तेरापंथ स्थापना दिवस के आयोजन
कांकरोली
साध्वी मंजुयशा जी के सान्निध्य में तेरापंथ धर्मसंघ का 263वाँ स्थापना दिवस मनाया गया। विषय थाµ‘तेरापंथ का उद्भव और विकास की कहानी’। कार्यक्रम का प्रारंभ साध्वीश्री जी के नमस्कार महामंत्र एवं पार्श्वनाथ भगवान की मंगल स्तुति से किया। तेयुप के मंत्री दिव्यांस कच्छारा आदि युवा साथियों ने गीत प्रस्तुत किया। साध्वी मंजुयशा जी ने कहा कि तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु इस धरा पर एक सूर्य बनकर आए। उन्होंने दीक्षित होने के बाद शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। वे महान व्यक्ति थे। उनकी जिनवाणी के प्रति अटूट आस्था, आचार विचार की उच्चता, आत्मकल्याण का उनका परम लक्ष्य था। इसके लिए अनेक प्रतिकूल स्थितियों, अनेक विरोधों का सहन कर बड़े मनोबल, आत्मबल एवं दृढ़ संकल्पबल के साथ उन्होंने अपने चरण आगे बढ़ाए। आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा का पावन दिन तेरापंथ का उद्भव दिन बन गया। आचार्य भिक्षु और तेरापंथ अलग-अलग नहीं हैं। तेरापंथ का नामकरण जोधपुर में हुआ, जिसको आचार्य भिक्षु ने उसको संख्या में नहीं बल्कि पट्ट से उतरकर वीतराग प्रभु को वंदना की मुद्रा में बोलेµ प्रभो! आपका पंथ है हम तो उस पथ पर चलने वाले पथिक हैं। प्रभो! यह तेरापंथ।
साध्वीश्री जी ने आगे कहा कि ऐसे शुभ समय में तेरापंथ का उद्भव हुआ। धीरे-धीरे विकास के òोत खुलते गए। एक-एक तेजस्वी आचार्य द्वारा आध्यात्मिक सिंचन मिलता रहा। वर्तमान में आचार्यश्री महाश्रमण जी इस धर्मसंघ की कुशल अनुशासना करते हुए इस संघ को शिखरी ऊँचाइयाँ प्रदान कर रहे हैं। साध्वीश्री जी ने एक सुमधुर गीत प्रस्तुत किया। इस अवसर पर साध्वी चिन्मयप्रभाजी, साध्वी चारूप्रभाजी, साध्वी इंदुप्रभाजी ने गीत, भाषण, कविता के माध्यम से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। पुनिता सोनी, खुशी तलेसरा, डिम्पल सोनी, लीला तलेसरा, नीता श्रीश्रीमाल, योगिता चोरड़िया आदि बहनों ने तेरापंथ धर्मसंघ के आज्ञा, श्रद्धा, समर्पण, मर्यादा, साहस आदि विषय पर रोचक प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संयोजन साध्वी चिन्मयप्रभा जी ने किया।