मेवाड़ स्तरीय अभिनंदन समारोह - कर्म का बंधन शब्दों से ही नहीं, भावों से भी होता है : आचार्यश्री महाश्रमण
चित्तौड़गढ़, 12 जुलाई, 2021
जन-जन के आकर्षण, महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आध्यात्मिक ग्रंथ में मैं अकेला हूँ, एकत्व भावना की बात बताई गई है। मैं अकेला हूँ, यह एक अध्यात्म का सूत्र-सिद्धांत है। परंतु मैं अनेक भी हूँ, यह भी एक तथ्य प्रतीत हो रहा है।
अनेक बातें सापेक्ष होती हैं। एक नय, एक दृष्टिकोण से एक बात सही है, तो दूसरे नय से, दूसरे दृष्टिकोण से अन्य बात भी सही हो सकती है। जैन दर्शन में दो नय बताए गए हैंनिश्चय नय और व्यवहार नय। दोनों अपनी-अपनी भूमिका में यथार्थ है।
हम कहीं जाते हैं, तो कहते हैं कि गाँव आ गया, पर गाँव तो जहाँ था वहीं है, हम गाँव आ गए। गाँव आ गया यह बात सही कैसे हो सकती है। यह एक व्यवहार है। गाँव निकट आ गया। ये भाषा है, भाषा तो अपने आपमें जड़ है। भाषा के पीछे भाव क्या है, वो मूल तत्त्व होता है। कभी-कभी हम अपने भाव भाषा में अभिव्यक्त करने में असमर्थ महसूस कर सकते हैं।
भाषा तो भावों का लंगड़ाता सा अनुवाद है। खास बात यह है कि जो हम बोल रहे हैं, उसके पीछ हमारा भाव क्या है? हम छल-कपट से बोल रहे हैं या सरलता से बोल रहे हैं। भाषा में सरलता है, तो पाप कर्म का बंध नहीं होता। व्यवहार वचन भी दोषकारक नहीं है।
व्यवहार में भंवरा काला हो सकता है, पर निश्चय में वह पाँच रंग वाला है। किस दृष्टिकोण से कौन सी बात ठीक है, यही अनेकांत है। प्रस्तुति के पीछे लक्ष्य क्या, भावना क्या वो मूल तत्त्व है। शब्द से कर्म बंध नहीं, भाव से होता है।
प्रश्न है, मैं अकेला कैसे हूँ और अनेक कैसे हूँ? अकेला तो इसलिए कि यह सिद्धांत है कि खुद के कर्म खुद को भोगने पड़ते हैं। मैं अकेला जन्मा था। मैं अनेक इसलिए हूँ कि मेरे पास अनेक संत लोग बैठे हैं। अकेला नहीं हूँ, पूरा धर्मसंघ मेरे साथ है। यह एक प्रसंग से समझाया कि अकेले नहीं हैं।
शरीर और आत्मा मिलकर अनेक हैं, शरीर मेरे साथ है। मेरे साथ में सम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप है। मैं अकेला भी हूँ और अनेक भी हूँ। यह किस अपेक्षा से किसी दृष्टि से कही जा रही है, वह मूल है। एक प्रसंग से समझाया कि परिवार का भरण-पोषण करने के लिए आदमी पाप-कर्म करता है, पर जब उदय में वो कर्म फल देंगे तो परिवार वाले साथ नहीं देंगे। स्वयं को ही भोगना पड़ेगा।
पुण्य का फल हो या पाप का फल खुद को ही भोगना पड़ता है। व्यवहार में कहते हैं कि पुरखों की पुण्याई खा रहे हैं। पर निश्चय में पुरखों ने अपनी पुण्याई तो भोग ली। हम तो अपनी पुण्याई भले भोग लें, पुरखों की नहीं। निमित्त आदि की बात हो सकती है, पर अपना किया, अपने ही भोगेंगे।
शास्त्रकार ने कहा कि ज्ञाति लोग हैं, वे भी दु:ख को बँटा नहीं सकते। मित्र वर्ग, बेटे, बांधव कोई दु:ख को बँटा नहीं सकते। अकेला आदमी-प्राणी अपने कर्म भोगता है। सिद्धांत है कि कर्म करने वाले का अनुगमन करते हैं, उसी के पीछे जाता है। जैसे व्याकरण में क्रिया कर्ता के अनुसार चलती है। एगो हंमैं अकेला हूँ।
पवित्र मैत्री सबके साथ रखो, बुरा किसी का मत करो। किसी के प्रति दुर्भावना मत रखो। विश्वास और दोस्ती किसी योग्य के साथ ही करो, हर किसी का विश्वास मत करो। यह विश्वास तो करो ही मत कि मेरे कर्म जब उदय में आकर भोगने में आएँगे तो दूसरे हाथ बँटा लेंगे।
