साध्वीप्रमुखा मनोनयन के अवसर पर हृदयोद्गार
यह हमारा प्रवर्धमान जैन शासन जिसमें तेरापंथ एक प्राणवान प्रतिष्ठा वाला जागृत, जीवित तथा अनुशासित धर्मसंघ है। जिसके नेतृत्व का सम्पूर्ण अधिकार एकमात्र आचार्य के हाथ में होता है। भले युवाचार्य का मनोनयन हो या साध्वी प्रमुखा का। आचार्य भिक्षु से लेकर यह परम्परा आज तक अक्षुण्ण एवं अखण्ड रूप में चल रही है। केवल प्रमुखा पद का निर्माण श्रीमद् जयाचार्य ने किया था।
सन् 2022 होली चातुर्मास के दिन शासन माता का महाप्रयाण गुरूदेव के मंगलपाठ को सुनते-सुनते हो गया। इस रिक्त स्थान की सम्पूर्ति का दायित्व वर्तमान आचार्य पर होता है। यह कार्य आज हजारों की उपस्थिति में सम्पन्न हो गया। आज आचार्यवर ने जैसे ही मुख्यनियोजिका विश्रुतविभाजी का नाम लिया कि आचार्यवर के प्रति सब श्रद्धा प्रणत हो गए।
हमारी नवनिर्वाचित साध्वी प्रमुखाश्रीजी समाज के लिए अपरिचित नहीं है क्योंकि तुलसी युग से लेकर आज तक किसी न किसी रूप में कार्यरत रही है। यह परिपक्व अनुभवी साध्वी प्रमुखा है इसलिए आचार्यों की सेवा में अधिक से अधिक सफल हो सकेगी। विलक्षण दीक्षा की स्मृतियां आज ताजा हो रही है। वह अतिथि भवन (शुभम्) जिसमें आप और हम सबने 10 समणीजी तथा 11 साध्वियों के साथ प्रथम चातुर्मास किया था। वह था संस्कार निर्माण का समय। आप अनेक विशेषताओं की धनी है। विनय रुचि-समर्पण रुचि, तपोरुचि, आगम स्वाध्याय रुचि, जप-ध्यान रुचि, कलारुचि, सेवारुचि एवं वक्तृत्व, साहित्य रुचि वाली है।
मैं मंगलकामना करती हूं कि आप स्वस्थ निरामय रहती हुई आचार्यवर तथा सम्पूर्ण धर्मसंघ को अपनी विशिष्ट सेवाएं देती रहें। लाडनूं के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ रहा है। धन्य है उस माटी को जिसने क्रमशः तीन साध्वी प्रमुखाओं का वरदान दिया है। आचार्यश्री तुलसी तो उस धरती के श्रृंगार थे ही। आपके कार्यकाल मंे साध्वी समाज की गति-प्रगति आत्मोन्नयन के प्रभावी कार्यक्रम, श्रावक-श्राविका समाज की सार संभाल तथा आचार्यवर द्वारा प्राप्त आदेश-निर्देश का शतशः पालन करती हुई साध्वी समाज का गौरव बढ़ाएं। फिर एक बार मंगलं भूयात्, शुभं भूयात्।