चरम तीर्थंकर प्रभु महावीर और तेरापंथ के आद्यप्रवर्तक आचार्य भिक्षु में अनेक समानताएँ: आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्यश्री भिक्षु का 297वाँ जन्म दिवस -बोधि दिवस का आयोजन
छापर, 12 जुलाई, 2022
आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी-चतुर्दशी आचार्य भिक्षु का 297वाँ जन्म दिवस एवं चातुर्मासिक चतुर्दशी का दिन। आचार्य भिक्षु के परंपर पट्टधर, वर्तमान के भिक्षु आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि आज आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी और चतुर्दशी का योग है, संयुक्त है। आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी ऐसी तिथि है, जिस तिथि को आचार्य भिक्षु का जन्म दिवस होने का मानो अवसर प्राप्त हुआ है। कई बार तिथि भी धन्य हो जाती है, जब वह किसी महापुरुष के साथ जुड़ जाती है। कार्तिक अमावस्या महापुरुषों के साथ जैसे भगवान महावीर ओर भगवान राम के साथ जुड़ गई है, तो वह तिथि उत्सवमय बन जाती है। दीपावली बन गई है। बड़ों के सान्निध्य में रहने वाला एक सामान्य व्यक्ति भी उस निमित्त से बड़प्पन को प्राप्त हो सकता है।
इन विशेष दिनों को मनाने से कुछ लाभ हो सकते हैं। हमारा महापुरुषों के प्रति अभिवंदन हो जाता है। श्रद्धार्पण हो जाता है। दूसरी बात है कि मानने के माध्यम से कुछ प्रेरणा दी जा सकती है। कुछ सिद्धांत की जानकारी दी जा सकती है। जो बात कई लोग नहीं जानते वो बातें इन तिथियों को मनाने से जानने को मिल सकती है। वि0सं0 1983 आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी को बालक भिक्षु प्राकट्य हुआ था। तीन वर्ष बाद तो आचार्य भिक्षु का 300वाँ जन्म दिवस आने वाला है। कंटालिया ग्राम को आचार्य भिक्षु की जन्म भूमि कहलाने का गौरव प्राप्त है। आचार्य भिक्षु जैन श्वेतांबर तेरापंथ के प्रथम आचार्य थे। हमारे यहाँ आचार्य को तीर्थंकर का प्रतिनिधि कहा गया है। तीर्थंकर जहाँ नहीं है, वहाँ आचार्य की ज्यादा गरिमा होती है। उनको तीर्थंकर के प्रतिनिधित्व करने का एक अपेक्षापूर्ण अवसर उपलब्ध हो सकता है।
आचार्य भिक्षु और भगवान महावीर में अनेक समानताएँ हैं। दोनों का जन्म शुक्ला त्रयोदशी को हुआ था। दोनों ने विवाह किया था। दोनों के एक-एक पुत्री हुई थी। दोनों ही युवा अवस्था में साधु बने। दोनों जीवन के आठवें दशक में महाप्रयाण को प्राप्त हुए थे। भगवान महावीर के देवानंदा और त्रिशला दो माताएँ हो जाती हैं, तो किसी रूप में आचार्य भिक्षु के पिताजी ने भी दो शादियाँ की थीं तो दो माताएँ हो जाती हैं। भगवान महावीर ने नए तीर्थ का प्रतिष्ठापन किया था वे उस रूप में आदिकर थे तो आचार्य भिक्षु ने भी नए पंथ का प्रारंभ किया था। संथारा भी दोनों ने किया था। यह अनुसंधान का विषय है कि जितनी समानताएँ आचार्य भिक्षु की भगवान महावीर के साथ हैं, उतनी समानता और किसी आचार्य की भगवान महावीर के साथ है क्या?
