साधना के उत्तुंग पुरुष अलौकिक व्यक्तित्व के धनी आचार्यश्री महाश्रमण
षष्टीपूर्ति पर अभिवंदना
तेरापंथ धर्मसंघ एक मर्यादित अनुशासित एवं प्राणवान धर्मसंघ है। जिसकी अतुल-अमाप्य यशगाथा शिखरी ऊँचाइयों का स्पर्श कर रही है। इस धर्मसंघ की यशस्वी आचार्य परंपरा बहुत भव्य एवं आकर्षक है। महातपस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी अतुलनीय व्यक्तित्व के धनी, दो-दो महान आचार्यों द्वारा तराशी गई, अनेक कसौटियों से निखारी गई अनुपमेय एवं महनीय कृति है। अल्पवय में ही गुरुद्वय के प्रति अत्यंत विनम्रता, पूर्ण-समर्पण भाव, सेवा-भावना, कार्यक्षमता आदि विरल विशेषताएँ अद्वितीय थीं।
गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी ने आपके प्रखर व्यक्तित्व एवं कुशल कर्तृत्व का तथा पूर्ण समर्पण भाव का उल्लेख करते हुए फरमाते थे कि ‘महाश्रमण’ बहुत भला है और बहुत विनम्र है, सरल है, हर कार्य में जागरूक है। सचमुच! साधु हो तो ऐसा हो। आपश्री की अप्रमत्तता का अंकन करते हुए ‘योगक्षेम’ वर्ष में आपको ‘महाश्रमण’ पद पर अलंकृत किया। बाह्य व्यक्तित्व: गौरवर्ण, मंझला कद, प्रलंब कान, चमकती आँखें, झलकता भाल, मुस्कान भरा चेहरा, दैदीप्यमान आभामंडल आदि आपश्री के चुंबकीय आकर्षक व्यक्तित्व को देखकर हर दर्शक अध्यात्म के आनंद में सरावोर हो जाता है और वह सदा के लिए अध्यात्म के रंग में रंग जाता है।
आपश्री का अंतरंग व्यक्तित्व भी
बहुत आकर्षक एवं शिखरी ऊँचाइयों को छूने वाला है। चंद्रमा सी निर्मलता, सूर्य सी तेजस्विता, सागर की गंभीरता, पापभीरूता, निर्लिप्तता, सहनशीलता, पंचाचार की साधना के प्रति पूर्ण जागरूकता, समय-नियोजन आदि विरल विशेषताओं से उभरा विराट व्यक्तित्व जन-जन की चेतना को आकर्षित कर रहा है। उच्च कोटि के महान साधक: आप तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अनुशास्ता होने पर भी उच्च कोटि के महान साधक हैं। अध्यात्म जगत के गूढ़तम रहस्यों के व्याख्याता ही नहीं अपितु उन्हें आपने अपने जीवन में आत्मसात भी किया है। जो आपश्री के जीवन-व्यवहार में प्रत्यक्ष रूप में दृष्टिपात हो रहे हैं। हजारों की भीड़ में भी आचार्यप्रवर की मस्त फकीरी हर मानव को प्रभावित कर रही है।
प्रवचन शैली का अद्भुत कौशल: आपका प्रवचन कौशल भी अद्भुत है। आगमिक सूक्तों के साथ बौद्धादि धर्मग्रंथों के तुलनात्मक रहस्यों के पृष्ठ भी अनावृत्त होते हैं। युगीन समस्याओं से संक्रांत जन-जन भी आपकी अमृतमयी वाणी (उपदेशों) से आनंदानुभूति आकंठ डूब जाता है। सचमुच! जहाँ कथनी-करनी में समानता होती है वह प्रवचन स्वतः प्रभावशाली होता है।
अनुशासन कौशल: ‘संघे कुशल आचार्य’: जो संघ शासना में कुशल होता है वही आचार्य सक्षम माना जाता है। आपश्री संघ की सारणा-वारणा में बहुत निष्णात है। आपकी कुशल अनुशासना से पूरा धर्मसंघ बहुत प्रसन्न एवं आनंदित है। धर्मसंघ के सर्वोच्च पद आचार्य-पद पर प्रतिष्ठित होने पर भी आपकी विनय-वृत्ति बहुत ही आकर्षक और मनमोहक है। जिसका नजारा उग्र-विहारी बनकर दिल्ली पधारकर जब ‘शासनमाता’ को आपने दर्शन दिए तब उठ-बैठकर नीचे धरती पर बैठकर वंदना करना एक छोटे बच्चे की तरह यह दृश्य देखकर प्रत्यक्ष-परोक्ष देखने वाले प्रत्येक व्यक्ति के मुँह से एक ही स्वरµतेरापंथ संघ के सर्वोच्च-पद पर आसीन आचार्यप्रवर के जीवन में विनम्रता का उत्कृष्टतम् उदाहरण देखा जा सकता है। अंत में युगप्रधान आचार्यप्रवर के षष्ठीपूर्ति के सुअवसर पर अंतः दिल से हार्दिक शुभकामनाएँ, मंगलकामनाएँ समर्पित। आपश्री का स्वास्थ्य निरामय रहे। आपश्री की कुशल अनुशासना में संपूर्ण तेरापंथ धर्मसंघ युगों-युगों गौरव-वृद्धि करता रहे, इसी अंतर के पवित्र श्रद्धा भावों का गुलदस्ता श्रीचरणों में अर्पित।
तुम जीओ हजारों साल, साल के दिन हो कई हजार।
दिवस का उत्तरार्ध पूर्वार्ध अंतहीन पाए विस्तार।।