मानव विकृति से प्रकृति में आने का प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण
रणधीसर, 7 जुलाई, 2022
नशामुक्ति के प्रबल प्रेरक युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी पड़िहारा से 9 किलोमीटर का विहार कर रणधीसर गाँव स्थित भवानी सिंह राजपुरोहित के निवास स्थान पर पधारे। गौरतलब है कि रणधीसर में एक भी तेरापंथी परिवार नहीं हैं, परंतु गाँव में मानवता के मसीहा का राजशाही स्वागत किया गया। मुख्य प्रवचन में समता के सागर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में व्यवहार चलता है। एक-दूसरे से बातचीत, लेन-देन आदि कार्य होते हैं। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का सहयोग भी करता है। तत्त्वार्थ सूत्र में कहा गया है-परस्परोपग्रहो जीवानाम्। जैन दर्शन में छः द्रव्य बताए गए हैं। धर्मास्तिकाय जीव और पुद्गल के चलने में अधर्मास्तिकाय उनके ठहरने में, आकाशास्तिकाय, स्थान देने में, पुद्गलास्तिकाय जीव के उपयोग में आते हैं। काल समय का सूचक है। छठा द्रव्य जीवास्तिकाय है, वो परस्पर आपस में जीव-जीव का सहयोग करते हैं। सहयोग से एक-दूसरे का काम चलता है।
आध्यात्मिक, धार्मिक सहयोग करना तो कल्याणकारी बन जाता है। गृहस्थ अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं। एक-दूसरे को सहयोग देता है। आदमी जो भी व्यवहार करे, उसमें ईमानदारी रहे। दो शब्द हैं-वृत्त और वित्त। वृत्त यानी जीवन चरित्र और वित्त यानी पैसा। चारित्र की प्रयत्नपूर्वक सुरक्षा करो। कारण वह धन से ज्यादा कीमती चीज है। पैसा तो आता है, चला जाता है। झूठा आरोप कभी नहीं लगाना चाहिए। झूठ भी न बोलें। यह अभ्याख्यान पाप है। चोरी से भी बचें। चोरी और झूठ का आपस में संबद्ध है। सच्चाई का रास्ता कुछ कंटकाकीर्ण हो सकता है। पर एक बार तकलीफ आ जाए पर आगे रास्ता बढ़िया है, मंजिल तक पहुँचा सकता है। संयम का रत्न बड़ा है।
गार्हस्थ्य में रहने वाले भी अच्छा जीवन जी सकते हैं। गृहस्थ के वेष में तो केवलज्ञान हो सकता है। भजन भी करें। खान-पान में शुद्धता रहे। जन्म-मरण से छुटकारा पाने का परम लक्ष्य होना चाहिए। परमात्म स्वरूप हमारे भीतर ही है, पर वर्तमान में विकृति में है, हम प्रकृति में आने का प्रयास करें। आज रणधीसर आना हुआ है। चतुर्मास स्थल छापर पास में ही है। हमारे मुनि छोगजी रणधीसर के आसपास देवलोक कर गए थे। उनका भी स्मरण करता हूँ। पूज्यप्रवर ने सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति-ये तीन सूत्र समझाकर स्वीकार करवाए। रणधीसर के लोगों में धर्म-अध्यात्म के संस्कार रहें। पूज्यप्रवर के स्वागत में एस0पी0 दुर्गपाल सिंह, भवानी सिंह (पूर्व सरपंच) श्रीहरि बोरीकर, (आरएसएस) रवि बैद, प्रदीप सुराणा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि मैं अपने जीवन में सद्गुण कैसे भर सकता हूँ।