राजा हो या रंक सभी को भोगने पड़ेंगे अपने कर्म: आचार्यश्री महाश्रमण
ज्ञानशाला बनाती है भावी पीढ़ी को संस्कारवान
ताल छापर, 14 अगस्त, 2022
चतुर्विध धर्मसंघ के शास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में कहा गया है कि भगवान महावीर जो ढाई हजार वर्ष से भी अधिक वर्ष पहले सदेह इस दुनिया में विराजमान थे। उनका परिवार था। उनके एक अन्तेवसी शिष्य जिनके लिए कहा गया है-भगवान गौतम! वे एक दिन भगवान महावीर को वंदना-नमस्कार करते हैं, प्रश्न पूछते हैं।आगम के सूत्र से हमें पता चलता है कि किस प्रकार प्रश्न पूछना? पहले वंदना-नमस्कार कर फिर प्रश्न पूछना। प्रश्न थोड़ा तात्त्विक भी है और सामान्य भी है। प्रश्न यह पूछा कि भंते! सेठ है कोई, निर्धन है, कोई राजा है--- इन सबके अप्रत्याख्यान क्रिया एक समान होती है क्या?
साधु के तो अविरति छूट जाती है। गृहस्थों के देश विरति रहती है। उत्तर दिया गया कि हाँ गौतम श्रेष्ठी, निर्धन, राजा, रंक सबके अप्रत्याख्यान क्रिया समान होती है। फिर पूछा गया कि किस अपेक्षा से समान होती है। उत्तर दिया गया गौतम अविरति की अपेक्षा से। अविरति सबमें होती है। सामान्यतया कथन चलता है कि पाप किसी का बाप नहीं, जो करेगा उसको फल भोगना पड़ेगा।
भगवती सूत्र में यहाँ दो विरोधी युगल बताए गए-रंक और राजा। कर्म बंध के क्षेत्र में सब एक समान हैं, यह निष्कर्ष यहाँ निकलता है। धर्म के क्षेत्र में भी सब एक समान है। जो करेगा उसको फल मिलेगा। यह एक समानता की बात है। अध्यात्म के क्षेत्र की ये समानता उच्च कोटि की बात है। कर्म के क्षेत्र में कोई पक्षपात नहीं है। न्यायालय में पक्षपात हो सकता है। पर अध्यात्म-कर्म के क्षेत्र में नहीं। कर्मवाद का निष्पक्ष न्यायालय है। कर्मवाद को कोई डर नहीं है, जैसा कर्म किया है, वैसा फैसला देना है। कर्म में चेतना नहीं है, पर फल अपने आप मिल जाता है। लोकतंत्र-राजतंत्र में न्यायपालिका एक महत्त्वपूर्ण व्यवस्था है। न्यायपालिका में वही सिद्धांत अप्रत्याख्यानी वाला हो। न्यायाधीश को भी लोभ और भय से दूर रह करके न्याय देना अपेक्षित होता है। न्यायालय में भी निष्पक्षता हो।
न्यायालय में वादी-प्रतिवादी, वकील भी झूठ बात न करे। न्याय करने में थोड़ी देरी तो भले हो जाए पर अन्याय किसी के साथ नहीं होना चाहिए। देर भले हो पर अंधेर न हो तो न्यायालय महिमा मंडित रह सकता है। भारत में लोकतंत्र अच्छी प्रकार से चल रहा है। सबको समान अधिकार है। भारत में कितने संत, ग्रंथ हैं, पंथ हैं फिर भी प्रक्रिया कितनी सही चल रही है। कितना उपदेश, प्रवचन होता है। भारत में धर्म का प्रभाव है, तो धर्म निर्पेक्षता का भी प्रभाव है। वर्तमान की लोकतंत्र प्रणाली में मुझे तो काफी सुंदरता लगती है। कोई कमी है, तो उसमें भी विकास हो। भारत और गरिमा वाला देश बने। आचार्यप्रवर ने कालू यशोविलास के प्रसंगों को समझाते हुए फरमाया कि पूज्य कालूगणी का पंडित रघुनंदनजी के प्रति किस तरह मन हो गया। यतिजी ने पंडितजी एवं कालूगणी दोनों को बात करने के लिए तैयार किया था। फिर तो पंडितजी कालूगणी के भक्त हो गए। सेवा देने के लिए तैयार हो गए।
आज ज्ञानशाला दिवस है। कई ज्ञानशालाएँ पूज्यप्रवर की सेवा में आ गईं। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि आदमी के जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। आज दुनिया में कितने-कितने संस्थान ऐसे हैं, जिनके माध्यम से ज्ञान का आदान-प्रदान होता है। कितने-कितने विद्यार्थी विद्या के क्रम से जुड़े हैं। गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञजी बोलते थे कि विद्यालय की शिक्षा बुरी नहीं है, उसमें कुछ अपर्याप्तता हो सकती है। साथ में संस्कारों की बात जुड़ जाए।
जीवन विज्ञान के माध्यम से जीने का विज्ञान भी विद्यार्थियों को मिले तो और ज्यादा परिपूर्णता आ जाएगी शिक्षा के उपक्रम में। हमारे यहाँ यह ज्ञानशाला का उपक्रम चल रहा है। गुरुदेव तुलसी के समय से शुरू हुआ यह क्रम निरंतर चलता आ रहा है। ज्ञानशाला में भी पहले से निखार आया है। जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा और स्थानीय सभाओं के तत्त्वावधान में यह ज्ञानशाला का उपक्रम चलता है। यह एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम है-बाल पीढ़ी को तैयार करना। उनमें अच्छे संस्कार होंगे तो युवा पीढ़ी अच्छी होगी। मूल में ही ठीक कर दो तो आगे कमी नहीं रहेगी। बच्चे मूल हैं।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि समाज के प्रबुद्ध लोगों ने समाज को संगठित करने के लिए कार्यकर्ताओं को संगठित करने का चिंतन आया और जैन श्वेतांबर तेरापंथ महासभा को जन्म दे दिया। आचार्यों द्वारा प्रदत्त अध्यात्म युक्त मार्गदर्शन इस संस्था को आगेे बढ़ा रहा है। महासभा का एक महत्त्वपूर्ण आयाम है-ज्ञानशाला। ज्ञानशाला के माध्यम से संस्कारित बाल पीढ़ी का निर्माण हो रहा है। महासभा अध्यक्ष मनसुख सेठिया, ज्ञानशाला के राष्ट्रीय संयोजक सोहनलाल चोपड़ा, छापर ज्ञानशाला, सुजानगढ़ ज्ञानशाला आदि ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।