आत्मानुशासन के लिए जरूरी है शरीर, वाणी, मन और इंद्रियों पर अनुशासन: आचार्यश्री महाश्रमण
पड़िहारा, 6 जुलाई, 2022
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी लोहा गाँव से 11 किलोमीटर का विहार कर पड़िहारा स्थित प्रज्ञा भवन पधारे। पड़िहारावासियों ने अपने आराध्य का भव्य स्वागत किया। मुख्य प्रवचन में तीर्थंकर तुल्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि एक शब्द है, जो दो पदों से बना हैµआत्मानुशासन। अनुशासन के आगे आत्मा लगा दें तो आत्मानुशासन और पर लगा दें तो परानुशासन। परानुशासन जो दूसरों के द्वारा किसी पर नियंत्रण किया जाता है। स्वयं के द्वारा स्वयं पर जो अनुशासन किया जाता है, वह आत्मानुशासन हो जाता है, निज पर अनुशासन हो जाता है।
प्रश्न होता है कि आत्मानुशासन किस रूप में हो? दार्शनिक दृष्टि से देखें, तो आत्मा एक चैतन्य के रूप में तत्त्व है, जो शरीर के भीतर है। आत्मा स्थायी है, पर शरीर कभी अस्थायी हो जाता है। आत्मा अछेद्य, अदाह्य, अकलेव्य, अशोण्य है। आत्मा पर अनुशासन हो गया तो स्वयं पर अनुशासन हो गया। आत्मा तो अमूर्त है, अदृश्य है, न आत्मा को हाथ में लेकर दिखाया जा सकता है। आत्मा पर अनुशासन करने के लिए हम शरीर पर अनुशासन करें। शरीर, वाणी और मन व इंद्रियों पर अनुशासन करें। इन चार पर अनुशासन सध जाता है, तो आत्मा पर अनुशासन हो जाता है।
गुरु बनने से पहले अपने गुरु के शिष्य बनो। वाणी पर संयम रखें। मन पर भी अनुशासन रखें। मन के चलाए न चलें। मन हमारा गुलाम रहे। मन से मंगल सोचें। मन हमारा एकाग्र रहे। हमारी पाँच ज्ञानेंद्रियाँ हैं, इन पर भी अनुशासन रहे। बुरा देखो मत, बुरा बोलो मत, बुरा सुनो मत और बुरा सोचो मत। ध्यान-योग के प्रयोग से मन को एकाग्र कर साधा जा सकता है।
आदमी का जीवन अच्छा बने, उसका उपाय है, आत्मानुशासन सधे। दूसरे हमारे पर नियंत्रण न करें। लोकतंत्र हो या राजतंत्र सब जगह अनुशासन का महत्त्व है। आत्मानुशासन ऐसा तत्त्व है कि विद्यार्थी हो या बड़े लोग सबके लिए काम की बात है। चाहे राजनीति हो या धर्मनीति सब जगह आत्मानुशासन आवश्यक तत्त्व है। हम सभी आत्मानुशासन का जीवन जीएँ, उस दिशा में आगे बढ़ें। आत्मानुशासन युक्त जीवन जीने का प्रयास करें, तो हमारा ये जीवन अच्छा रह सकता है और आगे का जीवन भी अच्छा रहने की संभावना रह सकेगी।
आज पड़िहारा में आना हुआ है। संवत् 2033 में गुरुदेव तुलसी का मर्यादा महोत्सव भी हुआ था। यहाँ भी खूब सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति व धार्मिकता पुष्ट रहे। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि जीवन कैसे जीना चाहिए। हमें अपने लिए जीना चाहिए या आदमी के अच्छे जीवन निर्माण के लिए जीना चाहिए। इंसान को अच्छा इंसान बनाने के लिए पूज्यप्रवर ने प्रलंब यात्राएँ की हैं। अच्छा जीवन जीने के लिए विनम्र बनें। जो व्यक्ति विनम्र बन सकता है, वह सब कुछ प्राप्त कर सकता है। पूज्यप्रवर के स्वागत, अभिवंदना में सभाध्यक्ष रतनलाल सुराणा, तेरापंथ महिला मंडल, अणुविभा से भीखमचंद सुराणा, राजकुमार सुराणा, महिला मंडल अध्यक्षा मंजु दुगड़, श्रेयांस सुराणा, बजरंग सुराणा, संजु दुगड़, विजयराज सुराणा, स्थानीय सरपंच जगतसिंह राठौड़, विधायक अभिनेष महर्षि, वक्फ बोर्ड अध्यक्ष, व्यापार मंडल से किशन बुडानिया ने अपनी भावना अभिव्यक्ति की। रानी का परिवार, धनराज सुराणा, विजयसिंह सुराणा, बुद्धमल सुराणा परिवार, लक्ष्मीपत सुराणा, पूनमचंद सुराणा ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने पड़िहारा के लिए आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी द्वारा फरमाए एक माह के प्रवास को समय पर दीक्षा महोत्सव के साथ पूरा कराने का फरमाया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने तेरापंथ का विकास किस तरह हुआ, अनेक प्रसंगों से समझाया।