ज्ञान विकास में एक सशक्त माध्यम बनता है-स्वाध्याय: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ज्ञान विकास में एक सशक्त माध्यम बनता है-स्वाध्याय: आचार्यश्री महाश्रमण

सुसवाणी माता धाम मोरखाणा में तेरापंथ सरताज आचार्यश्री महाश्रमण जी का पदार्पण

मोरखाणा, 2 जून, 2022
सुसवाणी माता शक्ति स्थल मोरखाणा, दुगड़ और सुराणा परिवार की कुलदेवी। दुगड़ कुल के महादीपक आचार्यश्री महाश्रमण जी आज मोरखाणा पधारे। मानव के रूप में देव पुरुष परम पावन ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आध्यात्मिक शास्त्रों में मोक्ष की बात आती है। आगम में कहा गया है कि मोक्ष कैसा होता है-एकांत सौरव्य वाला यानी जहाँ एकांत ही सुख होता है। दुःख होता ही नहीं। जैसे मोक्ष को जीव प्राप्त हो सकता है, बशर्ते कि उसका सारा ज्ञान प्रकाशित हो जाए। केवलज्ञान होने के बाद जीव में अज्ञान बिलकुल नहीं रहता। केवलज्ञान उसी मनुष्य में प्रकट होता है, जो राग-द्वेष को क्षीण कर देता है।
दो प्रकार के वीतराग होते हैं-उपशांत मोह वीतराग और क्षीण मोह वीतराग। उपशांत मोह वीतराग कोई बन जाए तो उसको केवलज्ञान नहीं हो सकता। उपशांत मोह वीतराग मनुष्य तो वापस नीचे की स्थिति में जाएगा। जो क्षीण मोह वीतराग बन गया है, वह केवलज्ञान को प्राप्त होता ही होता है। क्षीण मोह वीतराग के अज्ञान व मोह नहीं रहता है। जिसका सर्वज्ञान प्रकाशित हो जाता है, वही मनुष्य मोक्ष को प्राप्त हो सकता है। जीवन का लक्ष्य यह रहना चाहिए। कि मैं मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ूँ और उसके लिए मैं राग-द्वेष के भावों को प्रतनू-क्षीण बनाने का प्रयास करूँ।
ज्ञान का बहुत महत्त्व है। ज्ञान के साथ श्रद्धा सम्यक् हो कि केवलज्ञानी ने जो जान लिया वो सत्य ही है। उस पर मेरी श्रद्धा है। ज्ञान आदमी का यथार्थ है। ज्ञान विकास में एक सशक्त माध्यम बनता है-स्वाध्याय। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो ऐसे तत्त्वों का अध्ययन करें, जिस ज्ञान से आदमी राग से विराग की ओर आगे बढ़े, आदमी श्रेयों-कल्याणों में अनुरक्त हो जाए। आदमी की चेतना मैत्री भाव से भावित हो जाए। ऐसा स्वाध्याय मुख्यतया करना चाहिए। स्वाध्याय एक प्रकाश देने वाला तत्त्व है। ज्ञान सम्यक् होता है, तो आदमी का आचरण भी सम्यक् हो सकता है। हमारी सृष्टि में छः द्रव्य हैं। इस सृष्टि में विभिन्न चीजें हैं। साधना का मूल तत्त्व है-वीतरागता। समता में रमण करना। राग-द्वेष में नहीं जाना। प्रेक्षाध्यान में बताया जाता है कि प्रियता-अप्रियता के भाव से मुक्त रहें।
आज हमारा आठ वर्ष से अधिक समय बाद मोरखाणा आना हुआ है। श्री सुसवाणी माता का परिसर है। जैन दर्शन के अनुसार सृष्टि में देव शक्तियाँ भी हैं। बताया गया है कि संख्या में मनुष्यों की अपेक्षा देवता ज्यादा हैं। तीर्थंकरों के पास देवता जाते हैं। उनकी वाणी को सुनते हैं, तो उनकी आँखें भर आती हैं। वेद शक्तियाँ तो तीर्थंकरों जैसे मनुष्यों को नमस्कार करती हैं। देवों का भी कभी जीवन समाप्त होता है। कुलदेवी की आस्था का अपना-अपना स्थान होता है। साधु बनने के बाद तो सांसारिक जीवन से विरक्ति हो जाती है। संसार पक्ष की बात करें तो मैं दुगड़ परिवार से जुड़ा हुआ हूँ। सुसवाणी माता सुराणा-दुगड़ दोनों से जुड़ी हुई है। माताजी को मंगलपाठ भी बोल दिया। धर्म की चीज तो देव और मनुष्य दोनों के काम की चीज है। माताजी जहाँ भी हैं, हमारा संदेश है कि उनकी आत्मा चित्त समाधि में रहे। माताजी भी तीर्थंकरों के दर्शन करने का प्रवचन सुनने का प्रयास करें। साधु-संतों की वाणी मिले तो भी अच्छी बात है। उनकी आत्मा भी खूब अध्यात्म की दृष्टि से अध्यात्म की दिशा में प्रवर्धमान रहे। कभी परमधाम मुक्ति को प्राप्त करे।
दुनिया में देव शक्ति भी होती है। आस्था अपनी-अपनी हो सकती है, पर देवों की आशातना-अवज्ञा नहीं होनी चाहिए। साधु भी जहाँ देव स्थान हो पैर में पदत्राण पहना हुआ नहीं होना चाहिए। दुगड़-सुराणा परिवार जैन धर्म से जुड़े हुए हैं, उनमें भी धर्म के संस्कार अच्छे रहें। नमस्कार महामंत्र का जप व सामायिक की साधना जितनी हो सके करें। तेरापंथी परिवारों में शनिवार सायं 7 से 8 बजे सामायिक प्रयास होना चाहिए। खान-पान में शुद्धता रहे। धार्मिक साधना जीवन में जितनी अच्छी हो सके, करने का प्रयास चलता रहे। देव शक्तियाँ शास्त्र सम्मत है। अनेक प्रकार के देव होते हैं। देवियाँ, इंद्र-इंद्राणियाँ भी होती हैं। हमारे धर्मग्रंथों में देव व्यवस्था भी विस्तार से प्राप्त होती है। माताजी के प्रति हमारी आध्यात्मिक मंगलकामना।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि वह धरती पावन हो जाती है, जिस पर सत्संग होता है। मोरखाणा की धरती भी प्रणम्य बन गई है कि परमपूज्य की सन्निधि में विशाल सत्संग हो रहा है। जिन लोगों को महापुरुषों के दर्शन हो जाते हैं वे धन्य हो जाते हैं। प्रवचन सुनने और उपासना करने से आदमी धन्य बन जाता है। पूज्यप्रवर के स्वागत-अभिनंदन में सुसवाणी मंदिर ट्रस्ट से सुरेशराज सुराणा, नरेंद्र सुराणा, पड़िहारा धर्मशाला से लक्ष्मीपत सुराणा, मोहनलाल सुराणा, तेजकरण सुराणा, धर्मचंद सुराणा, भीखमचंद सुराणा, नोखा के विधायक बिहारी विश्नोई, डूंगरगढ़ विधायक गिरधारी महिमा, सुराणा परिवार की बहनें, सुनीता सुराणा, सुसवाणी माता परिवार कोलकाता, नोखा, तेरापंथ महिला मंडल व तेरापंथ युवक परिषद ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर के षष्ठीपूर्ति पर मुंबई से जिनागम पत्रिका विशेषांक पूज्यप्रवर को लोकार्पित किया गया। पूज्यप्रवर ने आशीवर्चन फरमाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।