धर्म के मार्ग पर चलने से आत्मा निर्मल रह सकती है: आचार्यश्री महाश्रमण
104 वर्षीय सुदीर्घजीवी साध्वी बिदामांजी को युगप्रधान आचार्यप्रवर ने दिए दर्शन
कालू, 21 मई, 2022
जन-जन को सन्मार्ग बताने वाले आचार्यश्री महाश्रमणजी आज प्रातः धर्मसंघ की वयोवृद्ध 104 वर्षीय साध्वी बिदामाजी को दर्शन देने कालू पधारे। महामनीषी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि कर्मवाद का सिद्धांत धार्मिक जगत का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। जैन दर्शन में कर्मवाद पर काफी विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। कर्मवाद का अति संक्षेप में सिद्धांत है-जैसी करणी-वैसी भरणी। किस जन्म में किया हुआ कर्म कब जीव को फल देने लग सकता है। सत्कर्मों का भी फल मिलता है और दुष्कर्मों, असद्कर्मों का भी प्राणी को फल भोगना पड़ता है।
कर्मवाद का सिद्धांत आत्मवाद से जुड़ा हुआ है। आत्मा है, वह स्थायी है। नित्य और शाश्वत है। संसारी अवस्था में आत्मा पुनर्जन्म भी करती है। जन्म-मृत्यु का क्रम चलता है। जन्म-मरण की परंपरा भी कर्मवाद के आधार पर चलती है। आत्मा के कोई कर्म लगा न रहे तो फिर जन्म-मृत्यु नहीं होती। हमें ध्यान रखना चाहिए कि मेरे द्वारा कोई बुरा काम, दुराचरण न हो, इसके प्रति मैं सजग बना रहूँ। जितना सत्कर्म, निर्जरा-संवर, ज्ञान, दर्शन, चारित्र की जितनी आराधना हो सके, जितना शुभ योगों में रह सकूँ, शुभ अध्यवसायों में रह सकूँ, वह मैं प्रयास करूँ।
जो दूसरों का असद् कर्म करता है, वो अपना स्वयं का असद्कर्म कर लेता है, यह एक प्रसंग से समझाया कि धर्म से जय होती है, पाप से अनुकूलताओं का क्षय हो सकता है। भले का भला, और बुरे का बुरा होता है। जैसी करणी, वैसी भरणी, सुख-दुःख स्वयं मिलेगा। हमें जीवन में दूसरे का बुरा करने का प्रयत्न तो दूर, चिंतन भी नहीं करना चाहिए। हम बुरे कर्मों-हिंसा-चोरी आदि-आदि पापों से बचने का प्रयास करें। धर्म के मार्ग पर चलते रहें, तो हमारी आत्मा निर्मल रह सकती है। चेतना शुद्धता की स्थिति में रह सकती है।
आज हम कालू आए हैं। कालूगणी हमारे अष्टम आचार्य हुए हैं। मैंने तो दीक्षा लेने से पहले कालूगणी की माला भी जपी थी। यहाँ साध्वी उज्ज्वलरेखा जी का सिंघाड़ा है। इनके साथ में सुदीर्घ साध्वी बिदामाजी हैं। हमारे धर्मसंघ की पहली चारित्रात्मा हैं, जिसने दूसरे शतक में प्रवेश कर लिया है। दीर्घ संयम काल भी प्राप्त हुआ है। कालू की जनता जैन-अजैन सभी में अहिंसा, सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति ऐसे संस्कार बने रहें। सत्कर्म-धार्मिक कर्म करने की जनता में रुचि बनी रहे, मंगलकामना। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष नगराज बरमेचा, सभा अध्यक्ष सुशील बरमेचा, तेयुप से कर्णसिंह नाहटा, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी, तेरापंथ महिला मंडल ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। साध्वी उज्ज्वलरेखाजी ने गीत के माध्यम से पूज्यप्रवर की अभिवंदना की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।