व्यवहार में भी हम कभी अकेले हो जाते हैं। जिनको हम अपना मानते हैं, वे भी धोखा दे देते हैं। मेरी आत्मा अपनी है, मेरे कर्म अपने हैं। व्यवहार में सबका भला करें। अच्छा, आध्यात्मिक सेवा जितनी हो सके करें। अति विश्वास में न रह जाएँ कि वो मेरे, वो मेरे। मेरे मेरे ही थे तो हमने घर छोड़ा ही क्यूँ? साधु क्यों बनें? यह शरीर भी मेरा नहीं है। स्थूल शरीर हमेशा साथ नहीं रहेगा।
साधु को तो शरीर पर भी ममत्व नहीं रखना चाहिए। मेरा क्या है? बस! मेरे कर्म मेरे हैं, मेरा धर्म मेरा है। गृहस्थों के लिए निश्चय में धन, मकान मेरा नहीं है, सब पराए हैं। अपना कर्म-धर्म अपना है।
हमारा राजस्थान में आना हुआ है। राजस्थान का मेवाड़ संभाग। मेवाड़ स्तरीय यह अभिनंदन-स्वागत का उपक्रम चल रहा है। मेवाड़ के भीलवाड़ा में चतुर्मास करना भी निर्धारित है। मेवाड़ में कुछ महिनों का हमारा संभावित प्रवास है। मेवाड़ की जनता के लिए ज्यादा अनुकूलता है, धार्मिक लाभ लेने का। स्थितियों-परिस्थितियों को जानकर आदमी आगे बढ़े। हमारा प्रवास अच्छा रहे। राजनीति से जुड़े लोग भी खूब आध्यात्मिक संदर्भों में देश की जनता की सेवा करने का प्रयास करें। नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा में नियोजन करते रहें। मंगलकामना।
पूज्यप्रवर की मेवाड़ स्तरीय अभिवंदना-स्वागत में गुलाबचंद कटारिया, सांसद सी0पी0 जोशी, स्थानीय सभाध्यक्ष सुनील ढीलीवाल, तुषार सुराना, कन्या मंडल से आराधना भंडारी, मेवाड़ कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत, टीपीएफ अध्यक्ष चिराग ढीलीवाल, सुरेश धाकड़, महेंद्र कोठारी, भूपेंद्र चोरड़िया, महासभा के पूर्वाध्यक्ष किशनलाल डागलिया, ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाएँ, मेवाड़ कॉन्फ्रेंस महिला प्रकोष्ठ, ॠषि दुगड़, किरण चोरड़िया, अणुव्रत समिति से, डॉ0 खाब्या, ॠषा ढीलीवाल, महिला मंडल मंत्री अंकिता श्रीश्रीमाल एवं तेयुप ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। भीलवाड़ा चतुर्मास व्यवस्था समिति अध्यक्ष प्रकाश सुतरिया ने सभी को चतुर्मास में पूज्यप्रवर की सेवा का अधिक-से-अधिक लाभ लेने के लिए आह्वान किया।
पूज्यप्रवर ने इस अवसरपर फरमाया कि लंबी यात्रा के बाद राजस्थान मेवाड़ में आना हुआ है। मेवाड़ में चतुर्मास भी सामने है। सृष्टि में कोरोना जैसी स्थितियाँ समय-समय पर किसी रूप में हो सकती हैं। वे भी मानो कोई परीक्षा लेने के लिए आती है। आदमी अपनी शांति में, तरीके से आगे बढ़ने का प्रयास करे, जितना संभव हो। समता का, समाधान का भाव का यथोचित प्रयास किया जा सकता है। संभावित प्रवास में धार्मिकता, आध्यात्मिकता जितनी उन्नति हो सके, वैसा यथासंभव प्रयास भी होना चाहिए। सबमें खूब अच्छी भावना, अच्छा उत्साह बना रहे, मंगलकामना।
मुनि दिनेश कुमार जी ने सुमधुर गीत‘गण रा नाथ पधार्या पहाड़ी धरती पर’ का संगान किया। मुनि हितेंद्र कुमार जी, मुनि अनुशासन कुमार जी ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि प्रेम से भरी आँखें, श्रद्धा से भरा हुआ सिर, सहयोग करते हुए हाथ, सन्मार्ग पर चलते हुए पाँव और सत्य से जुड़ी जीभ ईश्वर को बहुत पसंद है।