का पुनरागमन हुआ।
साध्वीप्रमुखाश्री: गुरुदेव तुलसी ने फरमाया था कि कहीं मेरी डायरी में लिखा हुआ था कि महाश्रमण में इतनी स्फूर्ति है।
आचार्यप्रवर: अच्छा।
साध्वीप्रमुखाश्री: जानकारी करके निवेदन करने का भाव है।
आचार्यप्रवर: कुछ स्वाध्याय करवाएँ?
परमपूज्य जयाचार्य द्वारा रचित आराधना की दूसरी गीतिका के संगान को पूरा करके।
आचार्यप्रवर: मैंने आगम के पाठ से भी एक बार आपको आराधना-आलोचना करवा दी थी।
साध्वीप्रमुखाश्री: माइतपणा करवाया, शुभदृष्टि करवाई। आचार्यश्री को अब प्रवचन में पधारना है।
मध्याह्न में 3ः30 पर आचार्यप्रवर पुनः साध्वीप्रमुखाजी के पास पधारे।
साध्वी सुमतिप्रभाजी: कुछ देर पहले मैंने निवेदन किया कि आप कुछ नहीं फरमाते, सारी बातें समाप्त हो गई तब साध्वीप्रमुखाश्री ने फरमाया-
सव्वे नरा नियट्टंति’
आचार्यप्रवर: श्वास लेने में तकलीफ हो रही है क्या?
साध्वी सुमतिप्रभाजी: थोड़ी।
आचार्यप्रवर: इसमें राहत कैसे मिले?
साध्वीप्रमुखाश्री: गुरुदेव बहुत राहत दिलवा रहे हैं। मेरे लिखी हुई होगी तब मिलेगी ना।
आचार्यप्रवर: छपउइमसपेमत लेने से कुछ हो नहीं तो रात-भर ऐसे चलने से तकलीफ कितनी होगी?
साध्वीप्रमुखाश्री: कृपा करवाई। गोचरी का समय हो गया।
आचार्यप्रवर: अभी टाईम है। जितना मन लगे, उतनी देर णमो सिद्धाणं का जाप चलता रहे।
सायंकाल
आचार्यप्रवर: महप्पसाया इसिणो हवंति-साधु गुस्से से मुक्त रह सके तो अच्छा, अहंकार खत्म करने की चेष्टा रहे, आदमी माया, छल-कपट आदि नहीं करे, बाह्य आकर्षण ज्यादा नहीं करे तो लोभ से भी वशीभूत न हो। ये क्षीण होते ही आर्जव, मार्दव, क्षांति, मुक्ति बढ़िया हो जाते हैं।
दीक्षा लेते ही 18 पाप त्यक्त हो जाते हैं। जो आत्मा को कलुषित करने वाले हैं।
तिर्यंच योनि के कई जीव भी जिन्हें जाति स्मृति ज्ञान हो गया, उन्होंने भी 18 पापों को छोड़ दिया जैसे चंडकौशिक। गृहस्थ भी 18 पाप छोड़ते ही कल्याण के रास्ते पर आ जाता है। साधु के तो 18 पाप का त्याग है ही किंतु छद्मस्थता के कारण कभी हो जाए तो उनको वोसिरा देने से शुद्धि और हो जाती है।
ऋजुता और सच्चाई दोनों का संबंध है। कपट हो तो निर्मलता नहीं रहती। झूठ और कपट दोनों जुड़े हुए हैं। जीवन में आर्जव भाव हो तो जीवन खुली पुस्तक की तरह रहता है। मुँह से गलत बात नहीं बोलता।
‘बहुं सुणेइ कण्णेहिं, बहुं अच्छीहिं पेच्छई, न य दिट्ठं---’ हर बात बताने की नहीं, भीतर में भी रखनी चाहिए, किंतु कपट भावना से बात छिपाएँ तो अच्छा नहीं। गलती की और नहीं बोले तो गलत। बात छिपाएँ नहीं, आलोयणा गुरु दे तो ऋजुता से अपनी बात रख दे।
आगम में 18 पाप से दूर रहने की बात कही गई है। आदमी के तीन जन्मों का संबंध अधिक रह सकता है। यहाँ से आगे जाए तो अगला भव भी अच्छा-बढ़िया हो, जैसे राजा प्रदेशी आस्तिक बना फिर देव बना और आगे मोक्ष तैयार। तामली तापस देवलोक में और आगे फिर मोक्ष। किसी को देवगति छोटी (अल्पकालीन) और आगे मोक्ष मिले। बड़ी देवगति वाला भी सुखी रहता है। इस प्रकार साध्वीप्रमुखाश्री को समाधि-शुद्धि का पाथेय प्रदान कर आचार्यप्रवर प्रवास-स्थल पर पधार गए।
(क्रमशः)