ईमानदारी परेशान हो सकती है परास्त नहीं हो सकती : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा शहर, 17 जुलाई, 2021
तेरापंथ के महानायक आचार्यश्री महाश्रमण जी भीलवाड़ा शहर के बाहर पधार गए हैं। कल प्रात: अहिंसा यात्रा प्रणेता का चातुर्मास हेतु भीलवाड़ा के तेरापंथ नगर में प्रवेश होने जा रहा है। तेरापंथ धर्मसंघ के 262 वर्षों के इतिहास में भीलवाड़ा में प्रथम बार तेरापंथ के आचार्यों का चातुर्मास होने जा रहा है।
महामनीषी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि अंग्रेजी का प्रसिद्ध सूक्त हैभ्वदमेजल पे जीम ठमेज च्वसपबलण् ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है। ईमानदारी के विपरीत बेईमानी हो जाती है। दुनिया में ईमानदारी भी चलती है, बेईमानी भी हो जाती है।
प्रश्न होता है कि ईमानदारी का स्वरूप क्या है? और बेईमानी का स्वरूप क्या है? ऐसा लगता है, झूठ न बोलना और चोरी न करना यह तो ईमानदारी है। बेईमानी के दो आयाम हैंझूठ बोलना और चोरी करना। प्रश्न होता है कि आदमी चोरी क्यों करता है, चोरी करने का कारण क्या है?
चोरी और अपराध के पीछे एक तो भीतर का लोभ, राग-द्वेष ये भाव तो मूल जिम्मेवार है। चोरी का बड़ा कारण लोभ और परिग्रह की चेतना होती है। हिंसा के पीछे आक्रोश-द्वेष की चेतना भी हो जाती है। दूसरा निमित्त कारण हैअभाव। गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारीये सारे अभाव के ही अंग हैं। अभाव में स्वभाव बिगड़ जाता है। चोरी-अपराध कर लेता है।
आदमी के पास व्यवस्थाएँ ठीक हैं, तो आदमी चोरी-अपराध में न भी जाएँ। यह एक घटना प्रसंग से समझाया। आदमी में संकल्प मजबूत हो तो आदमी अभाव में भी चोरी नहीं करता। माँगना मंजूर पर चोरी से कुछ नहीं लेना।
ईमानदारी को अपनाना है तो आदमी को चोरी से विरत रहने का मनोभाव रखना होगा, ऐसा लगता है। साधु तो चोरी से विरत ही रहता है। गृहस्थों के भी अचौर्य के रूप में अणुव्रत का पालन हो। पूर्णतया चोरी से न भी बचा जा सके, पर चोरी का धन नहीं लेना अप्रमाणिकता नहीं करना।
ईमानदारी के दो आयाम में से एक आयाम चोरी न करना आ जाए तो भी बहुत बचाव हो सकता है। वैसे दोनों आयामों का आपस में संबंध है। पर कोई-कोई आदमी चोरी तो कर लेता है, पर झूठ नहीं बोलता। यह एक घटना प्रसंग से समझाया कि जीवन में ईमानदारी आती है, तो मानो वो साथ में और चीज लेकर आ सकती है।
आचार्य तुलसी के अणुव्रत में भी यही बात है नैतिकता की। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने भी अहिंसा यात्रा में अहिंसक चेतना का जागरण और नैतिक मूल्यों का विकास यही संदेश दिया था। आज समाज के विभिन्न क्षेत्रों में ईमानदारी सब जगह काम की चीज है। ईमानदारी रहती है, तो सरकार अच्छी चल सकती है। प्रशासन, आम आदमी और समाज अच्छा रह सकता है।
ईमानदारी के साथ कुछ काँटे, कुछ कठिनाइयाँ आ सकती हैं। कुछ काँटों को झेलने का मनोबल हो तो फूलों की सुगंध मिल सकती है। कोमलता भी मिल सकती है। ईमानदारी परेशान तो हो सकती है, कठिनाई से कहीं ग्रस्त हो सकती है पर ईमानदारी परास्त नहीं हो सकती।
ईमानदारी का रास्ता कहीं कठिन तो हो सकता है, पर आगे मंजिल बढ़िया है। मंजिल बढ़िया है तो सीढ़ियाँ जैसी भी हैंटेढ़ी-मेढ़ी पार करो, आगे तो स्थान बढ़िया है ना। साध्य हमारा बढ़िया है, तो साधन कुछ कठिनाई पूर्ण हो, कठोर हो, उस अच्छी मंजिल को पाने का प्रयास करना चाहिए।
ईमानदारी से दीर्घकालीन का हित हो सकता है। बेईमानी से अल्प काल की भले सुविधा हो जाए, पर उस रास्ते से आगे कहीं गढ्ढ़े में गिरना न पड़ जाए। झूठ और चोरी के नीचे दु:ख का गढ्ढ़ा है। बेईमानी तो एक जाजम के समान है, उसके नीचे दु:ख का गढ्ढ़ा है। सच्चाई है, भले कंटकाकीर्ण कुछ-कुछ मार्ग हो, पर आगे फूल ही फूल है। खूब सुख-शांति का स्थान है।
अभी तो चारित्रात्माओं का आगमन हो रहा है। साध्वी जिनबाला जी का सिंघाड़ा व साध्वी मृदुबाला जी भी दो साध्वियाँ आई हैं। सात संवत्सरी बाद मिलना-आना हुआ है। खूब अच्छी साधना-सेवा भावना रहे। स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता यथोचित्य रहे। समणियाँ भी कई आई हैं। वे अच्छा काम करें।
साध्वी जिनबाला जी, साध्वी अखिलयशा जी ने अपनी भावना पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। समणी संचितप्रज्ञा जी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।