आचार्य भिक्षु के पास श्रुत-संपदा अच्छी थी। आचार्य के पास कई संपदाएँ होती हैं। आचार्य के पास शरीर संपदा हो। इंद्रियाँ आचार्य की स्वस्थ रहे, पटु रहे। शरीर की सुंदरता का थोड़ा महत्त्व है। पर शरीर की मजबूती अच्छी हो। सुंदरता से ज्यादा महत्त्व गुणवत्ता का होता है। आचार्य भिक्षु का चेहरा साँवरा था, वे सांवरिया कहलाते थे। ज्ञान कैसा, निपुणता कैसी है, वो खास बात है। हम आचार्य भिक्षु के साहित्य को देखें, कितने-कितने ग्रंथ हैं। उन ग्रंथों को पढ़ने से लगता है कि उनका ज्ञान अच्छा था, समझाने की शैली भी अच्छी थी। अनेक उनके जीवन की विशेषताएँ हैं। मैं आचार्य भिक्षु के जन्म दिवस पर उन्हें अपनी श्रद्धा का अर्पण करता हूँ।
आचार्य भिक्षु में शील संपदा अच्छी थी। आचार अच्छा था। उनका व्यवहार भी निर्मल था। आचार्य भिक्षु को हम स्वामीजी कहते हैं। आचार ही उनकी क्रांति का एक अंग था। उनमें बुद्धि भी निर्मल थी। आदमी के जीवन में बुद्धि का भी महत्त्व होता है। बुद्धि क्षयोपशम भाव है। बुद्धि का विकास होना चाहिए। बुद्धि अच्छी होती है, तो समस्याओं का समाधान जल्दी प्राप्त हो सकता है। उनमें श्रद्धा का भी बल था। भगवान महावीर के वचनों के प्रति उनकी अटल श्रद्धा थी।
आचार्य भिक्षु के जीवन में हम अनेक गुण, अनेक बैशिष्ट्य देखने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने पिछले जन्म में साधना की होगी तभी वे इतने उच्च कोटि के बने थे। आज का दिन बोधि दिवस के रूप में भी स्थापित है। बोधि का दिन राजनगर से जुड़ा है। उस घटना प्रसंग को समझाया। उस घटना से प्रेरणा लेकर उन्होंने सत्य का उद्घाटन किया था।
वो माँ पुण्यशाली की होती है, जो ऐस पुत्र को जन्म देती है। भगवान की माँ ने शेर का स्वप्न देखा था तो माँ दीपां जी ने भी शेर का स्वप्न देखा था। ऐसे पुरुषों को जन्म देने वाली भाग्यशालिनी माताएँ होती हैं, जो दुनिया को ऐसा सपूत प्रदान करती हैं।
भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु दोनों का ही महाप्रयाण चतुर्मास काल में हुआ था। दोनों दो-दो भाई थे। दोनों छोटे भाई थे। दोनों ने ही अपने आप दीक्षा ली थी। इस तरह अनेक समानताएँ भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु में थी। आज चौमासी चतुर्दशी भी है। चतुर्मास स्थापना तो कल होने वाला है। कल लगभग दोपहर ढाई बजे चतुर्मास की स्थापना का अनुष्ठान करने का भाव है। चतुर्मास का समय हमारे सामने है, उसका जितना बढ़िया उपयोग कर सकें, करें। भारत में अनेक जगह हमारे साधु-साध्वियों के चतुर्मास हैं। हमारा चतुर्मास ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप से संयुत हो। छापर का चतुर्मास आसपास के क्षेत्रों को भी लाभ देने वाला हो। आज शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी की चौथी पुण्यतिथि है। कितनी साध्वियों ने उनकी सेवा का लाभ लिया था। साध्वी कल्पलता जी ने उस समय की घटना को भी समझाया। सेवा का अवसर दिराने पर कृतज्ञता ज्ञापित की। आज से दो माह पहले विश्रुतविभा जी को उनके स्थान पर स्थापित किया था। ये भी खूब अच्छी सेवा देती रहें।
आज चतुर्दशी है, पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन करते हुए प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। लेख पत्र का वाचन मुनि ऋषि जी, मुनि खुश जी, मुनि अर्हम जी एवं मुनि रत्नेश जी ने किया। चारों को चार-चार कल्याणक वख्शीष करवाए। चतुर्मास में अध्ययन करने की प्रेरणा दी। क्रमबद्ध लेख पत्र का वाचन किया था। शासनश्री साध्वी कैलाशवती जी की स्मृति सभा आयोजित की गई। पूज्यप्रवर ने उनका जीवन परिचय बताया। उनकी स्मृति में श्रद्धांजलि के रूप में चार लोगस्स का ध्यान करवाया। पूज्यप्रवर ने उनके भावी जीवन की मंगलकामना की। मुख्य मुनिप्रवर एवं साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके जीवन प्रसंगों को समझाया। मुनि दिनेश कुमार जी ने भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। मुनि राजकुमार जी एवं मुनि हेमराज जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
पूज्यप्रवर के स्वागत में उपासक इंद्रचंद नाहटा, सुमेरमल नाहटा, महामंत्री नरेंद्र नाहटा, महिला मंडल, जतनबाई नाहटा, शशि चोरड़िया, अणुव्रत समिति, नरपत मालू, शिवांगी मेहता, प्रवीण मालू ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।